तृप्ति देसाई का एजेंडा क्या है, महिलाओं का हक़ या चर्चा में आना?

तृप्ति देसाई का एजेंडा क्या है, महिलाओं का हक़ या चर्चा में आना?

मंगलभारत
तृप्ति देसाई ने दावा किया था, ‘मैं 17 नवंबर को किसी भी हाल में सबरीमला मंदिर में प्रवेश करूंगी.’

तृप्ति देसाई के इस बयान ने कोच्चि एयरपोर्ट के बाहर माहौल गरम कर दिया. प्रदर्शनकारियों की भीड़ जुट गई. गहमागहमी होने लगी.

शुक्रवार सुबह साढ़े चार बजे वो कोच्चि एयरपोर्ट पहुंची. तृप्ति का दावा है कि पुलिस ने प्रदर्शनकारियों की वजह से उन्हें एयरपोर्ट से बाहर ही नहीं निकलने दिया.

तृप्ति का कहना है कि उन्होंने जो टैक्सी ड्राइवर बुक किया था, उसे भी प्रदर्शनकारियों ने धमकियां दी थीं.

शुक्रवार सुबह बीबीसी से बात करते हुए तृप्ति ने कहा, “प्रदर्शनकारी तृप्ति देसाई से डरते हैं क्योंकि अगर एक बार मैं एयरपोर्ट से बाहर निकल पाई तो मैं मंदिर में घुसे बिना नहीं रहूंगी.

सिर्फ़ हम वो औरतें हैं जिन्हें एयरपोर्ट पर ही रोक दिया गया है. ये ही हमारे आंदोलन की सफलता है. क्योंकि हम सात औरतों से लाखों प्रदर्शनकारी डर गए हैं.”

शाम होते-होते तृप्ति देसाई ने सबरीमला मंदिर जाने की अपनी ज़िद छोड़ दी और कोच्चि हवाई अड्डे से ही पुणे लौट गईं.

तृप्ति सबसे पहले महाराष्ट्र के शनि शिंगणापुर के मुख्य स्थल पर महिलाओं के प्रवेश की रोक के ख़िलाफ़ आंदोलन करके चर्चा में आईं थीं. लेकिन बहुत कम ही लोगों को ये पता होगा कि उन्होंने महाराष्ट्र के वरिष्ठ नेता अजित पवार के साथ भी पंगा लिया था.

अजित पवार बनाम तृप्ति देसाई

पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद पवार के भतीजे और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के वरिष्ठ नेता अजित पवार के कार्यकर्ताओं ने अजित सहकारी बैंक और पत्र संस्था शुरू की थी. इस संस्था में हुए कथित भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ तृप्ति ने साल 2008 में आंदोलन किया था.

तृप्ति का दावा है कि इस आंदोलन के दौरान उन्हें जान से मारने की धमकियां दी गई थीं.

2009 में निकाय चुनावों के दौरान उन्होंने कांग्रेस पार्टी से चुनाव लड़ने का टिकट भी मांगा था, लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला था.

भूमाता ब्रिगेड

तृप्ति मूल रूप से महाराष्ट्र को कोल्हापुर ज़िले की रहने वाली हैं. उनका परिवार बाद में पुणे आकर रहने लगा था. पुणे एसएनडीटी कॉलेज से उन्होंने होम साइंस स्नातक की डिग्री ली है.

पुणे के पत्रकार अश्विनी सातव बताती हैं कि तृप्ति अन्ना हज़ारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से भी जुड़ी रही हैं. बाद में वो बुधाजीराव मुड़िक की भूमाता ब्रिगेड नाम की संस्था से जुड़ गईं.

सहारा समय की पत्रकार प्रतिभा चंद्रन के मुताबिक ये संस्था किसानों की पत्नियों की मदद के उद्देश्य से बनाई गई थी. शुरुआत में इस संस्था का मंदिर प्रवेश आंदोलन से कोई संबंध नहीं था.

