जातिगत आरक्षण मानव समाज को अभिशाप…

राजनीतिक फरिश्तों का अनजाना भय: राजनैतिक क्रांति
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नोटबंदी और जीएसटी ने व्यापारियों की कमर तोड़ी तो बाकी फैसलों ने व्यवस्था को अव्यवस्था बना दिया। कुल मिलाकर नरेंद्र मोदी से जो उम्मीदें थीं, वह पूरी नहीं हो सकी। वह तो विदेश भ्रमण में ही लगे रहे। जेटली एक अच्छे वकील हैं लेकिन वित्तमंत्री के तौर पर देश की आर्थिक सेहत का इलाज अच्छे-से करने में नाकाम रहे। युवाओं की बढ़ती बेरोजगारी की वजह आरक्षण तो है ही, सरकार की नीतियां भी हैं। यदि आम आदमी पार्टी जैसी जनता से जुड़ी पार्टियों का उद्भव अन्य राज्यों में भी हुआ तो किसी को आश्चर्य नहीं होगा। यह समय की मांग है। फिलहाल जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, उनमें ऐसा होता नजर नहीं आता। लेकिन जनाक्रोश बढ़ रहा है और इसका अंदाजा संघ प्रमुख तक को है।तभी वे 75 पार कर चुके नेताओं को भी टिकट देने की कवायद कर रहे हैं।
भोपाल (डीएनएन)। आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्रीश्री रविशंकर जी कहते हैं कि जाति के आधार पर आरक्षण नहीं चलेगा, विद्रोह हो जाएगा। उनका यह कथन उस बिलखती युवा पीढ़ी के अहसास का दर्पण है, जो राजनैतिक पार्टियों की वोट परस्त नीति के विरोध में है। मुगल काल में जब हिंदू धर्म पर संकट आया तो संत तुलसीदास, संत कबीर, गुरू नानक देव, संत नामदेव, संत रैदास सरीखे युग पुरुषों ने हिंदू समाज को जाग्रत किया। आज के संत राज्य अतिथि से लेकर राज्य मंत्री पद के सुविधाभोगी बनकर रह गए हैं। फिर वे चाहे स्वामी अविधेशानंद गिरि जी हों या मुरारी बापू अथवा बाबा रामदेव, इसके साथ ही लाखों शिष्यों की शक्ति के आभा मंडल से युक्त युगपुरूष आचार्य विद्यासागर जी महाराज भी इस विषय पर मौन है? हां, आचार्य तरूण सागर जी ने इसका अवश्य विरोध किया था। आरक्षण के विरोध की इस आंधी में आज सभी आदरणीय संतों, महंतों और आचार्यों एवं महामण्डलेश्वरों से भी सादर अनुरोध है कि मानव समाज से जुड़ी इस पीढ़ी से मुक्ति दिलाने हेतु प्रेरणा पुंज बन मार्गदर्शन दें। राजनेताओं के चुनावी भाषणों की रणस्थली से लेकर मतदान में भी इनका बहिष्कार संभव है? आज आवश्यकता है किसी सुभाषचन्द्र बोस की, जो कहे ‘तुम मुझे वोट दो, मैं तुम्हें आरक्षण से मुक्ति दूंगा।’
मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ और राजस्थान की प्रादेशिक राजनीतिक सरजमीं पर कुछ महीनों बाद विधानसभा की चुनावी दावतों का जश्न मना रहे होंगे- हम और आप। प्रश्न इस बात का कतई नहीं, कौन जीतेगा? कौन पराजय का वरण करेगा? हर व्यक्ति उस सुप्त ज्वालामुखी की तरह है, जो अभी सुशुप्तावस्था में है। कौन कब जाग जाए? अनजाना है। नोटबंदी हो, जीएसटी हो अथवा आरक्षण, कब कौन कहां किस समय अपना चमत्कार दिखा दें, कुछ नहीं कहा जा सकता? हाँ! यह अनुमान अवश्य लगाया जा सकता है, कि चुनावी परिणाम रहस्यमय होंगे, जो चमत्कृत कर देंगे राजनीतिक बहुरूपियों को। बड़े-बड़े राजनैतिक रणबांकुरे दिखने वाले प्रत्याशी भी पराजय का स्वाद चख सकते हैं?
