दावेदारों में बढ़ी बेचैनी, प्रस्तावक और समर्थक भी असमंजस में

भाजपा जिलाध्यक्षों की घोषणा अटकी.

भाजपा जिलाध्यक्षों की घोषणा को लेकर अब दावेदारों की बैचेनी बढऩे लगी है तो अब कार्यकर्ता भी उत्साह कम होता जा रहा है। उधर मंडल अध्यक्ष और अन्य पदााधिकारी भी असमंजस की स्थिति में आ गए हैं। इसकी वजह है उनसे अब बतौर प्रस्तावक और समर्थक जिस फार्म पर हस्ताक्षर कराए जा रहे हैं, उसमें जिलाध्यक्ष पद के दावेदार के नाम का कहीं उल्लेख तक नहीं है। इसकी वजह से उन्हें भी यह पता नहीं चल पा रहा है कि वे किसके नाम का प्रस्ताव व समर्थन कर रहे हैं। दरअसल बीते एक पखवाड़े से हर दिन पार्टी जिलाध्यक्षों के नामों की घोषणा की अटकलें लगती हंै और रात होते -होते तक उस पर विराम लग जाता है। जिलाध्यक्षों के नामों को लेकर भोपाल से लेकर दिल्ली तक बैठकें हो चुकी हैं और इसके बाद फिर से भोपाल में बैठकों का दौर शुरु हो चुका है। दरअसल, पार्टी के प्रभावशाली और बड़े नेताओं से लेकर मंत्री और विधायक तक अपने -अपने जिलों में अपने समर्थकों को जिलाध्यक्ष बनवाने के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं। इसकी वजह से किसी एक नाम पर सहमति नहीं बन पा रही है। इस सबंध में एक बार फिर से शनिवार को मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा और प्रदेश संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा ने बैठक कर मंथन किया। इसके बाद भी सूची को अंतिम रुप नहीं दिया जा सका है। बीजेपी संगठन चुनाव की घोषणा के बाद शुरुआती दौर में यह तय हुआ था कि एक से 15 दिसंबर तक मंडल अध्यक्षों के चुनाव होंगे। उल्लेखनीय है कि मंडल अध्यक्षों के चुनाव के बाद 16 दिसंबर से 31 दिसंबर तक जिलाध्यक्षों का चुनाव होना था। इसके लिए पार्टी ने तय समय मे ंरायशुमारी भी करा ली थी, लेकिन, जिलाध्यक्षों की घोषणा को लेकर दिग्गजों के बीच सहमति नहीं बन पा रही है। इसकी वजह से मामला अटकता ही जा रहा है। इस स्थिति के चलते प्रदेश संगठन लगातार अपनी रणनीति बदलने पर मजबूर है। पहले भोपाल और फिर दिल्ली से जिलाध्यक्षों के नामों की घोषणा की रणनीति बनाई गई थी। इसके बाद जिलों में सम्मेलन कर नाम घोषित करने की योजना बनाई गई , लेकिन पर्यवेक्षकों द्वारा हाथ खड़ा कर देने से अब फिर से नई रणनीति तैयार की जा रही है। माना जा रहा है कि रायशुमारी में जो नाम सामने आए थे, उनकी जगह अधिकांश जिलों में नेताओं की पंसद के आधार पर नामों की सूची बनाई गई है। इसकी वजह से पर्यावेक्षकों ने भोपाल से दी जाने वाली जिलाध्यक्षों के नामों की पर्ची पढऩे से इंकार कर दिया है। अब पार्टी में भी जिलाध्यक्षों की घोषणा प्रदेश स्तर से ही किए जाने पर सहमति बन गई है। प्रदेश चुनाव टोली जिलाध्यक्षों के नाम का ऐलान भोपाल में ही करेगी। इस मामले में बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा का कहना है कि यह संगठनात्मक पर्व है। नौ साल बाद हम इस प्रक्रिया में गए हैं। मंडल स्तर पर भी कोई सूची नहीं मिली होगी। मंडल की भी पूरी प्रोसेस हुई है यानि बूथ की पूरी प्रोसेस हुई है। ऐसे ही जिलों की अपनी प्रोसेस है। इतने बड़े राजनैतिक दल में जहां पंच, सरपंच से लेकर सब जगह भारतीय जनता पार्टी बैठी हुई है। वहां इस प्रकार के निर्णय संवाद और समन्वय के आधार पर ही होते हैं। कार्यपद्धति के अनुरुप सारा काम हमारे तंत्र ने किया है। इसकी कोई डेट नहीं हैं। भाजपा में अपने तंत्र की जो प्रक्रिया है, वो प्रक्रिया हम कर रहे हैं और आगे जो होगा वो जल्दी सामने आ जाएगा।
असहमति बन रही बाधक
असल में ये पहली बार है कि जिला अध्यक्ष की सूची के एलान में इतना लंबा समय लग रहा है। वजह है कई जिलों में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का अपने समर्थकों को जिलाध्यक्ष बनाए जाने का दबाव । कई जिलों में चूंकि कद्दावर नेताओं की तादात ज्यादा है, इसलिए एक नाम पर आम सहमति बनना कठिन हो रहा था। बुंदेलखंड के सागर में ही देंखे तो गोपाल भार्गव, भूपेन्द्र सिंह और गोविंद सिंह राजपूत जैसे दिग्गज नेता है, जो अपनी पसंद का जिलाध्यक्ष चाह रहे हैं। कमोबेश यही स्थिति ग्वालियर चंबल में भी है, वह पर सिंधिया और तोमर गुट में खींचतान है। यही वजह है कि आमतौर पर संगठन के चुनाव में तय समय सीमा में निपट जाने वाले बीजेपी के जिलाध्यक्ष के चुनाव में इतनी देरी हो रही है।
बढ़ाने पड़ गए दो जिले
वैसे बीजेपी के संगठनात्मक जिले 60 हैं, लेकिन इस बार सागर और धार में शहरी और ग्रामीण दो हिस्से कर दिए जाने के बाद अब 62 जिलों पर एक साथ जिलाध्यक्षों की सूची का एलान होगा। बीजेपी संगठनात्मक रूप से चार प्रमुख जिले भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर और इंदौर बड़े जिले होने की वजह से इन्हें शहरी और ग्रामीण दो हिस्सों में बांटा गया है।
नहीं मिलेगा दोबारा मौका
इंदौर जिलाध्यक्ष गौरव रणदिवे और भोपाल जिला अध्यक्ष सुमित पचौरी को युवा होने की वजह से रिपीट किए जाने का दबाव था, लेकिन पार्टी ने तय कर लिया है कि इस बार किसी भी जिलाध्यक्ष को रिपीट नहीं किया जाएगा, बल्कि माना जा
रहा है कि इस बार बड़ी तादात में महिलाओं को जिलाध्यक्ष के पद पर मौका दिया जाएगा।