तृप्ति बाद में मुड़िक की संस्था से अलग हो गईं और 2010 में अपनी भूमाता रणरागिनी ब्रिगेड शुरू कर दी. अश्विनी बताती हैं कि तृप्ति उस संस्था से तो अलग हो गईं लेकिन उसका नाम अपने साथ जोड़ लिया.

इस नई संस्था के ज़रिए ही वो मंदिरों में महिलाओं के प्रवेश के लिए लड़ती हैं.

शनि शिंगणापुर विरोध प्रदर्शन

तृप्ति देसाई राष्ट्रीय मीडिया में पहली बार तब आईं जब उन्होंने साल 2016 में महाराष्ट्र के चर्चित शनि शिंगणापुर मंदिर के मुख्यस्थान तक महिलाओं के प्रवेश पर रोक के मुद्दे पर प्रदर्शन किए.

शनि शिंगणापुर मंदिर में प्रवेश की मांग को लेकर महिला अधिकार कार्यकर्ता विद्या बाल और अधिवक्ता नीलिमा वर्तक ने बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी. इसी पर फ़ैसला करते हुए हाई कोर्ट ने महिलाओं को मंदिर के मुख्य स्थान पर जाने की अनुमति दी थी.

अनुमति मिलने के बाद मंदिर के मुख्य स्थान पर सबसे पहले पहुंचने वाली महिलाओं में तृप्ति देसाई नहीं थीं. कार्यकर्ता प्रियंका जगताप और उनकी साथी महिलाएं सबसे पहले यहां तक पहुंचने में क़ामयाब रहीं थीं.

इस मामले में तृप्ति देसाई ने न ही कोर्ट की लड़ाई लड़ी और न ही वो सबसे पहले स्थल पर जाने वाली महिला बन पाईं. लेकिन सबसे ज़्यादा सुर्खियां मीडिया में उन्हें ही मिलीं.

राजनीतिक महत्वाकांक्षा

तृप्ति देसाई के काम पर नज़र रखने वालों का कहना है कि उनमें राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी है. तृप्ति देसाई ने कई राजनीतिक पार्टियों में अपनी जगह बनाने की कोशिश भी की लेकिन क़ामयाब नहीं हो सकीं.

पत्रकार प्रतिभा कहती हैं, “मैंने सबसे पहले उन्हें राजनीतिक मंच पर ही देखा था. वहां भी वो अपनी छाप छोड़ने की कोशिश कर रहीं थीं. बाद में मैंने उन्हें कई बार बीजेपी के मंच पर देखा. जब राहुल गांधी पुणे आए तो कांग्रेस के मंच पर भी देखा और जब आम आदमी पार्टी चर्चा में आने लगी तो वो उसके मंचों पर भी दिखने लगीं.”

प्रतिभा कहती हैं, “तृप्ति ने मुझसे कहा था कि अगर आम आदमी पार्टी ने मुझे टिकट दे दिया तो मैं सुप्रिया सुले के ख़िलाफ़ खड़ी हो जाऊंगी. इसी से पता चलता है कि उनमें राजनीतिक महत्वाकांक्षा थी. राजनीति में कुछ करने की महत्वाकांक्षा उनमें अब भी है.”

वहीं कुछ पत्रकारों का ये भी मानना है कि राजनीति में सबको साथ लेकर चलने के लिए जिस व्यक्तित्व की ज़रूरत होती है, वो अभी उनके पास नहीं है.

अश्विनी कहती हैं, “2012 में उन्होंने पुणे के निकाय चुनावों में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा था मगर हार गई थीं. मुझे नहीं लगता कि वो किसी एक पार्टी से जुड़ पाएंगी.”

क्या तृप्ति ये सब पब्लिसिटी के लिए करती हैं?

तृप्ति देसाई पर आरोप लगते रहें हैं कि वो वास्तविक बदलाव के बजाए अपने आप को चर्चित करने के लिए आंदोलन में शामिल होती हैं. सबरीमला के मुद्दे पर सनातन संस्था ने भी उन पर निशाना साधा है.

