संभल-अजमेर के साथ ही देश की कई मस्जिदों में मंदिर होने का दावा और विवाद

अयोध्या स्थित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद का विवाद कई दशकों बाद शीर्ष अदालत के फैसले से ख़त्म तो हो गया, लेकिन इसके बाद हिंदू पक्ष ने अनेक मस्जिदों में मंदिर की तलाश शुरू कर दी है. यह मुस्लिम समुदाय के अधिकारों का हनन है.

नई दिल्ली: इन दिनों देश में मस्जिद के नीचे मंदिर खोजने का मुद्दा सुर्खियों में है. उत्तर प्रदेश के संभल में शाही जामा मस्जिद का विवाद अभी थमा भी नहीं था कि अजमेर की प्रसिद्ध दरगाह शरीफ की खबरें चर्चा का विषय बन गई हैं.

अयोध्या स्थित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद का विवाद कई दशकों बाद शीर्ष अदालत के 2019 के फैसले के बाद खत्म हुआ था. इस विवाद ने सांप्रदायिक दंगों से लेकर सरकारों को बदलते हुए देखा, देश में धार्मिक ध्रुवीकरण को देखा लेकिन जब ये विवाद सुलझा तो इसने कई अन्य विवादों के लिए एक नई ज़मीन तैयार कर दी.

आज देश के कई राज्यों, जिलों और शहरों में मंदिर-मस्जिद विवाद शुरू हो गया है. आज की तारीख में हिंदू पक्ष अनेक मस्जिदों में मंदिर की तलाश कर रहा है. हालांकि, ये अचानक नहीं शुरू हुआ, इसकी सुगबुगाहट बहुत पहले से थी, लेकिन राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद फैसले के बाद इसे नया बल मिला है.

आइए एक नज़र डालते हैं मस्जिद, दरगाह और इस्लामिक स्थलोंं पर जहां मंदिर होने के दावे किए जा रहे हैं:

संभल शाही जामा मस्जिद

उत्तर प्रदेश के संभल में स्थित शाही जामा मस्जिद को लेकर दावा किया जा रहा है कि ये पहले भगवान विष्णु का हरिहर मंदिर था, जिसे 1529में आंशिक रूप से ध्वस्त कर मस्जिद में बदलने की कोशिश की गई थी. हिंदू पक्ष का ऐसा भी दावा है कि भविष्य में यहीं भगवान कल्कि अवतार लेंगे. इस दावे का आधार बाबरनामा को बताया जा रहा है, जिसे खुद मुगल बादशाह बाबर ने लिखी थी.

मालूम हो कि 1891 में प्रकाशित ब्रिटिश काल के गजेटियर, ‘उत्तर-पश्चिमी प्रांतों और अवध में स्मारकीय पुरावशेष और शिलालेख’ में भी मस्जिद पर हिंदू दावे की बातें मौजूद हैं. इस दस्तावेज़ में कहा गया है कि मुसलमानों ने इमारत के निर्माण को बाबर के समय का बताते हुए मस्जिद के अंदर एक शिलालेख की ओर इशारा किया है, जो इस्लामी कैलेंडर के अनुसार वर्ष 933 में मीर हिंदू बेग द्वारा साइट के निर्माण को दर्ज करता है, जो कि वर्ष 1526 से मेल खाता है.

हालांकि, हिंदुओं ने दावा किया है कि शिलालेख बाद की तारीख की जालसाजी था, जैसा कि गजेटियर में कहा गया है. गजेटियर के अनुसार, ‘इस स्लैब पर या इसके पीछे, हिंदू कहते हैं कि मंदिर से संबंधित मूल संस्कृत शिलालेख है.’

वहीं, इस मस्जिद के संबंध में कहा जाता है कि इसे पहले मुगल सम्राट बाबर के निर्देश पर बनाया गया था, जिसे संभल जिले की आधिकारिक वेबसाइट पर ‘ऐतिहासिक स्मारक’ के रूप में दिखाया गया है.

