मामा से लगाव का, या वक्त है बदलाव का !

मामा से लगाव का, या वक्त है बदलाव का !

कौशल किशोर चतुर्वेदी — 2018 के विधानसभा चुनाव ने सट्टाबाजार को भी दुविधा में डाल दिया है। सट्टाबाजार ने पहले कांग्रेस की सरकार बना दी, तो फिर भूलसुधार कर भाजपा को बढ़त दिला दी। ऐसा लगा कि मानो चुनाव में कंफ्यूजन के जुमले ने पूरी चुनावी फिजां को ही कंफ्यूज कर दिया। जो लोग पहले भाजपा की बंपर सरकार बना रहे थे, वह भी यह कहते नजर आ रहे हैं कि खींचतान से सरकार बनेगी, पर बनेगी भाजपा की। दूसरी तरफ कांग्रेस का दावा है कि 140 सीट लेकर मध्यप्रदेश में पिछले 15 साल का वनवास खत्म करके रहेंगे। तस्वीर अभी भी साफ नहीं है। कोई कह रहा है कि महिलाओं के वोट प्रतिशत में 2013 की तुलना में 2018 में पुरुषों की तुलना में दो फीसदी ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है। अगर यह मत पूरा कांग्रेस को जाता है तो भाजपा संकट में है। अगर आधा भी शिवराज के खाते में है तो भाजपा आनंद में है। भाजपा कहती है कि मतों में बढ़ोतरी संबल योजना के हितग्राहियों की है, इसलिए मतदाता ने चौथी बारी शिवराज की पारी का जनादेश दिया है। कांग्रेस का दावा है कि परेशान किसान का भाजपा के तेरह साल के शासन से भरोसा उठ गया है। अन्नदाता ने मतदाता के बतौर इस बार हाथ के पंजे का बटन दबाकर वीवीपैट में कंफर्म कर कमल के नाथ का साथ दिया है। अब ईवीएम क्या राज उगलती है, इसके लिए 11 दिसंबर तक की लंबी प्रतीक्षा है। सो तब तक इंतजार कीजिए। वक्त सब कुछ बता देगा कि 2018 के अंत में मतदाता का मन क्या बोलता है? यानि कि मामा से लगाव का या वक्त है बदलाव का ?

पंद्रह जिले करेंगे पंद्रह साल का हिसाब चुकता

विश्लेषण के अलग-अलग आधार हो सकते हैं। उनमें से मेरा नजरिया यह है कि प्रदेश के पंद्रह जिले भाजपा सरकार के पंद्रह साल का हिसाब चुकता करने के लिए काफी है। यह वे जिले हैं, जहां मतदान में 2013 की तुलना में अभी 4.10 फीसदी से लेकर 7.38 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है। इन 15 जिलों में विधानसभा की सूची में पहले पायदान पर विराजमान श्योपुर से लेकर विधानसभा की सूची में अंतिम पायदान पर विराजमान नीमच जिला तक शामिल है। इनमें श्योपुर (4.11%), पन्ना (6.11%), सतना (4.89%),सिंगरौली (4.26%), अनूपपुर (5.18%),बैतूल (5.05%), हरदा (4.85%),रायसेन (5.29%), देवास (4.90%),खंडवा (4.82%), अलीराजपुर (4.46%), झाबुआ (7.38%), धार (5.69%), रतलाम (4.10%) और नीमच (4.31%) शामिल हैं। इन जिलों में विधानसभा की 58 सीटें हैं। इनमें से वर्तमान स्थिति में 45 सीटें भाजपा के पास हैं और 11 सीटें कांग्रेस के पास, एक बसपा और एक अन्य का विधायक है। दिलचस्प पहलू यह है कि इसमें आदिवासी बहुल जिले हैं, एससी सीटें हैं और सामान्य सीटों के प्रतिनिधि भी हैं। बढ़े हुए मतदान का असर क्या रंग लाता है, वर्तमान सरकार को बदरंग करेगा या फिर खुशी के रंग भरेगा…तस्वीर की पूरी झलक यहां से मिलना तय है। या फिर यूं कहें कि यह पंद्रह जिले 2018 के विधानसभा चुनाव में ट्रेंड सेटर साबित होंगे। मामा के माथे पर तिलक करेंगे या फिर कमल के नाथ को बाहों में भरेंगे…सब कुछ साफ कर देंगे।

