मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री तथा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष
कमलनाथ की अगुवाई में जहां कांग्रेस रिवर्स गियर में पहुंच गई है तो वहीं दूसरी ओर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कमलनाथ के छिंदवाड़ा के गढ़ में कमल का फूल खिलने के लिए एक्शन मोड में आ गए हैं। एक ओर मध्य प्रदेश में भावी मुख्यमंत्री कौन होगा इसको लेकर देश की राजधानी नई दिल्ली में गतिविधियां तेज हैं और मुख्यमंत्री पद के तमाम दावेदार पूरी तरह से वहां सक्रिय हैं तो वहीं दूसरी ओर शिवराज उन जिलों में जा रहे हैं जहां भारी लहर के बावजूद भाजपा को एक भी सीट नहीं मिली है।
शिवराज ने संकल्प लिया है कि वह छिंदवाड़ा सहित सभी 29 लोकसभा क्षेत्र में कमल खिलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं तो वहीं दूसरी ओर रिवर्स गियर में आई कांग्रेस के नेता कमलनाथ के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती छिंदवाड़ा के अपने गढ़ को बचाने की है । भाजपा इस किले में सेंध लगाने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखेगी । कौन बनेगा मुख्यमंत्री इसकी चिंता छोड़ शिवराज लोकसभा चुनाव की तैयारी में भिड़ गए हैं।
चुनाव के पहले यदि संभावनाएं काम करती हैं तो चुनाव के बाद सिर्फ मेहनत बोलतीं हैं। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजों के आईने में देखा जाए तो यह बात साफ जाहिर होती है कि कांग्रेस प्रदेश में रिवर्स गियर में आ गई है तो वहीं भाजपा ने जिस लैंड स्लाइड बहुमत के साथ सरकार में वापसी की राह तैयार की, वह उसकी कभी बोलकर और कभी खामोशी अख्तियार कर की गई मेहनत का नतीजा है। यही लैंड स्लाइड कांग्रेस की राहें रोककर खड़ा हो गया है, कब तक और कितने समय के लिए? फिलहाल तो कोई भी कुछ बताने की स्थिति में नहीं है।
हार के सही कारण तलाशने भोपाल में कांग्रेस बैठी तो लाख टके का यह सवाल उत्तर की तलाश में है कि क्या कांग्रेस कारणों को सही तरीके से जान और पहचान पाएगी । वह इन कारणों को कितना बताती है और कितना छिपाती है, यह उसकी मर्जी और अधिकार है। मगर, तय है कि अब मप्र में कांग्रेस को पुनर्गठन की राह पकडऩी ही होगी, विकल्पहीनता का बहाना भी नहीं चलेगा, यह नई कांग्रेस गढऩे का वक्त है। हालांकि ऐसा नहीं है कि कांग्रेस ने मेहनत नहीं की या उसके पास मुद्दे नहीं थे। बस, चंद महीने पहले सक्रियता दिखाना पर्याप्त नहीं था। वह भी तब, जबकि उसके सामने सबसे चुनौती भाजपा की बड़ी चुनाव मशीनरी थी। यह जरूर है कि उसके मुद्दों में से कुछ हाइजैक हो गए, भाजपा के लिए काम भी कर गए, लेकिन प्यार,जंग और अब सियासत में यह सब जायज है। बेहतर होता कि जवाबी तौर पर उसके पास सटीक दांव होता,प्लान बी,सी या डी होता व किलर इंस्टिक्ट भी, जो भाजपा के पास है वह होती। कमलनाथ का नेता और कार्यकर्ताओं से सीमित संपर्क, सीमित संवाद व असीमित ओरा भी नुकसान का एक कारण रहा माना जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
फिलहाल तो कांग्रेस का सफर 2023 से 2008 का नजर आता है,यानि रिवर्स गियर वाला। पार्टी फिर वहीं नजर आ रही है, जहां दिसंबर 08 में थी। उस वक्त भी अक्टूबर तक सब पॉजिटिव लगता था, संभावनाएं बार-बार पीसीसी पर दस्तक दे रही थीं, यहां से मंत्रालय तक एक नयी राह निकलती नजर आ रही थी। इस बार भी ऐसा ही था, जनता भी अनमनी थी, सारे ज्वलंत मुद्दे उसकी पेशानी पर परेशानी की तरह नजर आते थे, मगर शुरूआत में टिकटों का और बाद में चुनाव प्रबंधन ही मुद्दों समेत वर्ष 2008 जैसा लडख़ड़ाता नजर आया। इस बार भी, जनता कैसे भाजपा से कन्विंस हो गई, यह कांग्रेस के लिए केस स्टडी की तरह होना चाहिए, जबकि कांग्रेस ने मप्र से बेहतर टक्कर भाजपा को एंटी इंकम्बेंसी से जूझते छत्तीसगढ व राजस्थान में दी। खास बात यह है, कि भाजपा मप्र में इस तरह लड़ी जैसे साढ़े अठारह साल से विपक्ष में हो और कांग्रेस इस तरह लड़ती नजर आई जैसे साढ़े अठारह साल से सत्ता में हो ! भाजपा पूरे जोश में थी तो वहीं दूसरी ओर कांग्रेस आती सत्ता की कल्पना की मदहोशी में इस कदर नजर आई कि वह अपने लक्ष्य कोसों पिछड़ गई।