दो माह बाद भी नाथ नहीं गठित कर सके नई टीम

प्रदेश में कमजोर संगठन के चलते कांग्रेस के कार्यक्रम कभी भाजपा की तुलना में मैदानी स्तर पर सफल नहीं हो पाए हैं इसके बाद भी प्रदेश में चुनावी साल में प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ अपनी ताजपोशी के बाद भी दो माह में अपनी टीम का गठन नहीं कर सके हैं। पार्टी में सिर्फ कार्यकारी संगठनों की बाढ़ सी आ गई है। पार्टी का मूल संगठन हो या फिर उसके सहयोगी संगठन उनमें कार्यकारी अध्यक्षों की नियुक्ति की होड़ सी लगी है। वर्तमान में कमलनाथ द्वारा अपने पांच पदाधिकारियों की टीम के साथ काम किया जा रहा है। गौरतलब है कि पीसीसी अध्यक्ष बनाए जाने के बाद सांसद कमलनाथ ने पुरानी कार्यकारिणी भंग कर दी थी। अप्रैल में सांसद कमलनाथ को प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया था। एक मई को उन्होंने काम संभाला। पीसीसी अध्यक्ष बनाए जाने की घोषणा के साथ ही उन्होंने तत्कालीन पीसीसी अध्यक्ष अरुण यादव की कार्यकारिणी को भंग कर दिया था। कमलनाथ की पीसीसी में पहली पांच नियुक्तियां चंद्रप्रभाष शेखर को संगठन प्रभारी उपाध्यक्ष, राजीव सिंह को महामंत्री प्रशासन, गोविंद गोयल को कोषाध्यक्ष, मानक अग्रवाल को मीडिया प्रभारी और पीसीसी अध्यक्ष का मीडिया प्रभारी नरेंद्र सलूजा के रूप में हुई थीं। इसके बाद कमलनाथ ने कार्यकारिणी में किसी पदाधिकारी की नियुक्ति नहीं की। सूत्रों का कहना है कि कार्यकारिणी के गठन को लेकर वरिष्ठ नेताओं के बीच कई दौर की बातचीत हो चुकी है, लेकिन पदाधिकारियों को लेकर एक राय नहीं बन पाने से उनकी घोषणा नहीं हो पा रही है।
कार्यकारी अध्यक्षों पर भरोसा
कांग्रेस में कार्यकारी अध्यक्षों पर भरोसा किया जा रहा है, जबकि कांग्रेस के संविधान में इस तरह के पदों का कोई उल्लेख तक नहीं है। कार्यकारी अध्यक्ष को कोई अधिकार नहीं होते हैं। इसके बाद भी पीसीसी में रामनिवास रावत, बाला बच्चन, जीतू पटवारी, सुरेंद्र चौधरी कार्यकारी अध्यक्ष बनाए गए हैं तो महिला कांग्रेस में भी पीसीसी और एआईसीसी ने कार्यकारी अध्यक्ष बनाए हैं। इसी तरह युवा कांग्रेस में कार्यकारी अध्यक्षों की नियुक्ति की गई है।
कांग्रेस में देरी की पंरपरा
पीसीसी में आमतौर से 150 से 200 पदाधिकारियों की कार्यकारिणी रहती है। अरुण यादव की कार्यकारिणी में 19 उपाध्यक्ष, 40 महामंत्री, 81 सचिव, 23 आमंत्रित और 22 विशेष आमंत्रित थे। यादव ने 2013 में कांतिलाल भूरिया को हटाए जाने के बाद कई महीने बाद नई कार्यकारिणी बनाई थी, लेकिन भूरिया की कार्यकारिणी को भंग नहीं किया था।