भोपाल। प्रदेश में साल के आखिरी में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी के बीच गठबंधन लगभग तय हो चुका है। दोनों दलों के नेताओं के बीच दिल्ली में कई दौर की बैठकों के बाद साथ चुनाव लडऩे का मन बना लिया है। प्रदेश की सीमावर्ती जिले एवं अपने वोटबैंक वाली 26 सीट कांग्रेस को मिल सकती हैं। जबकि शेष 204 सीटों पर कांग्रेस अपने प्रत्याशी उतारेगी। हालांकि अभी किसी भी दल ने गठबंधन का अधिकृत तौर पर ऐलान नहीं किया है।
प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी के वर्तमान में 4 विधायक हैं। बसपा का प्रभाव ग्वालियर-चंबल, विंध्य एवं बुंदेलखंड क्षेत्र के जिलों में है और मौजूदा विधायक भी इसी क्षेत्र से आते हैं। खास बात यह है कि बहुजन समाज पार्टी सीमावर्ती जिलों में ही 30 सीटें मांगी हैं, लेकिन दोनों दलों के नेताओं के बीच कई दौर की बैठकों के बाद 26 सीटों पर बसपा राजी होती दिख रही है। खास बात यह है कि दोनों दलों में से किसी ने प्रदेश इकाई को इसमें भागीदार नहीं बनाया है। चूंकि कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ की बसपा सुप्रीमो मायावती से बेहतर राजनीतिक संबंध है। दोनों के राजनीतिक संबंधों का पता तब चला, जब पिछले साल राज्यसभा चुनाव में मतदान की नौवब आई। जब बसपा के चारों विधायकों के कांग्रेस प्रत्याशी विवेक तन्खा के पक्ष में मतदान किया।
कांग्रेस का वोट बसपा को मिलने पर संशय
दोनों दलों के बीच इस बात को लेकर भी मंथन चल रहा है कि गठबंधन के बाद क्या कांग्रेस का वोटबैंक बसपा को ट्रांसफर होगा। क्योंकि कांग्रेस का सर्वण वोट बैंक पार्टी का प्रत्याशी नहीं उतरने पर भाजपा या अन्य के खाते में जा सकता है। जबकि बसपा का 90 फीसदी वोटबैंक कांग्रेस के पक्ष में जाने की संभावना रहती है। हालांकि पिछले विधानसभा चुनाव में दलों के मत प्रतिशत के आंकड़ों के अनुसार भाजपा को 44.80 फीसदी, कांग्रेस को 36.38 फीसदी एवं बसपा को 6.29 फीसदी वोट मिले। कांग्रेस और बसपा का कुल मत प्रतिशत भाजपा से कम है।
बसपा के चहेरे हो सकते हैं धनाढ्य सर्वण
ग्वालियर-चंबल में बसपा के जयादातर प्रत्याशी सर्वण चेहरे होते हैं। गठबंधन के बाद बसपा को यदि आरक्षित वर्ग के प्रत्याशी के जीतने की संभावना कम दिखती है तो फिर उस क्षेत्र के धनाढ्य सवर्ण को बसपा अपना प्रत्याशी बना सकती है। पिछले चुनाव में बसपा के टिकट पर धनाढय सवर्ण चुनाव जीतकर आते रहे हैं।