75 पार वाली सीटें करेंगी बेढ़ा पार

विश्लेषण का एक पहलू यह भी है कि 2018 के विधानसभा चुनाव ने करीब 75 फीसदी मतदान का रिकॉर्ड बनाया है। प्रदेश में पहली बार 75 का आंकड़ा मतदान ने भी छू लिया है। वैसे सभी को पता है कि मध्यप्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान को 75 पार से प्यार नहीं है। उन्होंने अपने मंत्रिमंडल से दो मंत्रियों बाबूलाल गौर और सरताज सिंह को सिर्फ इसलिए बाहर का रास्ता दिखाया था कि वे 75 पार थे। अब मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव ने मुसीबत पैदा कर दी है। यहां 75 फीसदी से ज्यादा मतदान वाली सीटों की संख्या 173 है। यानि कि प्रचंड बहुमत दिलाने की ताकत रखती हैं 75 पार मतदान वाली यह 173 विधानसभा सीटें। इनमें से 66 सीटें ऐसी हैं, जहां 80 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ है। आश्चर्य या संयोग की बात यह है कि इन सीटों में भी विधानसभा की सूची में पहली सीट श्योपुर से लेकर आखिरी सीट नीमच जिले की जावद भी शामिल है। बढ़ा हुआ मतदान चंबल से लेकर मालवा तक विस्तार लिए हुए है। यह मतदान शिवराज सरकार के काम का मुरीद है या फिर मन में खफा-खफा सा है, इसका खुलासा 11 दिसंबर को होना है। इसमें भी खास असर डालेंगी वह 66 सीटें जिनमें प्रदेश के मतदान 75 फीसदी से भी 5 से 15 फीसदी तक ज्यादा मतदान हुआ है। मतदाताओं ने संबल योजना को सराहा है या फिर किसान ने भावांतर को नकारा है। आदिवासियों ने मामा को गले लगाया है या फिर दूरी बनाने का मन बनाया है। यह अभी भले ही कंट्रोल यूनिट के कंट्रोल में हो, पर 11 दिसंबर को इसकी आवाज पूरे प्रदेश, देश और विश्व में गूंजेगी।

यह वही मध्यप्रदेश है, जहां विश्व में सबसे ज्यादा कृषि विकास दर का रिकॉर्ड बना है। यह वही प्रदेश है, जहां देश में सबसे ज्यादा विकास दर दर्ज की गई है। यह वही प्रदेश है, जिसने लगातार पांच साल तक कृषि कर्मण पुरस्कार हासिल कर खुद को बीमारू राज्य की कतार से बाहर निकाला है। इसी प्रदेश ने महिलाओं के खिलाफ अपराध, बलात्कार में भी अव्वल स्थान हासिल किया है। एक संयोग यह भी है कि इस आधी आबादी ने इस बार 2013 की तुलना में पुरुषों की तुलना में दोगुने प्रतिशत से मतदान कर हर विधानसभा में अपना मत साफ किया है। अब अपराध की बात पर वह गुस्सा है या फिर अपराध रोजनामचे में पूरी शिद्दत के साथ दर्ज किए जा रहे हैं और भांजे-भांजियों का जो ख्याल मामा शिवराज रख रहे हैं, उसका शुक्रिया अदा किया है। इसका खुलासा 11 दिसंबर को होगा।

सट्टा बाजार के साथ ज्योतिषी भी दिग्भ्रमित

वैसे एक बात और बता दें कि ग्राउंड रिएलिटी क्या बोल रही है, यह दीगर बात है। पर ज्योतिषीय गणनाएं भी सट्टा बाजार की तरह भ्रम फैला रही हैं। ज्योतिषी, संत-महात्मा और भविष्यवक्ता भी दो खेमों में बंटे नजर आ रहे हैं। कुछ के मुताबिक इस बार बिना मदद नैया पार नहीं होगी तो कुछ का कहना है कि कम सीटों से मामा की सरकार बनेगी तो कुछ का कहना है कि अब बदलाव का वक्त है। खैर कयास लगते रहेंगे, पर हकीकत हकीकत रहेगी जो फिलहाल कंट्रोल यूनिट के सीने में दफन है। 11 दिसंबर तक यही गुनगुनाते रहिए कि … इंतहा हो गई इंतजार की, आई न कुछ खबर मेरी सरकार की। बस 11 दिसंबर को इंतजार की इंतहा का अंत होगा और अगली पांच साल का जनादेश साफ हो जाएगा।