भोपाल/मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। कर्मचारियों की
पदोन्ननति के मामले में अब भी सरकार का रुख स्पष्ट नहीं हो पा रहा है। यही वजह है कि पांच माह में लगभग एक दर्जन बैठकें करने के बाद भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा गठित मंत्री समूह अब तक किसी भी तरह के नतीजे पर नहीं पहुंच सका है। इसकी वजह से प्रदेश में करीब बीते साढ़े पांच साल से सरकारी अधिकारी-कर्मचारियों को पदोन्नति के बगैर की काम करने पर मजबूर होना पड़ रहा है। दरअसल यह पूरा मामला अब राजनैतिक नफा नुकसान के पेंच में ऐसा फंसा है कि वह अब सरकार के लिए भी लिए गले की फांस बन चुका है। इस मामले में अन्य प्रदेशों में निर्णय लिया जा चुका है, लेकिन प्रदेश सरकार कोई भी फैसला नहीं ले पा रही है। खास बात यह है कि अब तक जितनी भी बैठकें हुई हैं उसमें चर्चा करने के बाद मामले को अगली बैठक के लिए टाल दिया जाता है। इस मामले में फैसला नहीं लिए जाने से बीते सालों में जहां अब तक साठ हजार कर्मचारी बगैर पदोन्नत हुए रिटायर्ड हो चुके हैं, वहीं लगातार हजारों कर्मचारी अब भी इसी हालत में रिटायर्ड होते जा रहे हैं। बीते रोज एक बार फिर इस मामले में मंत्री समूह की बैठक हुई, लेकिन फिर मामले को 8 फरवरी तक के लिए टाल दिया गया है। अब इस बैठक में अपाक्स व सपाक्स के पदाधिकारियों को भी बुलाने का जरूर तय किया गया है। इस समूह का गठन बीते साल सितंबर में किया गया था। मंत्री समूह में गृह मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा, जल संसाधन मंत्री तुलसीराम सिलावट, वन मंत्री विजय शाह, सहकारिता मंत्री अरविंद भदौरिया और स्कूल शिक्षा राज्य मंत्री इंदर सिंह परमार शामिल हैं। प्रदेश में साढ़े पांच साल से पदोन्नति पर रोक लगी होने से कर्मचारियों में न केवल निराशा का माहौल है, बल्कि उनमें सरकार के प्रति नाराजगी भी है। सरकार की ओर से बनाए गए मंत्री समूह से कर्मचारियों को बड़ी उम्मीद बंधी थीं, लेकिन इस मामले में अब तक कोई ठोस निर्णय नहीं लिए जाने की वजह से अब इस समूह को लेकर भी उनकी आशा निराशा में बदलने लगी है। खास बात यह है कि जब-जब मंत्री समूह की बैठकें होती हैं, तो कर्मचारियों को आस बंधने लगती है, लेकिन बैठक समाप्त होते ही उनमें ए क बार फिर से निराशा छा जाती है। मंत्रालय के सूत्रों की मानें तो पदोन्नति पर लगी रोक से कर्मचारियों की नाराजगी से सरकार भी वाकिफ है, लेकिन कर्मचारियों को पात्रतानुसार पदोन्नति कैसे दी जाए, मंत्री समूह इसका कोई फार्मूला तैयार नहीं कर पा रहा है। यही वजह है कि हर बार बैठकें टाल दी जाती है। खास बात यह है कि कल हुई बैठक में मंत्री समूह ने अगली बैठक में सपाक्स और अजाक्स के प्रतिनिधियों को बुलाने का निर्णय लिया है, जबकि इससे पहले भी मंत्री समूह सपाक्स और अजाक्स के प्रतिनिधियों को दो बैठकों में बुलाकर उनकी राय ले चुका है। दरअसल, मप्र हाईकोर्ट की मुख्य पीठ जबलपुर ने 30 अप्रैल, 2016 को मप्र लोक सेवा (पदोन्नति) अधिनियम-2002 खारिज कर दिया था। इस कानून में अनुसूचित जाति-जनजाति वर्ग के कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण देने का प्रावधान है। राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। यह मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। हाईकोर्ट के फैसले के बाद से प्रदेश में कर्मचारियों की पदोन्नति पर रोक लगी है। तब से अब तक 60 हजार से ज्यादा अधिकारी-कर्मचारी सेवानिवृत्त हो चुके हैं, इनमें कई ऐसे अधिकारी-कर्मचारी हैं, जो पदोन्नति के बिना ही सेवानिवृत्त हो गए। तभी से कर्मचारी संगठन सरकार से पदोन्नति देने की मांग कर रहे हैं।
यह था नागराज केस
2006 में आए नागराज से संबंधित मामले में अदालत ने कहा था कि पिछड़ेपन का डेटा एकत्र किया जाएगा। ये भी कहा गया था कि प्रमोशन में आरक्षण के मामले में क्रीमीलेयर का सिद्धांत लागू होगा। सरकार अपर्याप्त प्रतिनिधित्व और प्रशासनिक दक्षता को देखेगी। सर्वोच्च न्यायालय ने इस केस में आदेश दिया था कि राज्य एससी/एसटी के लिए प्रमोशन में रिजर्वेशन सुनिश्चित करने को बाध्य नहीं है। हालांकि, अगर कोई राज्य अपने विवेक से ऐसा कोई प्रावधान करना चाहता है तो उसे क्वांटिफिएबल डेटा जुटाना होगा ताकि, पता चल सके कि समाज का कोई वर्ग पिछड़ा है और सरकारी नौकरियों में उसका उचित प्रतिनिधित्व नहीं है।
एक साल बाद भी अनुशंसा पर अमल नहीं
सरकार ने अधिकारी-कर्मचारियों को उच्च पद का प्रभार देकर पदनाम दिए जाने को लेकर दिसंबर, 2020 में उच्च स्तरीय समिति का गठन किया था। कमेटी ने कर्मचारियों को उच्च पद का प्रभार देने के संबंध में जनवरी, 2021 में शासन को अनुशंसा संबंधी रिपोर्ट सौंप दी थी। इसके बाद अब तक सरकार कर्मचारियों को उच्च पदों का प्रभार सौंपे जाने के संबंध में कोई फैसला ही नहीं कर सकी है। इसकी वजह से इस रिपोर्ट की अनुशंसाओं पर अमल ही शुरू नहीं हो पा रहा है।
क्या कह चुका है सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह उस फैसले को दोबारा नहीं ओपन करेगा जिसमें कहा गया है कि एससी और एसटी को रिजर्वेशन में प्रमोशन दिया जाएगा, ये राज्य को तय करना है कि इसे कैसे लागू किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच के सामने कई राज्यों की ओर से यह कहा गया था कि एससी और एसटी को प्रमोशन में रिजर्वेशन देने में कुछ बाधाएं हैं जिन्हें देखने की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने कहा था कि वह इस बात को साफ करना चाहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच का नागराज और जरनैल सिंह से संबंधित वाद में दिए गए फैसले में वह दोबारा नहीं जाना चाहते। उन फैसलों को दोबारा ओपन करने की जरूरत नहीं है।