“बच्चों की शिक्षा नहीं, मुनाफे की दुकान बनते निजी स्कूल – अजय सिंह की आवाज़ जरूरी”
लेखक-बलराम पांडेय
मध्यप्रदेश विधानसभा में पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह द्वारा उठाया गया निजी स्कूलों की मनमानी का मुद्दा न केवल सामायिक है, बल्कि आमजन के दर्द की सीधी अभिव्यक्ति भी है। आज शिक्षा का क्षेत्र, जो देश का भविष्य संवारने का माध्यम होना चाहिए, मुनाफे की मंडी में तब्दील हो चुका है। निजी स्कूल शिक्षा नहीं, बल्कि व्यापार का केंद्र बनते जा रहे हैं – और इस कड़वी सच्चाई को अजय सिंह ने सदन में खुलकर सामने रखा।

छोटे बच्चों के भारी स्कूल बैग से लेकर किताबों की रंगीन छपाई बदल-बदलकर अभिभावकों की जेब काटने तक, स्कूलों ने शोषण के नए-नए तरीके इजाद किए हैं। “एप्पल का रंग हर साल बदलना” कोई मासूम मज़ाक नहीं, बल्कि यह एक गहरी मुनाफाखोरी की मानसिकता को दर्शाता है। स्कूल तय करते हैं कि किताबें कहां से खरीदनी हैं, ड्रेस कहां से लेनी है – यह खुलेआम बाज़ारवाद है, जिसमें माता-पिता असहाय ग्राहक मात्र रह गए हैं।
अजय सिंह ने जब यह सवाल उठाया कि जब एनसीईआरटी की किताबें सीबीएसई के लिए मान्य हैं तो फिर प्रदेश के सभी स्कूलों में उन्हें अनिवार्य क्यों नहीं किया जा सकता, तो यह सवाल सरकार की नीयत और उसके क्रियान्वयन तंत्र दोनों को कठघरे में खड़ा करता है। यह चिंताजनक है कि भोपाल कलेक्टर द्वारा बनाई गई निरीक्षण समिति की सूची तक त्रुटिपूर्ण है – इससे बड़ा लापरवाही का प्रमाण और क्या होगा?
सरकार ने जवाब में कुछ कार्रवाइयों का हवाला दिया, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। नियम केवल कागज़ों में नहीं, ज़मीन पर लागू होने चाहिए। करोड़ों की फीस वापसी अगर जबलपुर जैसे ज़िलों में संभव है, तो बाकी ज़िलों में क्यों नहीं? क्या न्याय भी क्षेत्रीय सीमाओं में बंटा हुआ है?
अजय सिंह का यह कहना कि “मंत्री जी के नाती-पोते भी निजी स्कूलों की लूट का शिकार बनेंगे”, केवल एक तंज नहीं, बल्कि सत्ता को आईना दिखाने वाली चेतावनी है। यह वक्त है कि सरकार केवल जवाब न दे, बल्कि ठोस कार्रवाई करे। निजी स्कूलों की जवाबदेही तय हो, एनसीईआरटी किताबें अनिवार्य हों, और हर अभिभावक को यह भरोसा मिले कि उसका बच्चा शिक्षा ले रहा है – शोषण नहीं झेल रहा।
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कांग्रेस को इससे क्या राजनीतिक लाभ मिलेगा?
इस मुद्दे को मजबूती से उठाकर अजय सिंह न केवल जनता के बीच कांग्रेस की छवि एक जनहितैषी पार्टी के रूप में स्थापित कर रहे हैं, बल्कि यह पार्टी के लिए ग्रामीण और शहरी मध्यम वर्ग, विशेषकर शिक्षित अभिभावकों के बीच पकड़ मजबूत करने का अवसर भी है।
निजी स्कूलों में लूट की शिकायत हर मोहल्ले, हर कस्बे और हर ज़िले में है। यह ऐसा विषय है जो राजनीतिक से ज़्यादा सामाजिक है – और कांग्रेस अगर इसे निरंतर आवाज़ देती रही, तो पार्टी को आगामी चुनावों में अभिभावकों, शिक्षकों और युवा मतदाताओं का भरोसा हासिल हो सकता है।
विपक्ष की भूमिका सिर्फ विरोध करने की नहीं होती, बल्कि वैकल्पिक नीति और समाधान सुझाने की होती है। अजय सिंह का यह रुख बताता है कि कांग्रेस अब एक सक्रिय, जनमुद्दों पर आधारित और ज़मीन से जुड़ी राजनीति की ओर अग्रसर है।