देश की नंबर 1 एक इंफ्रा कंपनी बनने की होड़ में दिलीप बिल्डकॉन

दिलीप सूर्यवंशी: दिन दूनी रात चौगुनी प्रगति के प्रतीक 
पिछले पांच साल में बनाई 5,000 किलोमीटर सडक़ें
हर साल दोगुनी रफ्तार से बढ़ रहा है दिलीप बिल्डकॉन का राजस्व
पहली पीढ़ी के बिजनेसमैन होने के बाद भी सफलता के झंडे गाडऩे वालों की लंबी फेहरिस्त है। लेकिन यदि मध्य प्रदेश की बात करें तो दिलीप सूर्यवंशी से बड़ा नाम शायद ही कोई और होगा। सूर्यवंशी की दिलीप बिल्डकॉन का आईपीओ दो साल पहले आया था। इसे जैसा रिस्पॉन्स मिला, वैसा शायद ही किसी और इंफ्रा कंपनी को मिला होगा। कंपनी ने भी शेयरधारकों को निराश नहीं किया। दो साल में 300 प्रतिशत से ज्यादा रिटर्न दिया है। पिता पुलिस विभाग में थे। हर साल ट्रांसफर हो जाता। फिर शुरू हो जाती नई जगह सेटल होने की दिक्कतें। तब अधीर होकर मां जानकी देवी कह जातीं- ‘अपना कुछ करो।’ माँ को पता नहीं था कि यही बात उनके बेटे यानी दिलीप सूर्यवंशी का जीवन मंत्र बन जाएगी। दिलीप बिल्डकॉन के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर दिलीप सूर्यवंशी कहते हैं कि ‘माँ का कहना यह नहीं था कि मैं अपना बिजनेस शुरू करूं, लेकिन मेरे लिए तो वह प्रेरणाभर थी। मुझे इतना समझ आ गया था कि किसी और के लिए काम करने का कोई मजा नहीं है।’
यहीं से नींव रखी गई मध्य प्रदेश की सबसे बड़ी इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी दिलीप बिल्डकॉन की। दिन-दूनी रात-चौगुनी तरक्की क्या होती है, यह दिलीप बिल्डकॉन की बेलेंस शीट आपको बताएगी। 1987 से अब तक कंपनी ने 15,000 किलोमीटर सडक़ें बनाई हैं। इसमें से 8,000 किलोमीटर सडक़ तो महज पिछले पांच साल में बनी है। वित्त वर्ष 2017-18 की तीसरी तिमाही के अंत में कंपनी की ऑर्डर बुक 15,500 करोड़ रुपए पर थी, लेकिन मार्च में कुछ बड़े ऑर्डर मिलने से पूरे वित्त वर्ष में मिलने वाले ऑर्डर 28,000 करोड़ रुपए तक पहुंच गए। यानी वित्त वर्ष के लिए निर्धारित लक्ष्य का सीधे-सीधे चार गुना। कंपनी का सफर कम दिलचस्प नहीं है। वित्त वर्ष 2009-10 में कंपनी का राजस्व 233 करोड़ रुपए था, जो वित्त वर्ष 2016-17 में 5,320 करोड़ रुपए हो गया। 2017-18 के नौ महीने में ही स्टैंडअलोन रेवेन्यू 5,190 करोड़ को पार कर चुका था। अगस्त 2016 में 219 रुपए पर लिस्ट हुआ शेयर कुछ उतार-चढ़ाव के बाद महज दो साल में 300 प्रतिशत से ज्यादा का प्रॉफिट इन्वेस्टर्स को दे चुका है। बनयान ट्री फाइनेंस के मैनेजिंग डायरेक्टर नवल तोतला ने 2012 में दिलीप बिल्डकॉन में इन्वेस्टमेंट किया था। वह कहते हैं कि कंपनी का मैनेजमेंट सतर्कता और आक्रामकता का बेजोड़ मेल है। वह कहते हैं कि रोड कंस्ट्रक्शन से जुड़े रहना कंपनी का सबसे स्मार्ट मूव रहा। वे इसमें बेहतर हो गए। उन्होंने एक्जीक्यूशन की क्षमताओं को बढ़ाया। बड़े प्रोजेक्ट्स को भी बहुत आसानी से समय से पहले पूरा करने में कामयाब रहे।
बड़े सपने देखो, उन्हें पूरा भी करो
