प्रदेश मेें कलेक्टरों की अरुचि से अटकी 9243 करोड़ की कर्ज वसूली

सरकार द्वारा संचालित की जाने वाली विभिन्न योजनाओं में बैंकों द्वारा दिए जाने वाले की वसूली न हो पाने की वजह से बैंकों का एएनपीए लगातार बढ़ता ही जा रहा है। खास बात यह है कि इस कर्ज की वूसली में कलेक्टर भी रुचि नहीं ले रहे हैं। हालात यह है कि बीते आठ सालों के दौरान बैंको द्वारा दिए गए 6.62 लाख लोगों को 9550 करोड़ रुपए के कर्ज मे से महज 307 करोड़ की ही वसूली हो सकी है। जिसकी वजह से बैंकों का 9243 करोड़ रुपए का कर्ज बकाया रह जाने से बैंकों का एनपीए बढ़ गया है। इससे परेशान होकर राज्यस्तरीय बैंकर्स कमेटी ने उत्तर प्रदेश मॉडल पर वसूली करने का सुझाव मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता वाली कमेटी की बैठक में दिया है। दरअसल उत्तरप्रदेश में आरआरसी जारी होने के बाद कर्जदार सख्त कानूनी कार्रवाई का प्रावधान है। बैंकर्स समिति के मुताबिक प्रदेश का एनपीए करीब 22000 करोड़ रुपए है। इसमें आधी रकम सरकार प्रायोजित हितग्राही मूलक योजनाओं की है। इससे पहले लाखों हितग्राही 10820 करोड़ रुपए डुबा चुके हैं। विभिन्न सरकारी योजनाओं के तहत दिए गए कर्ज के बकाया के 6.62 लाख प्रकरण कलेक्टरों और राजस्व अधिकारियों के पास लंबित है, जिसकी रकम 9243 करोड़ रुपए से अधिक है। एक बैंक अधिकारी ने बताया कि सरकार जनता के बीच कह देती है कि कर्ज की गारंटी ले रही है, लेकिन हितग्राही के डिफाल्टर होने के बाद इसका असर बैंकों पर ही पड़ता है।
तीन दशक पुराना है कानून
प्रदेश में डूबे कर्ज की वसूली के लिए 1987 में मध्यप्रदेश लोकधन कानून बनाया गया था। इसके तहत राजस्व अधिकारियों की संपत्ति की कुर्की नोटिस जारी करने का अधिकार है। जानबूझकर कर्ज नहीं चुकाने के दोषी हितग्राही को कार्यपालिका मजिस्टे्रट जेल भी भेज सकते हैं।
वसूली पर मिलती है प्रोत्साहन राशि
बैंक वूसली में लगे अफसरों को 2.5 प्रतिशत की प्रोत्साहन राशि भी दे रहे हैं। सरकार की ओर से बैंक रिकवरी इंसेटिव स्कीम (ब्रिस्क) के तहत संस्थागत वित्त की निगरानी में एक सेल भी बनाया है। इसके बाद भी विभिन्न जिलों में पांच लाख से अधिक वसूली के प्रकरण लंबित है।