इस मस्जिद में कोर्ट के आदेश के बाद हाल ही में दो बार सर्वेक्षण भी हो चुका है, जिसके खिलाफ हुई हिंसा में चार मुस्लिम समुदाय के लोग अपनी जान गंवा चुके हैं.

बनारस की ज्ञानवापी मस्जिद

वाराणसी में काशी-विश्वनाथ मंदिर से सटी ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर विवाद जारी है. मामला अभी कोर्ट में है. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने ज्ञानवापी मस्जिद की अपनी सर्वे रिपोर्ट में दावा किया है कि मौजूदा संरचना (मस्जिद) के निर्माण से पहले वहां एक ‘बड़ा हिंदू मंदिर’ मौजूद था और मंदिर के कुछ हिस्सों का उपयोग इस्लामी पूजा स्थल के निर्माण में किया गया था.

एक याचिका में हिंदू पक्ष ने यहां मंदिर होने का दावा था. उन्होंने मस्जिद परिसर में मां श्रृंगार गौरी के दर्शन और पूजा के लिए साल भर प्रवेश की भी मांग की गई थी. माना जाता है कि 1699 में मुगल शासक औरंगजेब ने मूल काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद बनवाई थी.

काशी विश्वनाथ मंदिर के वर्तमान स्वरूप का निर्माण 1780 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने कराया था. यहां से मस्जिद को हटाए जाने को लेकर पहली याचिका 1991 में दाखिल हुई थी. ये मूल मुकदमा हिंदू वादियों द्वारा ज्ञानवापी मस्जिद परिसर पर कब्जे की मांग के लिए दायर किया गया था.

2019 में मस्जिद के आर्कियोलॉजिकल सर्वे को लेकर याचिका दाखिल हुई थी.

मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद

मथुरा शहर में श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर परिसर के पास शाही ईदगाह मस्जिद को हिंदू धर्म में भगवान कृष्ण की जन्मस्थली माना जाता है. श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति न्यास के अध्यक्ष वकील महेंद्र प्रताप सिंह का दावा था कि मुगल शासक औरंगजेब ने श्रीकृष्ण जन्म स्थली पर बने प्राचीन केशवनाथ मंदिर को नष्ट करके उसी जगह 1669-70 में शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण कराया था.

1968 में श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और शाही ईदगाह कमेटी के बीच हुए समझौते में 13.37 एकड़ जमीन का स्वामित्व ट्रस्ट को मिला और ईदगाह मस्जिद का मैनेजमेंट ईदगाह कमेटी को दे दिया गया. यह मामला भी कोर्ट में है.

आगरा का ताजमहल

आगरा का ताजमहल विश्व प्रसिद्ध स्मारकों में से एक है. ये दुनिया के सात अजूबों में अपनी पहचान रखता है. इसका निर्माण मुगल बादशाह शाहजहां ने 1632 में शुरू कराया था, जो 1653 में खत्म हुआ था. हालांकि, शाहजहां की बेगम मुमताज के इस प्रसिद्ध मकबरे को लेकर भी कई विवाद सामने आए हैं.

हिंदू पक्षों का दावा है कि शाहजहां ने ‘तेजो महालया’ नामक भगवान शिव के मंदिर को नष्ट कर यहां ताजमहल बना दिया. इसे लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में ताजमहल के बंद 22 कमरों को खुलवाकर एएसआई से जांच कराने की मांग भी की गई थी.

कई दक्षिणपंथी संगठन यह दावा कर चुके हैं कि मुगल काल का यह मकबरा अतीत में भगवान शिव का मंदिर था. यह स्मारक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित है.

2017 में भाजपा नेता विनय कटियार ने दावा किया था कि 17वीं शताब्दी के स्मारक ताजमहल का निर्माण मुगल सम्राट शाहजहां ने एक हिंदू मंदिर को नष्ट करके किया था.

हालांकि, 17 अगस्त, 2017 को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने आगरा की अदालत को बताया था कि ताजमहल कभी मंदिर नहीं था और हमेशा एक मकबरा रहा है.

