बजट 2022-23: आठ बिंदुओं में समझें कि प्रमुख क्षेत्रों को कितना आवंटन हुआ

आठ बिंदुओं में समझाने की कोशिश की है कि पिछले कुछ वर्षों में केंद्र सरकार ने प्रमुख क्षेत्रों और कुछ महत्वपूर्ण कल्याणकारी योजनाओं पर कितना ख़र्च किया है और आने वाले वर्षों में वह इसके लिए कितना  ख़र्च करने की बात कह रही है.

प्रसारण देखते हुए. (फोटो: पीटीआई/स्वप्न महापात्र)

नई दिल्ली: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार को वित्तीय वर्ष 2022-23 का आम बजट पेश किया. इस दौरान भाषण में उन्होंने बजट संबंधी कुछ विवरण तो दिए, लेकिन बजटीय दस्तावेज यह पता लगाने का सबसे अच्छा जरिया होता है कि वास्तव में सरकार की प्राथमिकताएं क्या हैं?

आठ बिंदुओं और तालिकाओं में द वायर  ने यह समझाने की कोशिश की है कि पिछले कुछ वर्षों में केंद्र सरकार ने प्रमुख क्षेत्रों और कुछ प्रमुख कल्याणकारी योजनाओं पर कितना खर्च किया है और आने वाले वर्षों में वह कितना खर्च करने का वादा कर रही है?

राजकोषीय घाटा

आगामी वित्त वर्ष (2022-23) के लिए सरकार ने राजकोषीय घाटे (Fiscal Deficit) की सीमा जीडीपी का 6.4% तय की है. यह बीते वित्तीय वर्ष (2021-22) में तय की गई सीमा 6.8% से कम है.

हालांकि बीते वर्ष में सरकार का राजकोषीय घाटा उसके द्वारा तय की गई सीमा से अधिक यानी 6.9% रहा था.

सीतारमण के अनुसार, 6.4% का लक्ष्य बीते वर्ष की उस घोषणा को ध्यान में रखकर तय किया गया है कि 2025-26 तक हमें राजकोषीय घाटे के 4.5% के लक्ष्य तक पहुंचना है.

शिक्षा

कोविड-19 महामारी के चलते पिछले कुछ साल छात्रों के लिए मुश्किल भरे रहे हैं क्योंकि इस दौरान स्कूल और कॉलेज बंद रहे. विभिन्न सर्वेक्षणों में सामने आया है कि जिन छात्रों की नियमित ऑनलाइन कक्षाओं तक पहुंच नहीं थी, उनकी सीखने और पढ़ने तक की क्षमता में गिरावट आई है.

पिछले वित्तीय वर्ष में सरकार ने शिक्षा के लिए 93,224 करोड़ रुपये का प्रावधान किया था, लेकिन वास्तव में उसने इससे भी कम 88,002 करोड़ रुपये खर्च किए.

कम खर्च का कारण कोविड-19 की दूसरी लहर के चलता लगा लॉकडाउन हो सकता है, इसलिए अब यह सरकार के लिए बेहद महत्वपूर्ण है कि वह इस वर्ष अपने बजटीय व्यय को पूरा खर्च करे. इस साल सरकार का कहना है कि वह 1,04,278 करोड़ रुपये शिक्षा पर व्यय करने जा रही है.

मनरेगा

महामारी के चलते पिछले कुछ सालों में बेरोजगारी में बढ़ोतरी हुई है, जिसके चलते महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार सुरक्षा अधिनियम (मनरेगा) के तहत काम की मांग बढ़ी है.

इस क्षेत्र में काम करने वाले कार्यकर्ताओं का तर्क है कि अपर्याप्त फंड की व्यवस्था के चलते योजना में देरी से भुगतान और रोजगार के मौके न मिलने की शिकायतें आ रही हैं.

पिछले साल इस योजना में पर्याप्त आवंटन नहीं किया गया था, जिसके बारे में सरकार को भी जानकारी है. उन्होंने 73,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया था, लेकिन खर्च 98,000 करोड़ हुआ. यह जानते हुए भी सरकार ने पिछले साल जितना ही 73,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है.

ग्रामीण विकास

एक और क्षेत्र जहां सरकार ने बजट आवंटन में बढ़ोतरी नहीं की है, जबकि बीते वित्तीय वर्ष में देखा गया कि ग्रामीण विकास का बजट जो तय हुआ था, वर्ष खत्म होने पर उससे ज्यादा खर्च हुआ.

बीते वर्ष सरकार ने इस विभाग को 1,33,690 करोड़ रुपये का बजट जारी किया था, लेकिन वास्तविक खर्च 1,55,042.27 करोड़ रुपये हुआ. इसके बावजूद भी इस साल 1,38,203.63 करोड़ का प्रावधान किया गया है, जो कि बीते वित्तीय वर्ष में खर्च राशि से कम है.

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण

हम भारत में कोविड-19 महामारी के तीसरे साल में प्रवेश कर रहे हैं. यह वह महामारी है, जिसने पहले से ही चरमराई भारत की स्वास्थ्य सेवाओं को भयावह रूप से प्रभावित किया है.

पिछले साल स्वास्थ्य मंत्रालय ने उसे आवंटित बजट से भी अधिक राशि खर्च की थी. पिछले साल बजट में इस मद में 73,932 करोड़ रुपये का प्रावधान था, लेकिन संशोधित खर्च 86,000.65 करोड़ हुआ, सरकार ने इस खर्च में मामूली बढ़ोतरी के साथ इस बार 86,200.65 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है.

खाद्य सब्सिडी

खाद्य सब्सिडी में सार्वजनिक वितरण प्रणाली शामिल होती है. इस बार इस मद में जारी बजट में भारी कमी की गई है. ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि कोविड-19 महामारी को दौरान लगे राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के चलते आवंटन बढ़ा दिया गया था.

पिछले साल सरकार ने खाद्य सब्सिडी पर 2,99,354.6 करोड़ रुपये खर्च किए थे. इस साल उसकी योजना 2,07,291.1 करोड़ खर्च करने की है.

पीएम पोषण/मिड डे मील

इस योजना के लिए इस वर्ष उतना ही बजट आवंटन हुआ है जितना कि पिछले वर्ष संशोधित बजट में खर्च हुआ था, जो पिछले वर्ष आवंटित बजट से कम था. बीते वर्ष 11,500 करोड़ रुपयों का प्रावधान था, लेकिन खर्च 10,234 करोड़ रुपये हुए.

इस बार भी 10,234 करोड़ रुपये ही जारी किए गए हैं. अगर सरकार स्कूलों को वापस खोलने और बच्चों को कक्षाओं में बुलाने को लेकर गंभीर है तो मिड डे मील इसका एक अहम हिस्सा है, साथ ही बच्चों के पोषण के लिए भी अहम है.

प्रधानमंत्री किसान योजना

पीएम किसान के लिए आवंटन मोटे तौर पर बीते वर्ष के ही समान रहा है, क्योंकि इस योजना में ज्यादातर अपरिवर्तनीय संख्या में किसानों को एक निश्चित राशि का वितरण होता है.

हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि 2019-20 वित्तीय वर्ष में शुरू हुई इस योजना का वास्तविक बजट तब की अपेक्षा से अब दिसंबर की समाप्त तिमाही तक 15.5 प्रतिशत कम हो गया है.