नई दिल्ली : अयोध्या की विवादित जमीन राम मंदिर और बाबरी मस्जिद मामले में शुक्रवार (20 जुलाई) को देश की सर्वोच्च अदालत में अहम सुनवाई होने वाली है. पिछली बार इस मुद्दे पर सुनवाई के दौरान कोर्ट में शिया वक्फ़ बोर्ड की ओर से कहा गया था कि हम इस महाने देश में सौहार्द, एकता, शांति और अखंडता के लिए अयोध्या की विवादित ज़मीन पर मुस्लिम समुदाय के हिस्से को राम मंदिर निर्माण के लिए देने के लिए तैयार हैं.
मुस्लिम पक्ष की तरफ से बहस करते हुए राजीव धवन ने तालिबान द्वारा बुद्ध की मूर्ति तोड़े जाने का उदाहरण देते हुए कहा कि उन्हें ये कहने में कोई संकोच नहीं कि 1992 में जो मस्जिद गिराई गई वो हिन्दू तालिबानियों द्वारा गिराई गई. मुस्लिम पक्ष की तरफ से उत्तर प्रदेश सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार को इस मामले में नियुट्रल भूमिका रखनी थी लेकिन उन्होंने इसको तोड़ दिया.
निर्माण कार्य से जुड़े मजदूरों के कल्याण के लिए सेस के इस्तेमाल के मामले में सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा. पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 34 हजार करोड़ का मामला है आप हमें बेवकूफ बनाने की कोशिश कर रहे हैं. दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने सात मई को आदेश दिया था कि निर्माण कार्य से जुडे मजदूरों के लिए मॉडल कल्याणकारी योजना बनाकर वेबसाइट पर डाली जाए. सुनवाई में कोर्ट को बताया गया कि मंत्रालय ने 11 मई को इसे वेबसाइट पर डाला और एक महीने बाद उतार लिया.कोर्ट ने इसी पर नाराजगी जताई और कहा कि ये कैसे हो सकता है. सरकार की ओर से कहा गया कि वेबसाइट NIC चलाता है.
दरअसल सुप्रीम कोर्ट टाइटल सूट से पहले अब वो इस पहलू पर सुनवाई के रहा है कि मस्जिद में नमाज पढना इस्लाम का इंट्रीगल पार्ट है या नही. कोर्ट पहले ये देखेगा कि क्या संविधान पीठ के 1994 के फैसले पर फिर से विचार करने की जरूरत है या नहीं कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का इंट्रीगल पार्ट नहीं है. इसके बाद ही टाइटल सूट पर विचार होगा
1994 में पांच जजों के पीठ ने राम जन्मभूमि में यथास्थिति बरकरार रखने का निर्देश दिया था ताकि हिंदू पूजा कर सकें. पीठ ने ये भी कहा था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का इंट्रीगल पार्ट नहीं है. 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला देते हुए एक तिहाई हिंदू, एक तिहाई मुस्लिम और एक तिहाई राम लला को दिया था.