यह चुनावी महाभारत भाषणों, प्रदर्शनों, अखबारी विज्ञापनों, दूरदर्शन पर लफ्फाजी मारते तथाकथित नेताओं की राजनीतिक कब्रगाह भी बन सकती है क्योंकि आज के मतदाता का मन दुखी है तन दुखी है, भरण पोषण की समस्या से व्यथित है। सडक़ें, भवन, भोजन नहीं देतीं। ऐसे में कोई नया समूह खड़ा हो जाए। जैसे अन्ना हजारे के अखाड़े से निकला एक कर्म योगी (अरविंद केजरीवाल) जिसने कांगे्रस से लेकर भाजपा को दिल्ली की सरजमीं पर शिकस्त दी। क्या इस सम्भावना से इंकार किया जा सकता है कि किसी अन्य प्रदेश में ऐसा सम्भव नहीं है। कभी भी कोई गुदडी का लाल आएगा और इन राजनीतिक धन्ना सेठों को छटी के दूध की याद दिला देगा। जमीनी हकीकत से अनजान है सभी दलों से जुड़े राजनैतिक कारिंदे, अथवा जानकर भी अनजान है। यह फलसफा किसी राजनैतिक क्रांति का आगाज तो नहीं है?
मराठी भाषी परिवार में जन्मे रजनीकांत दक्षिण भारत में देवता सरीखे पूजे जाते हैं। फिल्म इन्डस्ट्री में वे एक शहंशाह की हैसियत रखते हैं। आगामी राजनीतिक कुम्भ में सुश्री ममता बनर्जी, सुश्री मायावती और श्रीमती सोनिया गांधी की त्रिभुजाकार राजनैतिक काया कमल हासन को अपनी राजनीतिक दीपमाला में सजा सकती है, किन्तु अनुकूल राजनैतिक परिस्थितियों में रजनीकांत सरीखे व्यक्तित्वों को जोडऩे में भाजपा यदि सफल रही तो रजनीकांत अपनी राजनीति को दक्षिण तक सीमित न रखकर अखिल भारतीय स्तर पर राजनीतिक हंगामा बरपा सकते हैं? राजनीति के क्षेत्र में दक्षिण भारत से यह राजनीतिक बाहुबली कभी भी अवतरित हो सकता हैं?
आज की युवा पीढ़ी बेरोजगारी से व्यथित बना सकती है नया संगठन
सोलहवीं लोकसभा में भाजपा ने चमत्कृत कर देने वाली सफलता प्राप्त कर ली। सौभाग्यवश श्री नरेन्द्र मोदी सरीखे ओजस्वी महत्वाकांक्षी व्यक्तित्व ने प्रधानमंत्री पद संभाला तो देश आल्हादित तो हुआ, किन्तु श्री अमित शाह सरीखे राजनीतिक व्यक्तित्व को भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष तथा श्री अरूण जेटली सरीखे जो अर्थशास्त्र को कानूनी चश्मे से देखने के आदी हैं, उन्हें वित्तमंत्री बनवा कर स्वयं विश्व रंगमंच पर एक राजनैतिक तीर्थ यात्री बनकर हवाई यात्राएं करते रहते हैं।
श्री अरूण जेटली एक वरिष्ठ कानूनविद् होने के साथ ईमानदार व्यक्तित्व हैं किन्तु अर्थशास्त्री तो नहीं, नतीजा क्या हुआ? नोट बंदी से लेकर जीएसटी ने जहां व्यवसायियों में हताशा का भाव पैदा किया वहीं लाखों छोटे-छोटे कारखाने और कुटीर उद्योगों से जुड़े कामगार बेरोजगार हो गए।
युवा पीढ़ी भी बेरोजगारी से व्यथित है। किसान कर्ज के दमघोंटू यातना से मर्मान्तक पीड़ा भोग रहा हैं। आरक्षण पर नेताओं ने बेवह की नुक्ताचीनी कर आरक्षण के भूत को जगा दिया। बार-बार इस पर बोलकर सभी दलों के वक्रतुण्ड नेताओं ने आग में घी का काम किया और आरक्षण रूपी जिन्न को, जो बोतल में बंद था, उसे निकाल दिया।
भाजपा भी उसी घटोत्कच्छीय मायाजाल में फंस गई, जिसमें साठ वर्षों से कांग्रेस की जादूगरी चल रही थी। श्रीमती इंदिरा गांधी के बाद देश को एक ही काबिल जुझारू नेता मिला (श्री अटल विहारी बाजपेयी को छोडक़र) मगर भाजपा के बड़बोले नेताओं ने एक काबिल नेता की चमक फीकी कर दी। आज आवश्यकता है, दिल्ली के तख्ते ताऊस को संजीदगी से संभाले तथा विदेश यात्री न बने रहें, श्री नरेन्द्र मोदी जी। आज की युवा पीढ़ी बेरोजगारी से व्यथित तो है ही और यदि बदलाव की ओर मुड़ गई तो कांगे्रस के पक्ष में न जाकर किसी नये दलीय संगठन को जन्म दे सकती है?