धार की कमाल मौला मस्जिद

मध्य प्रदेश के मालवा का धार जिले में स्थित कमाल मौला मस्जिद अक्सर विवादों में रही है. हिंदुओं का दावा है कि यह परिसर वाग्देवी (सरस्वती) का भोजशाला (मंदिर) है.

मालवा सांप्रदायिक राजनीति से सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र रहा है. यहां जब धार्मिक ध्रुवीकरण की जड़ें गहरी हुईं, तो 1990 के दशक के बाद से यह विवाद और बढ़ता ही गया.

हिंदू पक्ष का मानना है कि भोजशाला मंदिर का निर्माण हिंदू राजा भोज ने 1034 में कराया था. इसके बाद 1305 में अलाउद्दीन खिलजी ने इस पर हमला किया और फिर मुस्लिम कमांडर दिलावर खान ने सरस्वती मंदिर भोजशाला के एक हिस्से को दरगाह में बदलने की कोशिश की. इसके बाद महमूदशाह ने भोजशाला पर हमला करके सरस्वती मंदिर के बाहरी हिस्से पर कब्जा करते हुए वहां कमाल मौलाना मकबरा बना दिया.

फिलहाल इसकी देखरेख एएसआई करता है. मार्च 2023 में हाईकोर्ट ने इस परिसर की प्रकृति (मंदिर है या मस्जिद) को स्पष्ट करने और इसके बारे में किसी भी भ्रम को दूर करने के लिए इस सर्वेक्षण का आदेश दिया था.

जिसके बाद एएसआई ने अपनी रिपोर्ट में कई ऐतिहासिक कलाकृतियों की खोज के आधार पर विवादित परिसर के मंदिर होने का संकेत दिया था. सर्वेक्षण में कुल 94 मूर्तियां, मूर्तियों के टुकड़े और स्थापत्य के निशान भी मिलने की बात कही गई. ये मूर्तियां बेसाल्ट, संगमरमर, शिस्ट, मुलायम पत्थर, बलुआ पत्थर और चूना पत्थर से बनी हैं. इनमें गणेश, ब्रह्मा, नरसिंह, भैरव, अन्य देवी-देवताओं, मनुष्यों और जानवरों की आकृतियां हैं.

एएसआई की रिपोर्ट बताती है कि भोजशाला कभी एक महत्वपूर्ण शैक्षिक केंद्र था, जिसे राजा भोज ने स्थापित किया था. बरामद कलाकृतियों से संकेत मिलता है कि वर्तमान संरचना पहले के मंदिरों के कुछ हिस्सों का उपयोग करके बनाई गई थी.

कुतुब मीनार परिसर में स्थित कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद

दिल्ली के कुतुब मीनार परिसर में स्थित कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद का निर्माण गुलाम वंश के पहले शासक कुतुब-उद-दीन ऐबक ने 1206 में शुरू करवाया था. ऐसा कहा जाता है कि इस मस्जिद को बनने में 4 वर्ष का वक्त लगा. बाद के शासकों ने भी इस मस्जिद का विस्तार करवाया था. इसे दिल्ली की सबसे पुरानी मस्जिदों में माना जाता है.

हिंदू पक्ष की दलील है कि कुतुब मीनार का निर्माण 27 हिंदू और जैन मंदिरों को तोड़कर किया गया था. हिंदू पक्ष यहां पूजा का अधिकार की मांग कर रहे हैं. हिंदू पक्ष का कहना है कि कुतुब मीनार और यहां स्थित मस्जिद का निर्माण मंदिरों को तोड़कर किया गया था.

कोर्ट में दाखिल याचिका में कहा गया है कि इस जगह पर भगवान विष्णु, भगवान शिव, भगवान गणेश, भगवान सूर्य, गौरी देवी, भगवान हनुमान, जैन तीर्थंकर भगवान ऋषभ देव को मंदिर परिसर में स्थापित किया जाना चाहिए. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अपने हलफनामे में माना है कि कुतुब मीनार परिसर के भीतर भगवान गणेश की छवियों समेत कई मूर्तियां मौजूद हैं. ये मामला भी अदालत तक पहुंच चुका है.

