अब राष्ट्रीय अध्यक्ष के साथ होगी प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा.
मप्र में पिछले तीन माह से भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के नाम की घोषणा का इंतजार किया जा रहा है। लेकिन पार्टी अभी तक किसी एक नाम पर मुहर नहीं लगा पाई है। वहीं भाजपा सूत्रों का कहना है कि अब पहलगाम में हुए आतंकी हमले के कारण प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा कुछ दिन और नहीं होने की संभावना है। ऐसे में कहा जा रहा है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष के साथ ही अब प्रदेश अध्यक्ष के नाम की घोषणा की जाएगी। गौरतलब है कि मप्र में भाजपा के लिए प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव अबूझ पहेली बनता जा रहा है। जिलाध्यक्षों के नाम घोषित होने के बाद प्रदेश को नया अध्यक्ष मिलने की संभावना थी, लेकिन यह इंतजार बढ़ता जा रहा है। जातिगत, राजनीतिक, क्षेत्रीय सहित विभिन्न समीकरणों को टटोलना के बाद जो नाम सतह पर आए भी थे, उन्हें लेकर भी चर्चाएं थम चुकी हैं। तय माना जा रहा है कि अब राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाम के साथ ही प्रदेश अध्यक्ष का नाम सामने आएगा। गौरतलब है किभाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा की जगह कौन लेगा, इसको लेकर लंबे समय से चर्चा चल रही है। प्रदेश अध्यक्ष की रेस में पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा, अरविंद भदौरिया, बैतूल से विधायक हेमंत खंडेवलवाल, सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते और राज्यसभा सदस्य सुमर सिंह सोलंकी के नाम चर्चा में है। वीडी शर्मा के कार्यकाल को पांच साल हो गए है। उनके नेतृत्व में भाजपा ने प्रदेश में विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत और लोकसभा चुनाव में पहली बार सभी 29 सीटों पर जीत दर्ज की। वीडी शर्मा को संगठन केंद्र में बड़ी भूमिका दे सकता है। प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग से मुख्यमंत्री के होने के चलते सामान्य या ब्राह्मण वर्ग से प्रदेश अध्यक्ष बनाने की अटकलें लगाई जा रही है। हालांकि संगठन आदिवासी चेहरे को भी मौका दे सकता है। इसका कारण लंबे समय से आदिवासी नेता को प्रदेश की कमान नहीं सौंपी गई है। एससी वर्ग से सत्यनारायण जटिया प्रदेश अध्यक्ष बने, लेकिन आदिवासी वर्ग को प्रतिनिधित्व नहीं मिल सका है। इसका एक कारण जातिगत समीकरण को ध्यान रखते हुए आदिवासी वर्ग को मौका देना भी माना जा रहा है। प्रदेश में ओबीसी वर्ग से मुख्यमंत्री होने के अलावा डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ल ब्राह्मण और जगदीश देवड़ा एससी वर्ग से आते हैं। वीडी शर्मा सामान्य वर्ग से आते हैं।
दिग्गजों से नहीं हुई अभी तक रायशुमारी
गौरतलब है कि भाजपा में परंपरा है कि सभी नेताओं से रायशुमारी के बाद ही किसी नाम पर मुहर लगाई जाती है। प्रदेश में अभी तक दिग्गज नेताओं से रायशुमारी नहीं हो पाई है। यहां केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान, नरेंद्र सिंह तोमर, जयभान सिंह पवैया, कैलाश विजयवर्गीय और राकेश सिंह जैसे नेताओं की राय को नजरंदाज नहीं किया जा सकता है। देरी की एक वजह इन दिग्गजों से रायशुमारी नहीं होना भी है। सत्ता और संगठन में बदलाव के बाद पुराने चेहरों की चिंता अपना किला बचाने की है, तो जिन्हें पीढ़ी परिवर्तन के चलते मौका मिला है, वे अपनी जमीन मजबूत करने के लिए प्रयासरत हैं। मुख्यमंत्री मोहन यादव की सहमति भी प्रदेश अध्यक्ष के नाम पर मायने रखती है। पार्टी नेताओं के अनुसार यादव और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बीच भी प्रदेश अध्यक्ष को लेकर चर्चाएं हो चुकी हैं। पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद कयास लगाए जा रहे हैं कि प्रदेश अध्यक्ष या राष्ट्रीय अध्यक्ष का निर्णय कुछ समय के लिए टल सकता है।