2007 की शुरुआत में, दिलीप बिल्डकॉन के शीर्ष अधिकारियों ने स्ट्रेटेजिक मीटिंग की। एक साल ही हुआ था जब कंपनी ने मुंबई की वालेचा इंजीनियरिंग के लिए 80 करोड़ रुपए में मध्य प्रदेश में आष्टा-कन्नौद के बीच सडक़ बनाने का काम लिया था। यह 80 किमी का प्रोजेक्ट था। पहली बार दिलीप बिल्डकॉन ने अपने बूते प्रोजेक्ट लिया था। वालेचा इंजीनियरिंग को सिर्फ फीस देनी थी। दिलीप बिल्डकॉन को अपने बूते प्रोजेक्ट पूरा करने का अनुभव नहीं था। लिहाजा, उसे किसी न किसी साथी की जरूरत थी। तब तक कंपनी ने ईपीसी कॉन्ट्रेक्टर के तौर पर ही काम किया था। प्राइवेट कंपनियों के लिए ठेकेदारी किया करते थे। सूर्यवंशी ने वालेचा के साथ प्रोजेक्ट करने के लिए कई बार मुंबई का दौरा किया। उस प्रोजेक्ट ने कंपनी को वह आत्मविश्वास दिया, जिसकी उसे सबसे ज्यादा जरूरत थी। जब कंपनी ने स्ट्रेटजी मीटिंग की थी, तब कंपनी की ऑर्डर बुक में आंकड़ा 100 करोड़ रुपए था। सूर्यवंशी कहते हैं कि ‘जब हमने यह मीटिंग की तब हमने तय किया कि वित्त वर्ष 2009-10 तक हमारी ऑर्डर बुक को 1000 करोड़ रुपए तक ले जाना है।’टारगेट पूरा हो गया, लेकिन तब तक सूर्यवंशी यह महसूस कर चुके थे कि कंपनी को अपनी स्ट्रेटजी चेंज करने की आवश्यकता है। तब तक 80 प्रतिशत काम प्राइवेट कंपनियों के सब-कॉन्ट्रेक्टर के तौर पर थे। अब कंपनी अपने दम पर काम का हिस्सा बढ़ाना चाहती थी। कंपनी तब भी ईपीसी कॉन्ट्रेक्टर थी जैसे- सद्भाव इंजीनियरिंग, अशोक बिल्डकॉन और एस्सेल इंफ्राप्रोजेक्ट्स।
वह कहते हैं कि ‘हम प्राइवेट सेक्टर के दम पर हर साल अपने रेवेन्यू को डबल कर रहे थे। हमारे लिए आश्चर्य की बात यह है कि उनमें से कई तो एक्सपर्टाइज नहीं होने के बाद भी पैसे बना रहे थे। कैश तक आसान पहुंच की वजह से कई खिलाड़ी इस क्षेत्र में कूद पड़े थे। हमने इस फेज के दौरान रोड कंस्ट्रक्शन के बारे में काफी कुछ सीखा। यह भी अनुभव किया कि सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि कच्ची सामग्री किसके पास है।’
2012 आते-आते, प्राइवेट सेक्टर पाइपलाइन धीमी पड़ गई। पर्यावरणीय स्वीकृतियां, जमीन का अधिग्रहण और आर्थिक हलचल धीमी पडऩे से कई महत्वकांक्षी कंपनियां अधर में लटक गई। तब सूर्यवंशी ने तय किया कि प्राइवेट प्लेयर्स से हटकर प्रगति की संभावनाओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है। तब ज्यादा से ज्यादा सरकारी आदेश हासिल करने की जद्दोजहद शुरू हुई। दिलीप बिल्डकॉन में स्ट्रेटजी और प्लानिंग हेड रोहन सूर्यवंशी कहते हैं कि वित्त वर्ष 2011-12 में सरकारी ऑर्डर महज 17 प्रतिशत थे, जो वित्त वर्ष 2013-14 में बढक़र 61 प्रतिशत हो गए। आज कम से कम 95 प्रतिशत ऑर्डर सरकारी रोड कंट्रक्शन प्रोजेक्ट्स हैं। आने वाले समय में कंपनी का ईपीसी पर जोर बना रहेगा। सरकार भारतमाला प्रोजेक्ट की बात कर रही है, जिसके तहत 84,000 किमी सडक़ बनना है। इस पर 6,92,000 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है। ऐसे में इंडस्ट्री प्लेयर्स की महत्वाकांक्षाएं भी बढ़ी हुई हैं। दिलीप बिल्डकॉन इसका ज्यादा से ज्यादा फायदा कैसे उठाता है, यह देखने लायक होगा।
ब्रोकरेज फम्र्स के अनुसार शेयर में तेजी के आसार
दिलीप बिल्डकॉन में पिछले 3 महीने में इंटरनल इश्यूफ के चलते 47त्न गिरावट रही है। दिलीप बिल्डकॉन देश की टॉप इंफ्रा कंपनियों में शामिल है। कंपनी की खासियत है कि इसके 90 फीसदी प्रोजेक्ट समय से पहले पूरे कर लिए जाते हैं, जिससे नए ऑर्डर मिलने में आसानी होती है। कंपनी का ऑर्डरबुक बेहतर है और कंपनी ने खर्चों में कमी की है। आगे इंफ्रा एक्टिविटी बढऩे का फायदा कंपनी को होगा। ब्रोकरेज हाउस एचडीएफसी सिक्युरिटीज ने स्टॉक के लिए 1434 रुपए और दोलत कैपिटल ने 1344 रुपए का लक्ष्यु रखा है। करंट प्राइस 630 रुपए के लिहाज से स्टॉक में 127 फीसदी तक रिटर्न मिल सकता है।
इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी ऑफ द ईयर
कंस्ट्रक्शन वीक ने 2017 के इंडिया अवार्ड्स के दौरान दिलीप बिल्डक़ॉन को बेस्ट इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी ऑफ द ईयर के खिताब से नवाज़ा। मैग्जीन ने लिखा है कि एक कंपनी ने समय पर प्रोजेक्ट डिलीवर करने की अपनी प्रतिष्ठा के अनुरूप काम को जारी रखते हुए नए कीर्तिमान गढ़े हैं। पिछले पांच साल में कंपनी को 320 करोड़ रुपए का मुनाफा तो सीधे-सीधे अर्ली-कम्प्लीशन बोनस यानी समय से पहले प्रोजेक्ट पूरा करने के बोनस के तौर पर प्राप्त हुए हैं। यह टॉपलाइन का 1.5 से 2.0 प्रतिशत तक होता है। पिछले साल 5,000 करोड़ रुपए के टॉपलाइन पर उसे 106 करोड़ रुपए का बोनस मिला। इस साल भी कंपनी को बोनस में अपेक्षाकृत बढ़ोतरी की संभावना है।
दिलीप सूर्यवंशी 
दिलीप बिल्डकॉन लिमिटेड में दिलीप सूर्यवंशी चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर हैं। उन्हें कंस्ट्रक्शन बिजनेस में 36 साल का अनुभव है। वह कंपनी की स्थापना से ही उसके डायरेक्टर हैं। कंपनी के गठन से पहले, वह दिलीप बिल्डर्स के सोल प्रोप्राइटर थे। वे मध्य प्रदेश बिल्डर्स एसोसिएशन के प्रेसिडेंट भी हैं। उनकी लीडरशिप में कंपनी ने कई मील के पत्थर हासिल किए। कंपनी का फोकस हमेशा इनोवेशन, ग्रोथ एंड एक्सीलेंस पर ही रहा है। कंपनी का लक्ष्य देश की सबसे बड़ी रोड-फोकस्ड ईपीसी कंपनी बनने का है। इसके लिए कंपनी ने देशभर में बड़े-बड़े प्रोजेक्ट्स के लिए निविदा प्रक्रिया में भाग लेना शुरू कर दिया है। एक फस्र्ट जनरेशन इंडस्ट्रियलिस्ट दिलीप सूर्यवंशी के पास जबलपुर यूनिवर्सिटी की सिविल इंजीनियरिंग की पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री है। 
दिलीप सूर्यवंशी का रोमांचक सफर
दिलीप सूर्यवंशी! एक ऐसी शख्यिसत, जिन्होंने देश को शानदार हाईवे दिए और कई बेहतरीन कंस्ट्रक्शन की इबारत लिखी। शून्य से शिखर तक का सफर उनकी मेहनत और लगन का नतीजा है। पुलिस ऑफिसर पिता के बेटे दिलीप की मां कभी नहीं चाहती थीं कि वो नौकरी करें। मां की ख्वाहिश के चलते शायद उसी वक्त से इस शख्स के दिलो-दिमाग में भी इतिहास रचने की ललक पैदा हुई होगी, जिसने देश की प्रमुख रोड कंस्ट्रक्शन कंपनी दिलीप बिल्डकॉन लि. की नींव रखी। देश की प्रमुख रोड कंस्ट्रक्शन कंपनी दिलीप बिल्डकॉन लि. की शानदार ग्रोथ स्टोरी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कंपनी ने एक प्राइवेट इक्विटी (पीई) इन्वेस्टर को पिछले 4 सालों में चार गुना रिटर्न ऐसे वक्त में दिया है, जब देश का इन्फ्रास्ट्रक्चर एवं कंस्ट्रक्शन सेक्टर स्लोडाउन के दौर से गुजरा। इन्हीं सफलताओं के दम पर दिलीप ने अपना नाम फोब्र्स इंडिया की मैगजीन में आउटस्टैंडिंग एंटरप्रेन्योर के तौर पर दर्ज करवाया।
मां नहीं चाहती थीं कि दिलीप नौकरी करें
