आज स्वतंत्रता का इतिहास देश का बच्चा-बच्चा जानता है,
इसलिए यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि स्वतंत्रता हमें किन बलिदानों के फल स्वरुप मिली। बल्कि हमें वर्तमान पीढ़ी को और आने वाली पीढ़ी को यह सिखाना चाहिए कि इस स्वतंत्रता को अपनी आंतरिक चेतना का हिस्सा कैसे बनाएं। कैसे स्वतंत्र चेतना बनें। कैसे अपनी परंपराओं, अपनी संस्कृति, अपनी भाषा और अपने वांग्मय को लेकर गौरव का अनुभव करें। अपने समृद्ध इतिहास को तलाशने का प्रयास करें और विस्मृत की गई ऐतिहासिक विभूतियों को अपना आदर्श बनाने की कोशिश करें।
अगर चेतना के स्तर पर जाकर देखें तो भारतवर्ष कभी परतंत्र रहा ही नहीं। आक्रांताओं ने भारतवर्ष पर आक्रमण करके इस पर कुछ वर्ष तक शासन अवश्य किया, किंतु भारत की स्वतंत्र चेतना को नष्ट करने में सफल नहीं हो सके। यही कारण है कि भारत अपने स्वतंत्रता के मूल्यों को तमाम विरोधाभासों के बावजूद संजोने में कामयाब रहा, बल्कि भारत का एक बड़ा भूभाग उस सांस्कृतिक एकता को भी कायम रखने में कामयाब रहा जो भारत की मूल अवधारणा से विकसित हुई थी। स्वतंत्रता दिवस पर हमें बच्चों को यह बताने की आवश्यकता है कि हमारी वैदिक परंपरा से लेकर वर्तमान परंपरा तक स्वतंत्रता का हर जगह सम्मान किया गया। केवल अपनी ही नहीं बल्कि दूसरे की स्वतंत्रता को भी हमने उतना ही महत्व दिया। यही कारण है कि भारत में सभी समाज और सभी वर्ग फले-फूले। भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां हर वर्ग के राजा-महाराजा और सामंत हुए। 3000 वर्ष के इतिहास में भारत ने किसी देश पर आक्रमण नहीं किया। हूण, कुषाण, तैमूर, तातार, मुगल, अंग्रेज जैसे आक्रांता इस देश पर समय-समय पर आक्रमण अवश्य करते रहे लेकिन भारत अपनी आंतरिक स्वतंत्र चेतना के कारण इनसे अप्रभावित रहा, बल्कि भारत भूमि के जिन निवासियों ने आक्रांताओं की धार्मिक परंपराओं को अपनाया, उन्होंने भी भारत की संस्कृति को नहीं त्यागा। अतिथि उनके लिए भी देवता ही रहा। वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा को उन्होंने भी अपनाया। और यही उनकी स्वतंत्र चेतना थी।
आज स्वतंत्रता की वर्षगांठ के अवसर पर हमें एक नागरिक के रूप में अपने दायित्वों का बोध होना बहुत आवश्यक है। हमें राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझने की आवश्यकता है। राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारी परिलक्षित होती है कानून का पालन करने से, ईमानदारी बरतने से और मेहनत और लगन से काम करने से। विशेष बात यह है कि यह सारे गुण हमारे भारतीय वांग्मय में और हमारे धर्म ग्रंथों में भी लिखे हुए हैं, इसलिए जब हम कर्मण्येवाधिकारस्ते के सिद्धांत का पालन करते हैं तब राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों का बोध स्वत: ही हो जाता है। यदि हम वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा को अपनाते हैं, तो राष्ट्र के हर निवासी के प्रति सद्भाव और सौहार्द स्वत: ही विकसित हो जाता है। यह सब हमारे धर्म, हमारी संस्कृति और हमारे साहित्य का हिस्सा है और यही संविधान में एक व्यवस्था के रूप में हमें प्रदान किया गया है। स्वतंत्रता दिवस पर हमें चेतना की स्वतंत्रता को सच्चे अर्थों में आत्मसात करना है।
आज इसी स्वतंत्र चेतना को जीवित करने और अक्षुण्ण बनाए रखने की आवश्यकता है। तभी स्वतंत्रता सार्थक और मूल्यवान बन सकेगी। हम सब अपनी स्वतंत्रता को कायम रख सकें। भारतवर्ष को विश्व में अग्रणी बना सकें। ज्ञान विज्ञान और आध्यात्मिक चेतना में विश्व में सर्वोपरि बन सकें… इस स्वतंत्रता दिवस पर यही कामना है। आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की 76वीं वर्षगांठ की हार्दिक शुभकामनाएं।
(लेखक पूर्व पुलिस अधिकारी हैं)