नहीं हो पाया प्रधान का दौरा
जनवरी में चुनाव अधिकारी बनाए गए केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान का प्रदेश दौरा भी नहीं बन पाया। उन्होंने किसी नाम पर सहमति बनाने के प्रयास किए हों या रायशुमारी का दौर चला हो, ऐसे प्रयास भी सामने नहीं आए हैं। पार्टी नेताओं का अनुमान है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाम पर सहमति के बाद मप्र और उत्तर प्रदेश जैसे कई राज्यों के अध्यक्षों के नाम घोषित होंगे, लेकिन अब तक राष्ट्रीय अध्यक्ष का नाम भी तय नहीं हो सका है। यह पहला अवसर है, जब भाजपा के संगठन चुनाव में बूथ अध्यक्ष, मंडल अध्यक्ष और जिलाध्यक्षों के चुनाव के चार महीने बाद भी प्रदेश अध्यक्ष के नाम पर संगठन खाली हाथ है। पार्टी सूत्रों के अनुसार छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में बड़े कद के नेता कम हैं इसलिए वहां हाईकमान ने निर्णय कर दिया, लेकिन मप्र में मामला उल्टा है।
कहां अटका है प्रदेश अध्यक्ष का फैसला
जानकारों का कहना है कि मप्र में भाजपा अध्यक्ष का फैसला अब से पहले पोखरण विस्फोट की तरह होता रहा है। दिवंगत नेता प्रभात झा को हटाने और नरेन्द्र सिंह तोमर को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने का पूरा घटनाक्रम ऐसा ही था। ये पहली बार है कि प्रदेश अध्यक्ष का निर्णय लेने मे पार्टी इतना समय ले रही है। हालांकि इस बार पार्टी में प्रदेश अध्यक्ष के पद के तलबगार नेताओं की कतार भी लंबी है। नरोत्तम मिश्रा से लेकर अरविंद भदौरिया तक तमाम पार्टी के कद्दावर मंत्रियों से लेकर मौजूदा डिप्टी सीएम राजेन्द्र शुक्ल का नाम भी प्रदेश अध्यक्ष के पद के लिए चर्चा में है। बाकी विधायक हेमंत खंडेलवाल का नाम इनमें सबसे मजबूत माना जा रहा है। जो निर्णय जनवरी में हो जाना चाहिए था वो अप्रैल तक नहीं हो सका है। हालांकि इसकी एक वजह ये भी है कि भाजपा में कोई भी निर्णय बहुत चिंतन मनन के बाद होता है। अभी मध्य प्रदेश में निकट भविष्य में चुनाव भी नहीं है, लेकिन पूरे बीस साल बाद सरकार का चेहरा बदला है। तो पार्टी सांमजस्य का भी ध्यान रखेगी और उसी आधार पर निर्णय लिया जाएगा। इस देर की एक वजह ये भी हो सकती है। हालांकि भाजपा में प्रदेश अध्यक्ष के फैसले को लेकर हो रही देरी पर भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रभारी आशीष अग्रवाल का कहना है भाजपा मे हर निर्णय पूरी प्रक्रिया से होता है। पार्टी से संबधित किसी भी निर्णय की घोषणा प्रक्रिया पूर्ण हो जाने के बाद ही होगी। उधर कांग्रेस भाजपा प्रदेश अध्यक्ष को लेकर हो रही देरी की वजह भाजपा में बढ़ती गुटबाजी को बता रही है। कांग्रेस की प्रदेश प्रवक्ता संगीता शर्मा कहती हैं कि असल में पार्टी में इतने कद्दावर नेता बेचारे खाली बैठे हैं और उन सबकी निगाह अब प्रदेश अध्यक्ष के पद पर है। पार्टी में गुटबाजी इतनी ज्यादा है कि शिवराज सिंधिया सबके अपने अलग अलग गुट हैं।