1993 से 20 सीटें छुड़ा रहीं कांग्रेस का पसीना

विधानसभा चुनाव के लिए 28 नवंबर को मतदान होना है। प्रदेश की सभी सीटों पर भाजपा-कांग्रेस निगाहें गड़ाए हुए हैं। इनमें से कुछ सीटें ऐसी हैं, जहां कांग्रेस टकटकी लगाए हुए हैं, क्योंकि वर्ष 1993 में 20 सीटें कांग्रेस का पसीना छुड़ा रही हैं और वह इन सीटों पर अब तक जीत दर्ज नहीं कर पाई हैै। 1998 मेें सरकार में आने के बावजूद कांग्रेस इन सीटों पर भाजपा की व्यूह रचना को नहीं भेद पाई थी।
प्रदेश में 230 विधानसभा सीटें हैं। इनमें से करीब 100 सीटें ऐसी हैं, जहां कंाग्रेस के लिए राह आसान नहीं है। वहीं करीब 50 सीटें ऐसी हैं जहां कांग्रेस पिछले दो चुनावों में लगातार हार रही है।


इन सीटों पर जीत के लिए कांग्रेस की नजर
कांग्रेस की 2018 के चुनाव में 230 सीटों के साथ हरसूद, खंडवा जैसी सीटों पर नजर बनाए हुए हैं। इसके अलावा भिंड की मेहगांव, मुरैना की अम्बा, शिवपुरी जिले की शिवपुरी और पोहरी, सागर जिले की रेहली और सागर, सतना के रैगांव और रामपुर, रीवा की देवतालाब औ त्यौथर, सीहोर की आष्टा और सीहोर, अशोकनगर जिले की अशोक नगर, सिवनी की बरघाट, जबलपुर की जबलपुर कैंट, होशंगाबाद जिले की सोहागपुर, छतपुर जिले की महाराजपुर भोपाल की गोविंदपुरा सीट सहित इंदौर-2 और इंदौर-4 भी शामिल हैं।
1993 से बदलते गए हालात
कमजोरी और मजबूती की बात करें तो भाजपा वर्ष 2003 के बाद दिन-प्रतिदिन ताकत पकड़ती गई। जबकि कांग्रेस 1993 के बाद लगातार कमजोर होती गई। हालांकि 1998 में दिग्विजय सिंह ने सरकार बनाकर कांग्रेस को दोबारा जिंदा किया। लेकिन 2003 में भाजपा सत्ताा में वापस आई। तब से लेकर वर्तमान तक कांग्रेस लगातार सत्ता से बाहर है।