संजय टाइगर रिजर्व बना एसडीओ व रेंजर का चारागाह। मंगल भारत बलराम पांडे की रिपोर्ट

संजय टाइगर रिजर्व बना एसडीओ व रेंजर का चारागाह।

सीधी जिले के संजय टाइगर रिजर्व को जहां वन्य प्राणियों के संरक्षण का खासकर बाघों के संरक्षण का प्रमुख केंद्र बनाया गया है वही विभाग के लिए केंद्र और प्रदेश सरकार द्वारा करोड़ों रुपयों का बजट दिया जाता है। लेकिन जमीनी स्तर पर उसका किस तरह क्रियान्वयन होता है और अधिकारियों द्वारा बजट को किस तरह ठिकाने लगाया जाता है इसका जीता जागता उदाहरण यहाँ देखा जा सकता है जिसमें विभाग के अनुविभागीय अधिकारी भरत सिंह गौर और रेंजर बीरभद्र सिंह टाइगर रिजर्व को अपना चारागाह बना लिया है । तिवारी जी ने बतलाया कि जब तक ऐसे अधिकारी विभाग में अमरबेल की तरह जड़ जमाए बैठे रहेंगे तब तक विभाग की योजना के उद्देश्य की पूर्ति एवं आबंटित बजट का सही उपयोग किया जाना संभव ही नहीं है।
मुआवजा निर्धारण जैसे संवेदनसील मामले में भी रेंजर और एसडीओ के द्वारा काफी धांधली की गई है। विस्थापितों को मुआवजा निर्धारण में भी काफी सौदेबाजी की जाती है। जहां की पात्र लोग अगर सौदेबाजी नहीं किए हैं तो पात्र व्यक्ति को अपात्र बना दिया जाता है जबकि अपात्र व्यक्ति सौदेबाजी से पात्र बन जाता है। बताते चलें कि विस्थापन नीति में 18 वर्ष से ऊपर के व्यक्ति को पैकेज के रूप में 10 लाख रुपए मुआवजा निर्धारित है। अपात्र व्यक्ति अगर कमीशन की सौदेबाजी कर लेते हैं तो उन्हें फर्जी तरीके से पात्र बनाकर 10 लाख रुपये का पैकेज दिला दिया जाता है फिर उसी में बंदरबांट किया जाता है। विस्थापित परिवार के पुनर्वास के संबंध में घोर लापरवाही की जाती है। प्रभावितो को येन-केन प्रकार से जोर जबरजस्ती भगाना बिभाग का उददशेय रहता है।
इसी तरह पर्यटन के लिए कुछ स्थल निर्धारित है जहां नाममात्र के लिए कार्य करा कर लाखों का फर्जीवाड़ा कर लिया जाता है। इतना ही नहीं है पर्यटन के लिए चमराडोल चौराहा के पास बुकिंग ऑफिस बनाई गई है। लेकिन रेंजर व एसडीओ के सगे संबंधी और उनके चहेते लोगों को उसमें भी खुली छूट रहती है उन्हें विभाग द्वारा टैक्सी उपलब्ध करा दी जाती है और बिना बिल भुगतान के ही पूरे पर्यटन क्षेत्र में भ्रमण कराया जाता है। ऐसे में यह कहना गलत ना होगा कि संजय टाइगर रिजर्व इस समय रेंजर व एसडीओ भरत सिंह का पैतृक जायदाद बना हुआ है। इन सब बातों से जहां स्थानीय लोगों में एसडीओ व रेंजर के रवैया को लेकर आक्रोश है वही विस्थापन मामले में लोग आंदोलन की राह अख्तियार करने को मजबूर हो रहे हैं। इन सभी अनियमितताओं की जड़ एस डी ओ भरत सिंह गौर ही है। जिला कलेक्टर से मांग है कि एसडीओ भरत सिंह गौर और रेंजर बीरभद्र सिंह परिहार के कारगुजारी की जांच, जांच टीम गठित कर कराई जाए और जांच के बाद कार्यवाही किया जाना उचित होगा। रेंजर के द्वारा बिजनेस में आपसी और अपने रिलेटिव को ड्राइवर के नाम से रखकर दोनोंं हाथ से पैसा बटोरने में लगे हैं उनके लिए संजय टाइगर रिजर्व सिर्फ पैसा कमाने का जरिया मात्र रह गया है टाइगर की सुरक्षा से कोई लेना देना नहीं है  जिस ने पैसा दिया उसको  टाइगर दिखा दिया जाता है  और अपनी जिप्सी में भाई ड्राइवर के साथ खुद भी जंगल सफारी मैं बिजी रहते हैं बुकिंग काउंटर में अपने रजिस्टर  को रखने से बुकिंग काउंटर से काउंटर सेतु रिश्ते से संपर्क करके जिप्सी चलाते हैं आखिर कब तक संजय टाइगर रिजर्व्व्व्व के  पर नाम के अवैध तरीके से पैसा कमाने की कोशिश करेंगे वह भी शासकीय कर्मचारी के रूप में इस बार किसी की निगाह ना जाना कहींंं ना कहीं प्रशासनिक एवं उच्च अधिकारियों का सह मालूम पड़ता है इसकी जांच होनी चाहिए और इसके लिए बकायदा नियम एवंंंं कानून सही तरीके से बनाना चाहिए और नियम में लानी चाहिए