भाजपा विरोधी दलों में गठबंधन पर मंथन का दौर जारी

इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर गैर भाजपाई दलों में चुनावी गठबंधन को लेकर मंथन का दौर जारी है। मप्र में भाजपा की लगातार बीते डेढ़ दशक से सरकार है। कांग्रेस हर हाल में इस साल होने वाले चुनाव में पार्टी की जीत तय करना चाहती है। यही वजह है कि कांग्रेस इस बार मतों का बंटवारा रोकना चाहती है, जिससे की भाजपा को फायदा न हो सके। उधर कई छोटे दल भी इस बार चुनाव में अपनी ताकत की तलाश में जूटे हुए हैं। यह दल भी गैर भाजपाई गठबंधन में अपना फायदा तलाश रहे हैं। यही वजह है कि अगले माह दो अगस्त को आधा दर्जन छोटे दलों का भोपाल में सम्मेलन होने जा रहा है। इस सम्मेलन में शामिल होने को लेकर अभी तक कांगे्रस और बसपा ने अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं की है। हालांकि इस बीच गठबंधन की कवायद मेें लगे पूर्व जयदू अध्यक्ष शरद यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती की कांगे्रस दिग्गजों से अलग-अलग मुलाकातें हो चुकी हैं। महागठबंधन की स्क्रिप्ट तैयार करने में जुटे समाजवादी नेताओं का कहना है कि कांग्रेस कर्नाटक के अनुभव के बाद ज्यादा सतर्कता से कदम आगे बढ़ा रही है। उसकी चिंता है कि चुनाव बाद गठबंधन की स्थिरता पूरी विश्वसनीयता के साथ बनी रहे। सूत्रों का कहना है कि इस दौरान मप्र के साथ ही छग और राजस्थान में होने वाले विस चुनावों में भी गठबंधन को लेकर भी सैद्धांतिक रुप से चर्चा हो चुकी है। गठबंधन को लेकर मायावती की कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और सोनिया गांधी के अलावा अशोक गहलोत से भी चर्चा हो चुकी है। उधर शरद यादव की भी कांग्रेस दिग्गजों से भेंट में इसी मुद्दे पर लंबी चर्चा कर चुके हैं। जदयू के पूर्व राष्ट्रीय महासचिव गोविंद यादव का कहना है कि छग में कांग्रेस के साथ गोंगपा के हीरासिंह मरकाम मंच साझा कर चुके हैं। भोपाल सम्मेलन में मरकाम और फूल सिंह बरैया सहित राष्ट्रीय समानता दल को मिलाकर छह क्षेत्रीय दल शामिल होंगे। कांगे्रस और बसपा से अभी इस मुद्दे पर चर्चा नहीं हुई है।
गैर कांगे्रसी हिंदू वोट पर फोकस
इस सम्मेलन के बहाने गैर आदिवासी, गैर दलित और गैर कांगे्रसी हिंदू वोटों पर फोकस किया जा रहा है। गठबंधन से जुड़े नेताओं का कहना है कि भाजपा के जनाधार में बड़ी संख्या ब्राहमण, क्षत्रिय और वैश्य वर्ग से है। इनमें से एक हिस्सा कांगे्रस के पास भी है। इनके अलावा गैर कांगे्रसी हिंदू में ज्यादातर कम आबादी वाले समाज और गरीब ओबीसी वर्ग के लोग शामिल हैं। इस वर्ग को रिझाने के बाद ही महागठबंधन का उद्देश्य पूरा होगा।