यूपी: बलात्कार पीड़ितों की जांच में देरी को लेकर हाईकोर्ट ने रेडियोलॉजिस्ट की कमी पर चिंता जताई

एक रेप मामले में आरोपी को ग़लतबयानी के चलते छह महीने जेल में रहना पड़ा क्योंकि लड़की का टेस्ट होने में देरी हुई, जिसे लेकर अदालत ने चिंता जताते हुए कहा कि ‘लखनऊ जैसे एक ही जिले में 78 रेडियोलॉजिस्टों की नियुक्ति, जबकि अन्य जिलों में एक भी रेडियोलॉजिस्ट न होना, चिकित्सा संसाधनों के न्यायसंगत वितरण के बारे में गंभीर चिंताएं पैदा करता है.’

नई दिल्ली: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बलात्कार पीड़ितों को उनकी चिकित्सीय-कानूनी रेडियोलॉजिकल जांच में देरी के कारण होने वाले अनुचित उत्पीड़न को गंभीरता से लिया है, जिसका मुख्य कारण राज्य भर के विभिन्न जिलों में रेडियोलॉजिस्टों की अनुपलब्धता है.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने राज्य में सरकारी डॉक्टरों के लिए उचित नियुक्ति और स्थानांतरण नीति की आवश्यकता पर बल दिया.

इस तथ्य को संज्ञान में लेते हुए कि कुछ जिलों में कोई रेडियोलॉजिस्ट नहीं है, जबकि अन्य में एक से अधिक हैं, उच्च न्यायालय ने कहा, ‘प्रमुख सचिव, चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रस्तुत सूची के अवलोकन से ही राज्य भर में रेडियोलॉजिस्टों की असंगत तैनाती का पता चलता है.’

ज्ञात हो कि रेडियोलॉजिस्ट वे डॉक्टर होते हैं जिनके पास बीमारी और चोट के निदान और उपचार के लिए मेडिकल इमेजिंग में विशेषज्ञता होती है.

अदालत ने कहा, ‘लखनऊ जैसे एक ही जिले में 78 रेडियोलॉजिस्टों की नियुक्ति, जबकि अन्य जिलों में एक भी रेडियोलॉजिस्ट न होना, चिकित्सा संसाधनों के न्यायसंगत वितरण के बारे में गंभीर चिंताएं पैदा करता है.’

जस्टिस कृष्ण पहल ने एक व्यक्ति की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिसके खिलाफ एक लड़की के पिता ने एफआईआर दर्ज कराई थी. पिता का कहना था कि आरोपी ने उनकी 13 वर्षीय नाबालिग बेटी का अपहरण कर उसके साथ बलात्कार किया है. लेकिन लड़की ने दावा किया था कि वह अपनी मर्जी से आवेदक के साथ गई थी और बाद में ऑसिफिकेशन टेस्ट में लड़की की उम्र 19 साल यानी सहमति देने की उम्र पाई गई, लेकिन उसकी उम्र के बारे में गलत बयान देने के कारण वह व्यक्ति छह महीने तक जेल में रहा.

लड़की कहा कि वह आरोपी के साथ कानूनी रूप से संबंध रख सकती है और इसलिए उसने कोई अपराध नहीं किया है, क्योंकि वह अपनी मर्जी से अपने पिता का घर छोड़कर उसके साथ उसके घर गई थी.

इसके बाद अदालत ने बलिया के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) को पीड़िता का ऑसिफिकेशन टेस्ट कराने का निर्देश दिया, लेकिन वहां रेडियोलॉजिस्ट उपलब्ध न होने के कारण उसे वाराणसी ले जाया गया. वहां स्वास्थ्य विभाग ने यह कहकर परीक्षण करने से मना कर दिया कि अदालत ने बलिया के सरकारी डॉक्टर को यह आदेश दिया था, वाराणसी को नहीं.

अदालत ने इस पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा, ‘रेडियोलॉजिस्टों ने पीड़िता की रेडियोलॉजिकल जांच करने से इनकार करके संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों की अनदेखी की है. यह पीड़िता के समय पर और उचित चिकित्सा परीक्षण के अधिकार का उल्लंघन है. डॉक्टर सिर्फ क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र (ज्यूरिसडिक्शन) के आधार पर जांच से इनकार नहीं कर सकते, जैसे वे जाति, लिंग आदि के आधार पर इनकार नहीं कर सकते.’

गौरतलब है कि बीते साल भी इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य के विभिन्न जिलों में रेडियोलॉजिस्ट की कमी को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार को फटकार लगाई थी. अदालत का कहना था कि मेडिको-लीगल रेडियोलॉजिस्ट परीक्षण में देरी के चलते बलात्कार सहित अन्य अपराध के पीड़ितों को ‘अनुचित उत्पीड़न’ का सामना करना पड़ता है.

हाईकोर्ट ने जिला अस्पतालों में रेडियोलॉजिस्ट उपलब्ध कराने में विफलता के लिए राज्य सरकार की आलोचना करते हुए कहा था कि इससे पीड़िता को और अधिक आघात पहुंचा है. इस आपराधिक मामले में लड़की की उम्र इसलिए महत्वपूर्ण थी, क्योंकि लड़की के परिवार ने एक ऐसे व्यक्ति के खिलाफ बलात्कार, अपहरण और गंभीर यौन उत्पीड़न के आरोपों के तहत एफआईआर दर्ज कराई थी, जिसके साथ वह रिश्ते में थी.