मध्य प्रदेश में एक ही उत्तर ‘कांटे की टक्कर ’, 230 में से तीन दर्जन सीटों पर त्रिकोणीय संघर्ष.

मध्य प्रदेश में एक ही उत्तर ‘कांटे की टक्कर ’, 230 में से तीन दर्जन सीटों पर त्रिकोणीय sangharsh.

लेखक मनीष द्विवेदी प्रबंध संपादक मंगल भारत राष्ट्रीय .समाचार पत्रिका.

मध्य प्रदेश में भाजपा की 15 साल की इन्कम्बेंसी, जीएसटी, नोटबंदी, किसानों की नाराजगी और दलित एक्ट ने विधानसभा चुनाव की लड़ाई को दिलचस्प बना दिया है। कोई लहर नहीं है। चाहे जिससे बात करिए, उत्तर होता है ‘टक्कर कांटे की है।’ आम लोग मन की बात नहीं बताते। ऐसी प्रतिक्रिया देते हैं, जिसका ठोस निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता।

बीते कुछ दशकों में यह पहला ऐसा चुनाव है, जिसमें विशेषज्ञ भी हवा का रुख नहीं भांप पा रहे हैं। 230 सीटों में से करीब तीन दर्जन से ज्यादा स्थानों पर त्रिकोणीय संघर्ष चल रहा है। उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे इलाकों में कहीं बसपा-सपा ने यह स्थिति पैदा की है तो कहीं बागियों ने भाजपा और कांग्रेस की नाक में दम कर रखा है। बड़ी बात यह है कि भ्रष्टाचार कोई मुद्दा नहीं है। इसे समझने के लिए यह बताना ही पर्याप्त है कि व्यापमं घोटाले का मुख्य आरोपी डॉ. जगदीश सागर बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहा है।

अपने आप में यह बात भी मजेदार है कि दो ध्रुवी सियासत के चलते भाजपा और कांग्रेस ने परस्पर खुद को ही मुद्दा बना रखा है। भाजपा यदि ‘बिना बिजली, सड़क और पानी’ वाले 15 साल पुराने दिग्विजय राज के दिनों की याद दिला रही है तो कांग्रेस द्वारा भी भाजपा सरकार की पंद्रह वर्ष की एंटी इन्कम्बेंसी का लाभ उठाने के लिए उसकी नाकामियों को गिनाया जा रहा है। बेरोजगारी, महिला उत्पीड़न से लेकर तमाम ऐसे मुद्दे हैं, जो हर चुनाव में सत्तारूढ़ दल के साथ चिपके रहते हैं। लेकिन कोई ऐसा एक मुद्दा नहीं है, जो किसी पार्टी के खिलाफ या समर्थन में ‘लहर’ के बतौर महसूस किया जा रहा हो अथवा दिखाई पड़ रहा हो। लिहाजा भीतर से न तो भाजपा इस बात पर आश्वस्त है कि वह एक बार फिर सरकार बनाने जा रही है और न ही कांग्रेस बेफिक्र होने की स्थिति में है।

चुनाव-प्रचार के तीन दिन शेष

चुनाव प्रचार में तीन दिन शेष बचे हैं। भाजपा अपने सबसे बडे़ स्टार प्रचारक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अब तक छह चुनावी रैलियां करवा चुकी है, चार होना बाकी है। जबकि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पिछले दो माह के दौरान दर्जन भर से ज्यादा रैलियां और रोड शो कर चुके हैं। वह आज और कल दो दिन अलग-अलग हिस्सों में जाने वाले हैं। बसपा सुप्रीमो मायावती और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव भी अपने मजबूत उम्मीदवारों को वक्त देकर 2019 का कथानक तय करने में लगे हैं। बहरहाल, मध्य प्रदेश में यदि भाजपा लगातार चौथी बार सत्ता में वापस लौटती है तो यह माना जाना चाहिए कि इससे पार्टी को वो ताकत मिलेगी, जिसकी 2019 के आम चुनाव में उसे खासी जरूरत पड़ने वाली है। वहीं अपने कमजोर संगठन और ऐतिहासिक गुटबाजी के बावजूद अगर कांग्रेस 15 साल बाद सरकार बनाने में कामयाब होती है तो मध्य प्रदेश का नतीजा उसके लिए संजीवनी का काम करेगा। इतना ही नहीं कठिन दौर में राहुल गांधी की लीडरशिप को मजबूती मिलेगी और नतीजे साबित करेंगे कि देश की सबसे पुरानी पार्टी को लोग अब नई नजर से देख रहे हैं।