भारत ने साउथ एशिया सैटेलाइट को किया लॉन्च

चेन्नई :- भारत ने साउथ एशिया सैटेलाइट को इसरो ने लॉन्च कर दिया है. इसे शुक्रवार शाम 4:57 मिनट पर श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया गया. 50 मीटर ऊंचे रॉकेट के जरिए भेजा गया यह सैटेलाइट अंतरिक्ष में शांतिदूत की भूमिका निभाएगा. गौरतलब है कि जीएसएलवी रॉकेट की यह 11वीं उड़ान है.इस सैटेलाइट के लॉन्च से दक्षिण एशियाई देशों के बीच संपर्क को बढ़ावा मिलेगा.पीएम मोदी ने इस बड़ी सफलता पर इसरो को बधाई दी है. जीसैट-9 को भारत की ओर से उसके दक्षिण एशियाई पड़ोसी देशों के लिए उपहार माना जा रहा है. भारत, श्रीलंका, भूटान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और मालदीव इस प्रोजेक्ट का हिस्सा हैं. पाकिस्तान ने कहा है कि उसका अपना अंतरिक्ष कार्यक्रम हैइस लिए वह इस प्रोजेक्ट का हिस्सा नहीं बना है. बता दें कि इस सैटेलाइट की मदद से प्राकृतिक संसाधनों की मैपिंग की जा सकेगी, टेली मेडिसिन, शिक्षा में सहयोग बढ़ेगा. भूकंप, चक्रवात, बाढ़, सुनामी की दशा में संवाद-लिंक का माध्यम होगी. यह अंतरिक्ष आधारित टेक्नोलॉजी के बेहतर इस्तेमाल में मदद करेगा.इसमें भागीदारी देशों के बीच हॉटलाइन उपलब्ध करवाने की भी क्षमता है. बीते रविवार को ‘मन की बात’ कार्यक्रम में मोदी ने घोषणा की थी कि दक्षिण एशिया उपग्रह अपने पड़ोसी देशों को भारत की ओर से कीमती उपहार होगा. मोदी ने कहा था कि पांच मई को भारत दक्षिण एशिया उपग्रह का प्रक्षेपण करेगा. इस सैटेलाइट को कूटनीतिक स्तर पर भारत के मास्टर स्ट्रोक की तरह देखा जा रहा है. इससे पहले संचार उपग्रह जीएसएटी-8 का प्रक्षेपण 21 मई 2011 को फ्रेंच गुएना के कोउरो से हुआ था. इसरो के मुताबिक-इसके ज़रिए सभी सहयोगी देश अपने-अपने टीवी कार्यक्रमों का प्रसारण कर सकेंगे. किसी भी आपदा के दौरान उनकी संचार सुविधाएं बेहतर होंगी.इससे देशों के बीच हॉटलाइन की सुविधा दी जा सकेगी और टेली मेडिसिन सुविधाओं को भी बढ़ावा मिलेगा. साउथ एशिया सैटेलाइट की लागत क़रीब 235 करोड़ रुपए है जबकि सैटेलाइट के लॉन्च समेत इस पूरे प्रोजेक्ट पर भारत 450 करोड़ रुपए खर्च करने जा रहा है. अफ़गानिस्तान ने अभी साउथ एशिया सैटलाइट की डील पर दस्तखत नहीं किए हैं, क्योंकि उसका अफ़गानसैट अभी काम कर रहा है. यह भारत का ही बना एक पुराना सैटलाइट है, जिसे यूरोप से लीज पर लिया गया है.2015 में आए भूकंप के बाद नेपाल को भी एक संचार उपग्रह की ज़रूरत है, नेपाल ऐसे दो संचार उपग्रह हासिल करना चाहता है. अंतरिक्ष से जुड़ी तकनीक में भूटान काफ़ी पीछे है. इसलिए साउथ एशिया सैटेलाइट का उसे बड़ा फ़ायदा होने जा रहा है.स्पेस टेक्नोलॉज़ी में बांग्लादेश ने अभी कदम रखने शुरू किए ही हैं. साल के अंत तक वह अपना ख़ुद का बंगबंधु -1 कम्युनिकेशन सैटेलाइट छोड़ने की तैयारी में है. श्रीलंका 2012 में चीन की मदद से अपना पहला संचार उपग्रह लॉन्च कर चुका है. उसने चीन की मदद से सुप्रीम सैट उपग्रह तैयार किया था. लेकिन साउथ एशिया सैटलाइट से उसकी क्षमताओं में इजाफा होगा.स्पेस टैक्नोलॉजी के नाम पर मालदीव्स खाली हाथ है. ऐसे में साउथ एशिया सैटलाइट के जरिए उसे मिली मदद बेहद फायदेमंद साबित होगी.

एजेंसी न्यूज़