हालांकि, अदालत में एएसआई इस याचिका के खिलाफ रहा था और इसने कहा था कि क़ुतुब मीनार में पूजा नहीं हो सकती क्योंकि यह प्राचीन स्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 के प्रावधानों के विपरीत होगा.

विदिशा की बीजा मंडल मस्जिद

मध्य प्रदेश के विदिशा शहर में स्थित बीजा मंडल मस्जिद को लेकर भी विवाद रहा है. माना जाता है कि बीजा मंडल मस्जिद का निर्माण परमार राजाओं द्वारा निर्मित चर्चिका देवी के हिंदू मंदिर को नष्ट करके किया गया था.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, माना जाता है कि 1658-1707 के दौरान औरंगजेब ने इस मंदिर पर हमला करके इसे लूटा और नष्ट कर दिया. मंदिर के उत्तरी ओर मौजूद सभी मूर्तियों को दफनाकर इसे मस्जिद में बदल दिया. तभी से ये विवाद चला आ रहा है.

कहा जाता है कि इस स्थल पर मौजूद एक खंभे पर लगे शिलालेख में बताया गया है कि मूल मंदिर देवी विजया को समर्पित था, उन्हें चर्चिका देवी भी कहा जाता है.

जौनपुर की अटाला मस्जिद

यूपी के जौनपुर जिले में स्थित अटाला मस्जिद को लेकर भी दावा किया जाता है कि यहां पहले अटाला देवी का मंदिर था, जिसे तोड़कर मस्जिद बनाई गई. इस मस्जिद का निर्माण 1408 में इब्राहिम शाह शर्की ने कराया था.

हिंदू पक्ष के अनुसार अटाला देवी मंदिर का निर्माण गढ़ावला के राजा विजयचंद्र ने कराया था. इसे लेकर भी जब-तब विवाद होता रहता है.

हिंदू पक्ष का कहना है कि मस्जिद में मंदिर से जुड़े कई चिह्न हैं. इसमें त्रिशूल, फूल आदि के चित्र मौजूद होने की बात कही गई है. इसके साथ ही दावे में पुरातत्व विभाग के निदेशक की रिपोर्ट और विभिन्न पुस्तकों का भी हवाला दिया गया. ये मामला भी अदालत पहुंच चुका है.

बंगाल की अदीना मस्जिद

पश्चिम बंगाल के मालदा जिले में प्रसिद्ध अदीना मस्जिद, जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा सूचीबद्ध स्मारक है, यहां भी एक हिंदू मंदिर होने का दावा किया जाता है.

बताया जाता है कि अदीना (फारसी में शुक्रवार) मस्जिद पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे बड़ी मस्जिद थी जब इसे 1374 में पूरा किया गया था.

इसे भी भगवान शिव के प्राचीन आदिनाथ मंदिर को नष्ट करके उसकी जगह अदीना मस्जिद बनाए जाने के दावे दक्षिणपंथी संगठनों द्वारा किए जाते हैं. हिंदुओं का दावा है कि अदीना मस्जिद के कई हिस्सों में हिंदू मंदिरों के आकार की डिजाइन नजर आती हैं. इसे लेकर भी विवाद हो चुके हैं.

पाटन की जामी मस्जिद

गुजरात के पाटन जिले में स्थित जामी मस्जिद को रुद्र महालय मंदिर बताया जाता है. हिंदू पक्ष का दावा है कि पाटन में आज भी रुद्र महालय मंदिर के अवशेष नजर आते हैं.

ऐसा कहा जाता है कि रुद्र महालय मंदिर का निर्माण 12वीं सदी में गुजरात के शासक सिद्धराज जयसिंह ने कराया था. 1410-1444 के बीच अलाउद्दीन खिलजी ने इस मंदिर के परिसर को नष्ट कर दिया था. बाद में अहमद शाह प्रथम ने मंदिर के कुछ हिस्से को जामी मस्जिद में बदल दिया था. इसे लेकर भी विवाद हो चुके हैं.

