CG Election 2018: भाजपा के लक्ष्य पर थे गरीब, कांग्रेस ने खड़ा कर दिया किसान

CG Election 2018: भाजपा के लक्ष्य पर थे गरीब, कांग्रेस ने खड़ा कर दिया किसान.

रायपुर। नईदुनिया राज्य ब्यूरो छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव किन मुद्दों पर लड़ा जाएगा यह तय करने से पहले ही भाजपा ने यह तय कर दिया था कि गरीब को ध्यान में रखकर रणनीति बनानी है। सरकार ने सालभर पहले से गरीबी उन्मूलन के कार्यक्रमों पर खुले हाथ खर्च करना शुरू किया। गरीबों को जूते से लेकर उपकरण, साइकिल, घर सबकुछ दिया गया, लेकिन ऐन चुनाव के वक्त कांग्रेस ने बड़ी चतुराई से किसान को केंद्र में लाकर खड़ा कर दिया। इससे सरकार की रणनीति कुछ गड़बड़ाई जरूर पर आखिरी वक्त आने से पहले इसे दुरूस्त करने की कोशिश की गई।

अब यह गुणाभाग लगाया जा रहा है कि किसकी रणनीति कारगर होगी। गरीब या किसान कौन ज्यादा अहम है। दरअसल सरकार की चुनावी रणनीति मंत्रालय में बैठे वरिष्ठ अफसरों ने ही तय की थी। मुख्यमंत्री के निर्देश पर ऐसे कार्यक्रम तय किए गए जो वंचित तबके को सीधे लाभ पहुंचा सकें।

एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं-देखिए किसान से कोई खास फर्क नहीं पड़ता। कांग्रेस ने सालों पहले गरीबी हटाओ का नारा दिया, आज भी वही नारा देश में चल रहा है। गरीबी हटे या न हटे, चुनाव तो इसी नारे पर लड़ा जाता है। तो फिर कांग्रेस के किसान वाले मुद्दे से फर्क क्या पड़ता है, इस सवाल के जवाब में अफसर कहते हैं कि फर्क तो कोई नहीं पड़ता।

देखना यह है कि हम गरीबी हटाओ के कार्यक्रमों को वोट में कितना बदल पाए। सबसे ज्यादा असर तो केंद्र की मोदी सरकार की योजनाओं का है। गरीबों को पक्के मकान दिए गए हैं। जिन्होंने कल्पना भी नहीं की थी कि उनके घरों में बिजली आएगी उन्हें तलाशकर सौभाग्य योजना के तहत बिजली दी गई।

आलोचना से कुछ नहीं होता, गरीब के घर उज्ज्वला गैस का कनेक्शन पहुंचा तो क्या उन्हें खुशी नहीं मिली। इन कार्यक्रमों को भुनाया जा सका या नहीं यह नतीजों से तय होगा। अभी इतना तो तय हो चुका है कि यह चुनाव गरीब वर्सेस किसान था। गरीब किसान भी हैं पर सभी किसान गरीब नहीं हैं। जो गरीब किसान हैं उन्हें तो सरकारी योजनाओं का पहले ही बहुत लाभ मिल चुका है। इसके बाद भी अगर उनका वोट भाजपा के पक्ष में नहीं गया तो इसमें रणनीति की कमी नहीं है, बल्कि जो काम किया गया उसका के्रडिट नहीं लिया जा सका यही माना जाएगा।

गरीबों पर खुलकर लुटाया

चुनावी साल में भाजपा सरकार ने गरीबों पर खुलकर राशि खर्च की। चुनाव की घोषणा होने तक पहले ग्राम सुराज अभियान और बाद में विकास यात्रा के बहाने भाजपा सरकार गरीबों को मोबाइल, भूमि का पट्टा, टिफिन बॉक्स, साइकिल, सिलाई मशीन, औजार आदि बांटती रही। तेंदूपत्ता श्रमिकों चरणपादुका और बोनस बांटा गया। किसानों को भी इस बार बोनस दिया गया। संगठित और असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए तमाम योजनाएं चलाई गईं। इसका असर देखा जाना बाकी है।

यह है गुणा भाग का फार्मूला

नीतियां बनाने वाले आइएएस जानते हैं कि नीति कौन सी कारगर होगी। एक अधिकारी ने कहा-वर्ष 2011 की सामाजिक आर्थिक जनगणना देखिए। देश में 24.39 करोड़ परिवार हैं। यानी औसतन प्रति पांच व्यक्ति पर एक परिवार। इन परिवारों में से 17.59 करोड़ यानी लगभग 73 फीसद गांवों में रहते हैं। जो गांव में रहते हैं उनमें से 51.14 फीसद दिहाड़ी मजदूर हैं।

24.03 फीसद ऐसे परिवार हैं जो खेती या रोजगार से घर नहीं चला पाते, यानी जिनकी आय पांच हजार से कम है। गांव के पांच फीसद परिवारों में कोई न कोई नौकरी में है। इनमें भी अधिकांश तृतीय या चतुर्थ श्रेणी के ही हैं।

यानी कुल आबादी के 80 फीसद का तो जीवन यापन में खेती से सीधा सरोकार ही नहीं है। जो 20 फीसद बचे उनका 88 फीसद लघु या सीमांत किसानों का है। 12 फीसद बड़े किसान हैं जिनमें से अधिकांश सीधे खेती से नहीं जुड़े हैं और शहरों में पलायन कर चुके हैं। तो योजना किसे ध्यान में रखकर बनाई जानी चाहिए। किसान को या गरीब को। इस सवाल का जवाब 11 दिसंबर को नतीजों से मिलेगा।