दिलीप सूर्यवंशी की मां नहीं चाहती थीं कि वे कभी नौकरी करें। इसके पीछे कारण ये था कि उनके पिता पुलिस की नौकरी में थे और उनका ट्रांसफर होता रहता था। उस वक्त उनकी मां ने कहा था कि पिता के ट्रांसफर की वजह बच्चों को भी बहुत परेशानी सहनी पड़ती है। दिलीप ने भोपाल के शाहजहांनाबाद की पुलिस लाइन के बारादरी स्कूल से प?ाई की। इसके बाद 1979 में जबलपुर से सिविल इंजीनियरिंग की। पढ़ाई पूरी होने के बाद मां के कहे अनुसार, उन्होंने खुद का बिजनेस स्थापित करने की ओर प्रयास शुरू कर दिए।
पत्नी के गहने गिरवी रखे और दोस्तों से पैसे उधार लिए
दिलीप ने सफलता हासिल करने के लिए बहुत संघर्ष किया। शुरुआती दिनों में बिजनेस के लिए उन्हें अपनी पत्नी के गहने भी गिरवी रखने पड़े थे। दिलीप बताते हैं, ‘मुझे वह दिन भी बहुत अच्छे से याद है, जब मैंने अपने बेटे के जन्म पर एक दोस्त से 200 रुपए उधार लिए थे। उन पैसों से मैंने अस्पताल में मिठाई बंटवाई और बेटे के जन्म की खुशियां सेलिब्रेट की। उन दिनों में भी मैं काफी खुश था और जीवन का भरपूर आनंद लिया।’
और उनको मिल गई नई दिशा
1988 में उन्होंने दिलीप बिल्डकॉन के नाम से कंपनी बनाई। पहले तो उन्होंने छोटे रिहायशी परियोजनाओं, सरकारी इमारतों और पेट्रोल पंपों का निर्माण किया। इसके बाद साल 1995 में 21 वर्षीय इंजीनियर देवेंद्र जैन को काम पर रखा। जैन अब उनकी कंपनी में एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर हैं। बिल्डिंग बनाते-बनाते उनका ध्यान सडक़ निर्माण पर गया। 2000 के दशक की शुरुआत में, एनडीए सरकार ने सडक़ निर्माण के टेंडर निकालने शुरू किए। तब उन्होंने तय किया कि उनकी कंपनी सडक़ निर्माण का काम भी करेगी।
खरीदने पड़े थे अपने ट्रक और डंपर
उस वक्त सडक़ निर्माण के क्षेत्र में दिलीप बिल्डकॉन एक नई कंपनी थी, इस वजह से उनके सामने कई दिक्कतें थीं। उन्होंने रिसर्च की और पाया कि सडक़ निर्माण के काम में कार्यशील पूंजी भी ज्यादा नहीं चाहिए थी और जोखिम भी कम था। काम पूरा होने पर सरकार पैसा चुकाती थी। लेकिन दिक्कतें यहां भी कम न थी क्योंकि लोडर्स, ट्रक, डंपर और स्टोन क्रशर किराए पर मिलना इतना आसान नहीं था। इस बात को ध्यान में रखते हुए उन्हें अपने ट्रक, डम्पर और स्टोन क्रशर खरीदने पड़े थे।
क्रिकेट की तरह है जिंदगी
दिलीप जिंदगी को क्रिकेट मैच की तरह समझाते हुए कहते हैं कि आपको हमेशा अपना बेस्ट परफॉर्म करना चाहिए। जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए सही वक्त पर सही स्टेप लेना बहुत जरूरी है, वरना आउट हो जाओगे। सफलता सिर्फ कठिन परिश्रम और लगन के बल पर ही पाई जा सकती है। उनका बिजनेस आज देश के 12 राज्यों में फैला है, जिसमें लगभग 20 हजार से ज्यादा लोग काम कर रहे हैं।
पिता के नक्शे कदम पर हैं दोनों बेटे
दिलीप के बेटे रोहन और करण पिता के सपने को नेक्स्ट लेवल तक ले जाने की तैयारी के साथ इस बिजनेस को संभाल रहे हैं। करण कंपनी के हेड ऑफ द बिजनेस डेवलपमेंट एंड न्यू वेंचर हैं, वहीं, रोहन हेड ऑफ द स्ट्रैटजी एंड प्लानिंग डिपार्टमेंट देखते हैं। दोनों युवा कंपनी की तरक्की और बेहतरी के लिए लगातार पिता के साथ संघर्षरत हैं। दिलीप सहित पूरे परिवार को संभाल के रखने के पीछे उनकी पत्नी सीमा सूर्यवंशी की विशेष भूमिका रही हैं। वे धार्मिक प्रवृत्ति की हैं। उन्होंने मुश्किल वक्त में पति और परिवार की हिम्मत बनाए रखी।