कुपोषण पर राज्यपाल की सक्रियता बन रही अर्चना के विभाग की मुसीबत

प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल के महिला होने से उनमें बच्चों को लेकर स्वभाविक रूप से ममत्व व संवेदलशीलता अधिक है। वे पूर्व राजनीतिज्ञ भी रह चुकी हैं। अपने राजनैतिक कार्यकाल में वे विधायक से लेकर मंत्री और फिर मुख्यमंत्री भी रही हैं, सो स्वभाभिक रूप से उनमें प्रशासनिक अनुभव भी है। इसका उपयोग वे प्रदेश में बिगड़ी व्यवस्था को सुधारने में दिखा रही सक्रियता में करती नजर आ रही हैं। यह सक्रियता कुपोषित बच्चों को लेकर स्पष्ट दिख रही है। इससे प्रदेश की महिला एवं बाल विकास विभाग की मंत्री अर्चना चिटनीस परेशान हैं। राज्यपाल जहां भी दौरे पर जाती हैं वे वहां की आंगनबाड़ी केन्द्र जाना नहीं भूलती हैं। वे अपने छह माह के कार्यकाल में जहां भी दौरे पर गई हैं वहां उन्होंने पूरा फोकस आंगनबाडिय़ों और कुपोषण पर ही किया। वे इस दौरान आंगनबाड़ी पहुंचकर पोषण आहार की स्थिति का जायजा जरूर लेती हैं। खास बात यह है कि वे कई बार प्रदेश में कुपोषण के विकराल स्थिति पर खुलकर प्रतिक्रिया देती नजर आयी हैं। यह बात अलग है कि प्रदेश में लगभग हर विभाग में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार नजर आ रहा है। शिक्षा, ग्रामीण विकास, शहरी विकास, रोजगार, स्वास्थ के मामले में प्रदेश की स्थिति काफी खराब है। लेकिन राज्यपाल का फोकस सिर्फ कुपोषण पर बना हुआ है। आनंदीबेन ने प्रदेश के विश्वविद्यालयों के माध्यम से टीवी पीडि़त बच्चों को गोद लेने की परंपरा भी शुरू करा दी है। राज्यपाल इसको लेकर खुलकर कह चुकी हैं कि कुपोषण की वजह से बच्चों में बीमारियां होती हैं। महिलाओं की स्थिति खराब रहती है। वे अभी तक सभी संभाग एवं 30 से ज्यादा जिलों का दौरा कर चुकी हैं। वे जिस शहर में जाती हैं, वहां किसी न किसी आंगनबाड़ी पहुंचकर महिलाओं से पोषण आहार, स्वच्छता पर खुलकर बात करती हैं। पोषण आहार वितरण को लेकर वे सीधे हितग्राहियों से फीडबैक लेती आई हैं। खराब परफार्मेंस के चलते वे पोषण आहार वितरण से लेकर सप्लाई व्यवस्था पर सवाल उठा चुके हैं।
कुपोषण में बदनाम है प्रदेश
महिला एवं बाल विकास विभाग की मंत्री अर्चना चिटनीस द्वारा मप्र विधानसभा में दी गई जानकारी के अनुसार प्रदेश में 12 लाख से ज्यादा बच्चे गंभीर कुपोषण की श्रेणी में हैं। इनमें से रह साल हजारों बच्चों को कुपोषण से मौत होती है। प्रदेश के 16 जिले कुपोषण प्रभावित हैं। पोषण आहार पर हर साल 1200 करोड़ रुपए का भारी भरकम बजट खर्च होता है। हर साल बजट बढ़ता भी है, लेकिन कुपोषण कम नहीं होती है। पोषण आहार में भ्रष्टाचार के मामले भी कई सामने आ चुके हैं। पोषण आहार सप्लाई व्यवस्था बदलने के बाद न तो आंगनबाडिय़ों पर तय मैन्यू के अनुसार पोषण आहार मिल रहा है और न ही कुपोषण कम हो रहा है।