श्रीमंत-पवैया की…बैठने लगी पटरी, बदलने लगे समीकरण

भोपाल/मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। ग्वालियर चंबल

अंचल में भाजपा के लिए मुसीबत बनी श्रीमंत और पवैया के बीच की दरार अब तेजी से पटना शुरू हो गई है, जिसकी वजह से इस अंचल की राजनीति में अब नए समीकरण भी बनना शुरू हो गए हैं। इसका फायदा भी पार्टी को मिलना तय है। इसकी वजह से अब संगठन से लेकर सरकार तक को राहत महसूस होना शुरू हो गई है। वैसे भी कहा जाता है कि राजनीति में दोस्ती व दुश्मनी स्थायी नहीं होती है। समय के साथ दोस्त व दुश्मन बदलते रहते हैं। दरअसल ग्वालियर की राजनीति में पूर्व मंत्री और हिन्दुत्व वादी नेता जयभान सिंह पवैया शुरू से ही महल विरोधी रहे हैं, जिसकी वजह से पवैया का श्रीमंत से 36 का आंकड़ा रहा है।
यही नहीं  दोनों नेताओं के बीच स्थानीय राजनीति में भी प्रतिद्वंद्विता रहती रही है, जिसकी वजह से इन दोनों नेताओं के बीच व्यक्तिगत रुप से भी कभी पटरी नहीं बैठी। अब श्रीमंत भाजपा में आ चुके हैं , जिसके बाद भी उनके बीच तल्खी बनी हुई थी। इस तल्खी को समाप्त कराने के संगठन व सरकार स्तर से लंबे समय से प्रयास किए जा रहे थे। समय के साथ अब इन दोनों ही नेताओं के बीच अब यह तल्खी तेजी से समाप्त हो रही है। यही वजह है कि अब उनके पारिवारिक कार्यक्रमों में एक दूसरे के आने जाने से नजदीकियां बढ़ती दिखना शुरू हो गई हैं। यही वजह है कि पहली बार पवैया इसी माह 10 तारीख को स्व. माधवराव सिंधिया के जन्म दिवस के मौके पर आयोजित भजन संध्या में शामिल होने के लिए  सिंधिया राजघराने की छतरी पर पहुंचे थे। इसके बाद बीते रोज श्रीमंत पवैया के पिता की बरसी में शामिल होने के लिए उनके पैतृक गांव चीनौर भी पहुंचे। यह बात अलग है कि भाजपा की विचारधारा को आगे बढ़ाने में राजमाता विजयाराजे सिंधिया की बेहद अहम भूमिका रही है।
पार्टी का आला नेतृत्व भी यही मानता है। राजमाता के स्वर्गवासी होने के पहले से ही पवैया ने महल के खिलाफ मोर्चा खोलकर अपनी राजनीति को धार देना शुरू कर दिया था। यही वजह रही की श्रीमंत के पिता और पूर्व केंद्रीय मंत्री माधवराव सिंधिया पर हमेशा पवैया राजनीतिक रुप से हमलावर बने रहते थे। उनके निधन के बाद भी श्रीमंत के परिवार को लेकर पवैया का रुख नहीं बदला , लेकिन अब परिस्थितियां बदल चुकी हैं। श्रीमंत अब भाजपाई हो चुके हैं। उनके भाजपाई बनने से सबसे अधिक असहज पवैया ही थे।
श्रीमंत की कार्यशैली में आ गया बदलाव
दो साल पहले ही कांग्रेसी से भाजपाई बने श्रीमंत अब सधे कदम और संतुलित सर्वव्यापी आचरण करने लगे हैं। यही नहीं उनका आचरण अब पूरी तरह से खांटी संघ दीक्षित स्वयंसेवक के रुप में नजर आना शुरू हो गया है। उनके द्वारा इतने कम समय में भाजपा के अनुकूल सक्रियता और छवि बदलने के तेजी से किए जा रहे प्रयासों से सभी अंचभित हैं। वे अब लगातार सूबे में आते- जाते रहते हैं और पार्टी  नेताओं से संवाद और संपर्क में भी पीछे नहीं रह रहे हैं। इस बीच वे खुद की बनी श्रीमंत की छबि तोड़ने  के प्रयास करते नजर आ रहे हैं। वे अब अपनी छवि आम आदमी के रुप में बनाने में लगे हुए दिखते हैं। फिर मामला चाक पर मिट्टी के बर्तनों को आकार देने का हो या फिर सहस मेले में जाने का हो।
श्रीमंत ने की थी शुरुआत
इन दोनों नेताओं के बीच चल रही तल्खी को दूर करने का बीड़ा श्रीमंत ने ही उठाया। श्रीमंत  पहल करते हुए पवैया के पिता के निधन पर उनके निवास पर शोक  संवेदना व्यक्त करने गए थे। इसका असर यह हुआ क 10 मार्च को श्रीमंत के पिता माधवराव सिंधिया की समाधि पर आयोजित भजन संध्या के मौके पर पवैया केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर व भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा से पहले अम्मा महाराज की छतरी पर पहुंच गए, जिसकी वजह से वहां मौजूद सभी लोग अंचभित रह गए। पवैया के इस कदम के बाद से ही माना जाने लगा कि अब महल और उनके बीच नया राजनीतिक रिश्ता बनना  शुरू हो गया है। इसकी वजह से अब माना जाने लगा है कि अंचल में अब भाजपा की राजनीति में नए समीकरण बनना तय है।