अफसरों की कार्यशैली बन रही सरकार की मुसीबत

  • वित्त वर्ष के अंत में बजट खर्च करने बदल देते हैं मदें

भोपाल।मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। प्रदेश के अफसरों

की कार्यशैली से आम आदमी ही नहीं बल्कि सरकार भी परेशान है। विभागों के पास पर्याप्त बजट होने के बाद भी वे स्वीकृत काम या तो करते ही नहीं हैं या फिर संबधित मद को बदलकर राशि को दूसरे मद में खर्च कर देते हैं। दरअसल इसकी वजह है अफसरों द्वारा वित्त वर्ष के शुरू होने के बाद काम नहीं करना और जब राशि लैप्स की स्थिति बनने लगती है तो विभाग के बजट की मद बदलकर उसका समायोजन करने में जुट जाते हैं।
हद तो यह है कि यह अफसर पूरे साल बजट का रोना रोते रहते हैं और अंत में राशि को मनचाहे तरीके से खर्च कर देते हैं। इसकी वजह से कई बार तो प्रदेश सरकार को केन्द्र सरकार से मिलने वाली मदद में भी भारी दिक्कतों का समाना करना पड़ता है।
केंद्र की सख्ती के बाद वित्त विभाग उठाएगा कदम
केंद्र सरकार की सख्ती के कारण अब राज्य स्तर पर भी वित्त विभाग ने बजट के कुप्रबंधन पर सख्ती से लगाम लगाने की तैयारी है। केंद्र ने आॅफ बजट कर्ज पर रोक लगाई है। इस कारण वित्त विभाग ने इस पर अमल शुरू कर दिया। इसके बाद अब मद बदलकर बाद में समायोजन की प्रवृत्ति पर भी पूरी तरह रोक लगाने की तैयारी है। अभी बाद में समायोजन कर बजट  एडजस्ट कर लिया जाता है, पर अब वित्त विभाग किसी भी विभाग को इसकी इजाजत नहीं देगा। हर योजना के संबंधित मद का बजट उसी में करना होगा। खर्च का पूरा हिसाब ऑनलाइन  रखना होगा। बड़े प्रोजेक्ट में एडवांस राशि भुगतान की प्रवृत्ति भी बंद होगी। सड़कों-भवनों के निर्माण से लेकर ऐसे अन्य कई बड़े प्रोजेक्ट में एडवांस राशि देने के मामले सामने आए हैं। इनमें एडवांस राशि के बावजूद काम संतोषजनक नहीं हुआ या देरी से हुआ और कुछ मामलों में ठेकेदार ही भाग गए। इस कारण एडवांस पर सख्ती से रोक लगेगी।
अब सीख लेने की तैयारी
दरअसल, इस साल राज्य सरकार को केंद्र सरकार से 44 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा की सहायता राशि मिलनी है, लेकिन यहां बजट लैप्स होने के रिकॉर्ड पहुंचने की स्थिति में मिलने वाली आर्थिक मदद पर सबसे ज्यादा असर पड़ता है। ऐसे में अब प्रदेश सरकार केंद्रीय योजनाओं की मॉनिटरिंग को लेकर सख्ती करने की तैयारी में है। बजट और हिसाब को दुरुस्त रखने पर फोकस किया जाएगा।
मद बदलकर खर्च का रास्ता: केन्द्र  की योजनाओं में कई बार बजट खर्च न करने, उपयोगिता प्रमाण-पत्र न मिलने, हिसाब न देने और खराब प्रदर्शन के कारण बजट में कमी हो चुकी है। दरअसल, ऐसे कई विभाग हैं, जो बजट के कुप्रबंधन का शिकार हैं। इनमें कुछ जगह राज्य स्तरीय लापरवाही से बजट प्रबंधन बिगड़ता है, तो कुछ जगह जिला व उससे निचले स्तर के अमले की लेतलाली भारी पड़ती है। इसमें मुख्य रूप से बजट प्रबंधन से जुड़े अमले की लापरवाही जिम्मेदार रहती है। अनेक जगह राशि आवंटन के बाद पड़ी रह जाती है। मार्च में ऐसे मामलों में मद बदलकर खर्च के जरिए बजट बचाया जाता है।