श्री नरेन्द्र मोदी जी अपना घर देखें। ये विदेश यात्राएं सिर्फ व्यापारिक ताने-बाने बुनती है। देश को इस तिलस्म से फिलहाल दूर रखकर बेरोजगारों, कृषकों की समस्याओं के समाधान को अमलीजामा पहनाए, कागजी नहीं। राष्ट्र आपके प्रति आस्थावान है, आपको जो विजय मिली थी 2014 में, वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ या भाजपा की नहीं थी, वस्तुत: यह विजय मिली थी, कांग्रेसी शासन व्यवस्था के प्रति जनाक्रोश से। यह दंभ आप सरीखे विशाल व्यक्तित्व वाले व्यक्ति को शोभा नहीं देता कि देश को कांग्रेस विहीन कर देंगे। कांग्रेस एक संस्था है अच्छे-बुरे कमजोर मानसिकता वाले किसी संस्था को कुछ समय तक शक्तिहीन बना सकते हैं, किन्तु जब सशक्त नेतृत्व आएगा तब वह भी चुनावी ताल ठोक कर विजयी रथ पर आरूढ़ हो सकता है। मैं देख रहा हूँ कि आपके चेहरे की वह चमक दमक कुछ आभाहीन हो गई। समय का दावतनामा है कि कर्मठता के युग पुरुष बन पुन: आत्मविश्वास जाग्रत कर देश की चैपट होती अर्थव्यवस्था को नई योजनाओं के शृंगारदान से इन्द्रधनुषी रंग में संवारे।
प्रस्थान बिन्दु
1. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मुख्यालय नागपुर से उड़ती खबरें सुनने को मिल रही है, जिसमें 75 वर्ष से अधिक आयु वाले आरएसएस से जुड़े राजनीतिज्ञों को भाजपा चुनावी वैतरणी में जोर-आजमाइश का अवसर देने जा रही है, जिसमें श्री लालकृष्ण आड़वाणी, श्री मुरली मनोहर जोशी, श्री शांता कुमार, मध्यप्रदेश से श्री बाबूलाल गौर तथा सरदार श्री सरताज सिंह सरीखे अन्य वरिष्ठ नेताओं को लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों में प्रत्याशी बनाए जाएंगे। इस मामले में श्री अमित शाह का 75 वर्ष को लेकर बनाया चुनावी फार्मूला काल-कवलित हो जाएगा, क्योंकि आरएसएस के वरिष्ठ समूह का मानना है कि वरिष्ठों को राजनीति से अलग करना पार्टी को कमजोर कर रहा है। साथ ही उच्चासीन संघ प्रमुख मप्र में पार्टी की गिरती साख से भी चिंतित हैं और इस संदर्भ में उन्होंने श्री नरेन्द्र मोदी एवं श्री अमित शाह से अपना असंतोष गम्भीर वाणी में व्यक्त कर दिया है। हो सकता है कि यादव जाति के कद्दावर नेता श्री बाबूलाल गौर एवं सिख समुदाय को पार्टी से जोडऩे के लिए सरदार श्री सरताज सिंह को मंत्रिमंडल में पुन: शामिल कर लिया जाएं?
2. राजनेता जमीनी हकीकत से अनभिज्ञ हैं, भीतर ही भीतर विरोध का यह ज्वालामुखी भाजपा और कांग्रेस दोनों को हानि पहुंचा सकता है। आरक्षण की जो रासलीला इन दोनों राष्ट्रीय दलों द्वारा अभिनीत की जा रही है, वह सवर्ण समाज को रास नहीं आ रही, खासकर युवा पीढ़ी को। यदि आर्थिक आधार पर आरक्षण स्वीकार किया जाए तो राजनीतिक दलों, खासकर भाजपा अथवा कांग्रेस को चुनावी संजीवनी का काम कर सकता है।
3. राजनैतिक यक्ष मौन है? क्योंकि वह जानता है कि सत्य का हस्तान्तरण नहीं होता। जब आवाम न्यायालय बन जाता है तब असहयोग का दण्ड दिया जाता है। महात्मा गांधी के अहिंसक आन्दोलन का तरीका आज भी कारगर सिद्ध हो सकता है। यूक्रेन में एक सार्वजनिक बगीचे में भ्रष्ट लोगों के घर और दफ्तर से जप्त वस्तुओं को प्रदर्शित किया जाता है। इसी तर्ज पर हमारे यहां बैंकों को चूना लगाकर भागने वालों के घरों और दफ्तरों को भी भ्रष्टाचार के म्यूजियम में बदला जा सकता है। क्या यह सत्य का हस्तान्तरण नहीं होगा कि विजय माल्या व नीरव मोदी के भव्य भवन भ्रष्टाचार के म्यूजियम बनाए जाएं। यदि ऐसा हो जाए तो हर नगर, ग्राम अथवा महानगरों में भ्रष्टाचार में म्यूजियमों के बोर्ड लटकते नजर आएंगे। तब यक्ष अपना मौन भंग करेगा। प्रतीक्षा कीजिए आज नहीं तो अगले दशक में कुछ ऐसे मिलते जुलते दृश्य आपको दिखाई दे जाएंगे।