प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में अब चंद माह का समय शेष है, लेकिन कांग्रेस गुटबाजी व आंतरिक संघर्ष से मुक्त नहीं हो पा रही है। पहले आंतरिक संघर्ष की कभी कभार ही खबरें आती थीं, लेकिन इस तरह की घटनाएं अब आम हो गई हैं। दरअसल प्रदेश में कांग्रेस कई दिग्गज नेताओं के गुटों में बटी हुई है। डेढ़ दशक से सत्ता से दूर कांग्रेस कार्यकर्ताओं को इस बार पार्टी की सरकार बनने की संभावना दिख रही है लिहाजा टिकट के दावेदारों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है। लिहाजा पार्टी में आंतरिक संघर्ष भी तेजी से बढ़ रहा है। सबसे अहम बात यह है कि कांग्रेस कार्यकर्ता प्रदेश प्रभारी व पार्टी के अन्य वरिष्ठ पदाधिकारियों का भी लिहाज नहीं कर रहे हैं यही वजह है कि पार्टी प्रदेश प्रभारी कांग्रेस हाईकमान का प्रतिनिधि होने के बाद भी कार्यकर्ता उनसे अभद्रता करने में पीछे नहीं हैं। इसका उदाहरण हाल ही में पार्टी के राष्ट्रीय कांग्रेस महासचिव व प्रभारी दीपक बावरिया के साथ पहले रीवा में और अब विदिशा की घटना है। इससे पता चलता है कि पार्टी के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह की समन्वय बैठकें भी कांग्रेसियों पर असर नहीं डाल पा रही हैं। जबकि दिग्विजय जहां दौरे पर जाते हैं, वहां कांग्रेसियों के साथ पंगत में बैठकर भोजन करते हैं और सभी से गुजबाजी एवं आपसी विवाद भुलाकर कांग्रेस को जिताने का संकल्प कराते हैं। कांग्रेस के अंदर की कलह और आए दिन होने वाले इन आपसी विवादों से चुनाव के समय पार्टी का माहौल सुधरने की जगह बिगड़ता जा रहा है।
अचानक बदला मीडिया प्रभारी
कांग्रेस के अंदर किस कदर अंतर्कलह है इसका ताजा उदाहरण है पार्टी के प्रदेश मीडिया प्रभारी मानक अग्रवाल। उन्हें करीब तीन ताह पहले ही मीडिया प्रभारी नियुक्त किया गया था। अचानक पता नहीं क्या हुआ कि 26 जुलाई को उन्हें इस पद से हटा दिया गया। यह तक हुआ जब उन्हें कमलनाथ का कट्टर समर्थक माना जाता है। सूत्रों का कहना है कि वे विरोधियों की गुटबाजी का शिकार हो गए। वहीं उज्जैन में सिंधिया ने पत्रकार वार्ता में उनके पास बैठी नूरी खान को कुर्सी से उठा दिया। नूरी ने सार्वजनिक तौर पर इसे महिलाओं का अपमान बताया।
बावरिया भी बन चुके हैं विवाद की वजह
कमलनाथ के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद पहला विवाद कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव के महेश्वर से आए समर्थकों का दीपक बावरिया से हुआ था। बावरिया ने यादव वंश को लेकर एक टिप्पणी कर दी। इस पर उनके पुतले जल गए थे। इसके बाद मंदसौर में मीनाक्षी नटराजन के खिलाफ काम करने वाले राजेंद्र गौतम को पार्टी में जगह दी गई तो नटराजन के समर्थकों ने इस्तीफे की घोषणा कर दी। किसी तरह इस मामले को शांत किया गया।
बैठकों से आ रही विवाद की खबरें
ऐसा नहीं है कि दीपक बावरिया के साथ ही कांग्रेसियों द्वारा धक्का-मुक्की अथवा हंगामा किया जा रहा है। इंदौर, खरगोन में दिग्विजय सिंह एवं राष्ट्रीय सचिव की मौजूदगी में भी ऐसा घटनाएं हुई है। हालात यह है कि जहां भी कांग्रेस की बैठक हो रही हैं वहां से विवाद की खबरें आ रही हैं। पार्टी को मजबूत करने के लिए कांग्रेसजनों ने भले कुछ न किया हो, पर टिकट हासिल करने के लिए वे किसी भी स्तर पर जाने के लिए तैयार है। कांग्रेस ने नेता वैसे भी भाजपा के मुकाबले घर बैठे हैं, यदि पार्टी इन झगड़ों पर काबू न पाया तो हमेशा की तरह फिर पार्टी को इसका नुकसान हो सकता है। बावरिया इन झगड़ों से इतने तंग आ गए कि उन्होंने कांग्रेसजनों को संघ से सीखने की सलाह तक दे डाली और नए विवाद को जन्म दे दिया।