मध्यप्रदेश चुनाव : अब 36 घंटे चलेगा ‘रणनीतिक युद्ध’

भोपाल मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए सोमवार को प्रचार की अवधि समाप्त होने के बाद अब राजनीतिक दलों ने मतदाताओं को लुभाने के लिए अलग-अलग रणनीति बनाई हैं। इस दौरान इनका रणनीतिक कौशल ही चुनावी समर में जीत दिलाएगा। राज्य में भाजपा जहां हर हाल में चौथी पारी चाहती है, वहीं कांग्रेस के लिए यह चुनाव ‘करो या मरो’ का है। 15 साल तक राज्य में सत्ता से बाहर रहने के बाद कांग्रेस को इस बार इनकंबेंसी पर भरोसा है। गुजरात विधानसभा के नतीजों के बाद कांग्रेस खासी सतर्कता बरत रही है। पार्टी आलाकमान ने

प्रादेशिक क्षत्रपों को अति आत्मविश्वास में न आने के लिए चेताया है। विधानसभा क्षेत्रों को क्लस्टर में विभाजित कर निगाह रखी जा रही है और अगले 36 घंटों में पार्टी के खिलाफ जाने वाले समीकरणों को सुधारने के लिए कहा गया है। प्रदेश में करीब तीन दर्जन सीटें ऐसी हैं, जहां कांग्रेस को बागी और असंतुष्ट परेशान कर रहे हैं। जहां तक भाजपा का प्रश्न है तो उसने भी कुछ प्रतिकूल रिपोर्टों के बाद अपनी रणनीति में बदलाव किया है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित इलाकेवार नेता उन सीटों पर हालात सुधारने के लिए तैनात किये गए हैं, जहां से पार्टी को नुकसान की खबरें हैं। करीब पंद्रह मंत्री ऐसे हैं, जो बुरी तरह घिरे हुए हैं। ये प्रचार अभियान के दौरान अपनी सीट छोड़कर बाहर निकलने की हिम्मत नहीं जुटा सके हैं।

भाजपा का ध्यान निर्णायक क्षेत्रों पर
भाजपा ने चुनाव प्रचार के आखिरी दिन भी पार्टी ने उन क्षेत्रों को फोकस किया, जहां से सीन बनना या बिगड़ना है। अमित शाह मालवा-निमाड़ में रहे तो उमा भारती को बुंदेलखंड भेजा गया। स्मृति ईरानी विंध्य में रहीं और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह अपनी ससुराल शहडोल भेजे गए, ताकि आसपास की सीटों पर सकारात्मक माहौल बने। पूरे चुनाव अभियान को देखें तो भाजपा ने गुजरात की तरह मध्यप्रदेश में भी बढ़त बनाकर रखी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 10 चुनावी रैलियां कराईं। अमित शाह ने कुल 21 दिन दिए। राजनाथ सिंह, अरुण जेटली, सुषमा स्वराज से लेकर केंद्रीय मंत्रिमंडल के तमाम सदस्यों ने धुंआधार प्रचार किया। उत्तरप्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ की दर्जनों सभाएं कराईं। हेमा मालिनी, परेश रावल और मनोज तिवारी समेत संगठन के भी कई पदाधिकारियों को भेजा। बीजेपी के दिवंगत नेता प्रमोद महाजन चुनावी राजनीति में ‘कारपेट बॉम्बिंग’ का शब्द लेकर आए थे, भाजपा ने फील्ड से लेकर मीडिया तक वही किया।

कांग्रेस ने लगाई पूरी ब्रिगेड
दूसरी ओर अपने भविष्य के लिए लड़ रही कांग्रेस ने कमजोर संसाधनों के बावजूद किला फतह करने के लिए पूरा जोर लगाया। कुछ दिनों के अंतराल से राहुल गांधी ने कई दौरे किए, सॉफ्ट हिंदुत्व का प्रदर्शन किया, रोड शो किए और करीब दो दर्जन सभाएं कीं। प्रचार के लिए बड़े नेताओं को भेजा गया, पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह भी आए। राजबब्बर, नवजोत सिंह सिद्धू की ड्यूटी लगाई तो नगमा व अमीषा पटेल भी आईं। बावजूद इसके कांग्रेस को अंदेशा है, लिहाजा वह अगले दो दिन और उसके बाद ईवीएम की रखवाली तक कोई जोखिम मोल लेना नहीं चाहती।