हिंदुत्ववादी संगठन सनातन संस्था के प्रवक्ता चेतन राजहंस कहते हैं, “तृप्ति देसाई लोकप्रियता की भूखी हैं. उन्हें राजनीति में अपनी जगह बनानी है इसलिए वो हिंदू धर्म के ख़िलाफ़ बोलती रहती हैं. हाजी अली दरगाह में महिलाओं के प्रवेश के मुद्दे पर प्रदर्शन उन्होंने बीच में ही छोड़ दिया था. हिंदू धर्म के अलावा वो किसी और धर्म की प्रथाओं का प्रखर विरोध नहीं करती हैं.”

अश्विनी सातव तृप्ति देसाई के चर्चा में रहने के स्वभाव का उदाहरण देते हुए कहती हैं, पुणे के पास ही एक देवाची हुबड़ी नाम का गांव है जहां कानिफनाथ के मंदिर में महिलाओं को प्रवेश वर्जित है. ये गांव पुणे के बिलकुल पास में है. लेकिन यहां महिलाओं को प्रवेश दिलाने के लिए उन्होंने कुछ भी नहीं किया है. इसकी एक वजह ये हो सकती है कि शनि शिंगणापुर, हाजी अली या सबरीमला जैसे तीर्थस्थल बेहद चर्चित हैं. यहां कुछ करने से चर्चा मिलती है जबकि वो छोटा मंदिर गुमनाम सा है.

अश्विनी कहती हैं, “शनि शिंगणापुर के बाद तृप्ति के पास करने के लिए कुछ नहीं था, इसलिए उन्होंने लड़कियों के साथ कथित छेड़छाड़ करने वाले रोड रोमियो के ख़िलाफ़ अभियान चलाया था. उन्होंने कई लड़कों की पिटाई भी की थी. ये भी सब भी पब्लिसिटी स्टंट ही था. वो इन घटनाओं के वीडियो बनवाती थीं और पत्रकारों को देती थीं.”

ऐसे आरोपों से इनकार करते हुए तृप्ति देसाई कहती हैं, “महिलाओं के हक़ के लिए लड़ना मेरा कर्तव्य है. आजकल बराबरी आ गई है. महिला और पुरुषों को समान अधिकार हैं. मंदिर के मामले में भी उन्हें बराबर अधिकार मिलने चाहिए. जब तक ये अधिकार नहीं मिलते, मैं लड़ती रहूंगी.”

तृप्ति ने अब तक क्या-क्या किया

शनि शिंगणापुर के बाद उन्होंने हाजी अली दरगाह, कोल्हापुर के महालक्ष्मी मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश, नासिक के त्र्यंबकेश्वर और कपालेश्वर मंदिरों के गर्भगृह में महिलाओं के प्रवेश की मांग करते हुए प्रदर्शन किए थे. हाजी अली दरगाह में प्रवेश के लिए प्रदर्शन के समय इस आंदोलन में शामिल मुस्लिम संगठनों के साथ उनका मतभेद हो गया था.

नासिक के पत्रकार संजय पाठक के मुताबिक नासिक के मंदिर में प्रवेश के मुद्दे पर प्रदर्शन के दौरान उन पर सोडा बोतल से हमला भी किया गया था. 2016 में अदालत के फ़ैसले के बाद उन्होंने त्र्यंबकेश्वर के गर्भगृह में प्रवेश तो किया लेकिन उन्हें बहुत बड़े विरोध का सामना करना पड़ा.

कपालेश्वर मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश की कोशिश के दौरान उन्हें रोक दिया गया था. जब उनकी गाड़ी शहर से गुज़र रही थी तब उस पर सोडा बोतलें फेंकी गईं थीं. इसके बाद वो कभी नासिक नहीं गईं.

इस सबके बावजूद तृप्ति देसाई मंदिरों और धर्मस्थलों में महिलाओं के प्रवेश के मुद्दे को उठाती रहीं.

अश्विनी कहती हैं, “तृप्ति ने मंदिरों में महिलाओं के प्रवेश को लेकर कई बार मार भी खाई है, लेकिन उन्होंने इस मुद्दे ज्वलंत रखा है. इसका क्रेडिट तो उन्हें देना ही होगा.”