अहमदाबाद की जामा मस्जिद

गुजरात के अहमदाबाद में स्थित जामा मस्जिद को लेकर भी दावा किया जाता है कि इसे हिंदू मंदिर भद्रकाली को तोड़कर बनाया गया है. क्योंकि अहमदाबाद का पुराना नाम भद्रा था, इसलिए यहां इस मंदिर के पुख्ता अवशेषों की बात कही जाती है.

मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया है कि भद्रकाली मंदिर का निर्माण 9वीं से 14वीं सदी तक राज करने वाले राजपूत परमार राजाओं ने कराया था. अहमदाबाद में अभी जो जामा मस्जिद है, उसे अहमद शाह प्रथम ने 1424 में बनवाया था. दावा है कि इस मस्जिद के ज्यादातर खंभे हिंदू मंदिरों के नक्शे में बने हैं.

लखनऊ की टीले वाली मस्जिद

लखनऊ की टीले वाली मस्जिद का विवाद भी पुराना है. इस मस्जिद को लेकर भी हिंदू पक्ष का दावा है कि यहां पर सनातन विरासत लक्ष्मण टीला स्थित है. लखनऊ से पूर्व भाजपा सांसद और राज्यपाल स्वर्गीय लालजी टंडन ने भी अपनी किताब ‘अनकहा लखनऊ’ में इसका जिक्र किया है.

इस किताब में उन्होंने मुस्लिम समुदाय पर भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण से शहर का नाता तोड़ने का आरोप लगाया था.

दिवंगत भाजपा नेता लालजी टंडन ने अपनी किताब लिखा है कि मुगल सम्राट औरंगजेब के शासनकाल के दौरान राज्य की राजधानी की सबसे बड़ी सुन्नी मस्जिद का निर्माण लक्ष्मण टीला पर किया गया था, जो भगवान राम के भाई लक्ष्मण के नाम पर बनाया गया. यहां एक ऊंचा मंच था. किताब इस वजह से राजनीतिक विवाद में भी घिर गई थी.

उज्जैन की बिना नींव की मस्जिद

महाकाल की नगरी अवंतिका उज्जैनी में स्थित बिना नींव की मस्जिद को लेकर भी दावा किया जाता है कि यह भोजशाला का ही एक हिस्सा है. कहा जाता है कि यहां अंदर शिव मंदिर है.

हिंंदू पक्ष का दावा है कि इस जगह परमार कालीन सोमेश्वर महादेव मंदिर है. बाद में इल्तुमिश ने मंदिर को तोड़ा और दिलावर खान ने शिवलिंग को हटा दिया. दीवारों पर 88 स्तंभों पर सनातन संस्कृति की झलक भी नजर आती है.

इन उल्लेखित मस्जिदों के अलावा भी देश की कई और मस्जिदें सवालों के घेरे में हैं. हालांकि, 1991 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस से पहले बने उपासना स्थल कानून में ये साफ कहा गया है कि भारत में 15 अगस्त 1947 को जो धार्मिक स्थान जिस स्वरूप में था, वह उसी स्वरूप में रहेगा, उसकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं किया जा सकेगा.

ये कानून ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा की शाही ईदगाह समेत देश के सभी धार्मिक स्थलों पर लागू होता है. इस कानून के तहत सिर्फ अयोध्या विवाद को अलग रखा गया था क्योंकि वह मामला आज़ादी से पहले से अदालत में लंबित था.

इस कानून एक और अपवाद वो धार्मिक स्थल हो सकते हैं जो पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग के अधीन आते हैं और उनके रख-रखाव के काम पर कोई रोकटोक नहीं है.

गौरतलब है कि देश भर में अयोध्या श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर बनाने के लिए चल रहा आंदोलन जब अपने चरम पर था, तभी 18 सितंबर 1991 में नरसिम्हा राव की सरकार ने संसद से उपासना स्थल कानून पारित कराया था. तब उमा भारती सहित भाजपा के कई नेताओं ने इस नए कानून का जमकर विरोध भी किया था.