इस बार प्रदेश में हो रहे विधानसभा चुनाव में तीस लाख युवा तय करेंगे की सत्ता किसकी हो। यह वे युवा हैं जो पहली बार मतदान में हिस्सा लेने जा रहे हैं। यह बात अलग है कि इनमें से अधिकांश युवा भाजपा के चुनावी मुद्दों से वास्ता नहीं रखते हैं। भाजपा अब भी प्रदेश में डेढ़ दशक पुराने मामलों को मुद्दा बनाने पर तुली है, जबकि
युवाओं के साथ ही आम आदमी भी इन्हें मुद्दा मानने को तैयार नहीं दिखते हैं। इसके बाद भी भाजपा और उसके रणनीतिकार अब भी दिग्विजय सिंह शासन की नाकामियों के सहारे चुनावी वैतरणी पार करने की तैयारी में लगे हुए हैं। इस बीच बीते दिनों एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें दिग्विजय सिंह कह रहे हैं कि उनके बोलने से कांगे्रस के वोट कट जाते हैं। राजनीतिक गलियारों में उस वीडियो ने खूब सुर्खियां बटोरी। अब प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान चुनावी मौसम में दावा कर रहे हैं कि उनके शासनकाल में मप्र ही प्रदेश बीमारू राज्यों की सूची से बाहर आ गया है। इसके लिए वे खुद ही अपनी पीठ ठोक रहे हैं। इसके बाद भी प्रदेश के युवा सरकार से खुश नजर नहीं आ रहे हैं। वजह भी साफ है बढ़ता भ्रष्टाचार और और बंद होते रोजगार के साधन। दरअसल इस चुनाव में 30 लाख से ज्यादा ऐसे युवा मतदाता हैं जो पहली बार मतदान करने वाले हैं। इन्होंने होश संभाला तो प्रदेश में भाजप की ही सरकार थी। सीएम के रूप उन्होंने शिवराज को ही सामने पाया है। इसके अलावा करीब सवा दो करोड़ मतदाता ऐसे हैं जिनकी उम्र 35 से कम है। वे भी बालिग होने के बाद से भाजपा की शिव सरकार को देख रहे हैं।
अब भी बरकरार हैं पुराने मुद्दे
प्रदेश में बीते डेढ़ दशक से भाजपा की सरकार है। इसके बाद भी मुद्दे वही हैं। अंतर सिर्फ इतना है पहले यह मुद्दे भाजपा के थे, लेकिन अब वही मुद्दे कांग्रेस के हैं। उमा भारती ने 2003 में सडक़, बिजली और पानी के मुद्दे पर दिग्विजय सिंह को सत्ता से बाहर कर दिया था। यह वो दौर था जब प्रदेश में बिजली और सडक़ों की स्थिति भयावह थी। इन मामलों में हालात में कुछ सुधार हुआ है लेकिन अब भी जमीनी हकीकत इसके आस पास ही बनी हुई है। यही नहीं इस दौरान रोजगार की हालत खराब हुई तो भ्रष्टाचार बढ़ा है। यह बात अलग है कि अब भाजपा सरकार के खिलाफ घपलों घोटालों के कई गंभीर आरोप हैं तो व्यापमं व अवैध उत्खनन जैसा मामला भी बड़ा मुद्दा बनने जा रहा है।
नई पीढ़ी चाहती है विकास
इस बार 2018 में ऐसे युवा वोटर्स बड़ी तादाद में है जो न तो 2003के पहले की स्थिति से ज्यादा वाकिफ है औ न ही उन्हें इससे ज्यादा फर्क पड़ता है कि 15 साल पहले सत्ता पर काबिज लोगों ने तय किया। 21वीं सदी की ये पीढ़ी जानना चाहती है कि मप्र आज देश के उन्नत राज्यों की तुलना में पीछे क्यों है। इंटरनेट युग में पली बढ़ी ये पीढ़ी शिवराज सरकार की तुलना दिग्विजय सिंह के शासन से कतई नहीं करना चाहती।
5 करोड़ 8 लाख मतदाता
प्रदेश में कुल वोटरों की संख्या 5 करोड़ 8 लाख से ज्यादा है। पहली बार मतदान करने वाल वोटरों की संख्या 30 लाख 46.822 है यानी कि मतदाताओं के कुल प्रतिशत का 6.50 प्रतिशत। इनमें 35 से साल से नीचे वाले वोटरों की संख्या 2 करोड़ 24 लाख के करीब है जो कुल वोटरों का 44.10 प्रतिशत होता है। जाहिर है कि युवा वोटर्स को लुभाना दोनों ही पार्टियों के लिए बेहद जरूरी है।
रोजगार बन रहा बड़ा मुद्दा
शिवराज सरकार के प्रति एंटीइनकमबेंसी से लेकर कांग्रेस का साफ्ट हिंदुत्व और एट्रोसिटी एक्ट जैसे कई मुद्दे चर्चा में है। किसानों, दलितों, सवर्णों और महिलाओं सहित हर वर्ग के वोटर्स को अपनी ओर खींचने की हर मुमकिन कोशिश चरम पर है। ये भी सच है कि सत्ता की चाबी उसी के पास रहेगी जो प्रदेश के युवा वोटर्स को साध सकेगा। शिवराज अपनी युवा स्वरोजगार जैसी योजनाओं के दम पर युवाओं के भारी समर्थन का दम भरते हुए अबकी बार 200 पार का दावा कर रहे हैं। हालांकि यह दावा अभी हवा हवाई ही नजर आ रहा है।