कांग्रेस ने दिया श्रीमंत को घेरने का… दिग्विजय-गोविंद को जिम्मा

भोपाल/मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। मध्यप्रदेश में कमलनाथ

सरकार गिरने का दोष भले ही कमलनाथ खेमा दिग्विजय सिंह को देता है, लेकिन अब भी वे ऐसा नेता है जिन पर पार्टी हाईकमान का पूरा भरोसा बना हुआ है। यही वजह है कि अब उन्हें और नव नियुक्त नेता प्रतिपक्ष गोविंद सिंह को श्रीमंत को उनके ही गढ़ में घेरेने का जिम्मा दिया गया है। कांग्रेस में गोविंद सिंह को दिग्विजय सिंह का बेहद करीबी माना जाता है। यही वजह है कि ग्वालियर चंबल से आने वाले गोविंद सिंह को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया है, तो वहीं दिग्विजय को ग्वालियर चंबल अंचल का पार्टी ने प्रभारी बनाया है। कांग्रेस की इस रणनीति की वजह से श्रीमंत के साथ ही उनके समर्थक बड़े नेताओं के माथे पर अब बल पड़ता दिखना शुरू हो गया है। दरअसल दिग्विजय सिंह कांग्रेस के ऐसे नेता हैं जिनका श्रीमंत के गृह अंचल में बड़ा प्रभाव है। उनके कई समर्थक इस अंचल में हैं।
दिग्विजय सिंह लगातार सिंधिया को घेरने का प्रयास करते रहते हैं। उनके बेटे जयवर्धन सिंह भी ग्वालियर का दौरा करते रहते हैं। वे भी राजनितक रूप से इस अंचल में लगातार सक्रियता बढ़ा रहे हैं। इसके साथ ही अब उन्हें बतौर नेता प्रतिपक्ष गोविंद सिंह का भी साथ मिलेगा। दोनों ही नेताओं का फोकस श्रीमंत को घेरने पर है। गोंविद सिंह इसी अंचल के तहत आने वाले भिंड स्ीट से लगातार 7 बार जीत दर्ज कर चुके हैं। उनका इलाके में अपना प्रभाव भी है। इसकी वजह से ही गोविंद सिंह को नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने से श्रीमंत समर्थकों की चिंताएं बढ़ गई हैं। इसकी वजह है पूर्व से ही श्रीमंत व सिंह के बीच पटरी न बैठना। अंचल की राजनीति में गोविंद सिंह को श्रीमंत का विरोधी माना जाता है। राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो श्रीमंत को पता है कि चंबल में उन्हें शिकस्त देने के लिए कांग्रेस के पास कोई अच्छा चेहरा नहीं है। कमलनाथ भी अब तक श्रीमंत को लेकर कभी सख्त तेवर नहीं दिखा पाए, लेकिन स्थानीय राजनीति में कांग्रेस का चेहरा रहे गोविंद सिंह अक्सर श्रीमंत के खिलाफ मुखर रहते दिख जाते हैं। यही वजह है कि कांग्रेस ने उन्हें नेता प्रतिपक्ष बनाया है। इसकी वजह से ही अब चंबल अंचल में उनका सीधा मुकाबला श्रीमंत से होना तय माना जा रहा है।
श्रीमंत की कमी पूरी करने का प्रयास जारी
कांग्रेस के कई बड़े नेता इस अंचल से आते हैं, लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि उसके पास अब तक श्रीमंत की बराबरी वाला कोई चेहरा नही है। हालांकि सिंधिया के विकल्प में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह है और वह लगातार ग्वालियर चंबल अंचल में सक्रिय भी बने हुए हैं। वे कांग्रेस के आंदोलन, प्रदर्शन में लगातार हिस्सा लेते रहते हैं। बताया जा रहा है कि कांग्रेस द्वारा अबकी बार ग्वालियर चंबल अंचल में जयवर्धन को चुनावी कमान दी जा सकती है। इसकी वजह है अंचल के युवा वोटरों को पार्टी से जोड़े रखना। बीते विधानसभा चुनाव में चंबल अंचल में कांग्रेस ने बीजेपी को बुरी तरह से मात दी थी। ग्वालियर चंबल अंचल की 34 सीटों में से 26 सीट पर कांग्रेस विजयी रही थी , जबकि एक सीट पर बसपा का कब्जा हुआ था, उस समय मिली कांग्रेस की जीत का श्रेय श्रीमंत को ही दिया गया था। अब वहीं श्रीमंत कांग्रेस के विरोध में खड़े हुए हैं।
कांग्रेस के निशाने पर श्रीमंत
दरअसल 2018 में श्रीमंत और उनके समर्थकों ने कमलनाथ सरकार को गिरा दिया था , जिसका बदला लेने के लिए कांग्रेस पार्टी अब 2023 के विधानसभा चुनाव में अपनी रणनीति तैयार कर रही है। कांग्रेस द्वारा चंबल अंचल में सिर्फ श्रीमंत को ही निशाने पर रखा जा रहा है। इसी वजह से ही उनसे सीधे टक्कर लेने वाले नेता कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और नेता प्रतिपक्ष गोविंद सिंह को मैदान में उतारा गया है। इन दोनों नेताओं की ग्वालियर चंबल अंचल में समर्थकों की बड़ी फौज है, इसके साथ ही क्षेत्र में इन दोनों नेताओं की अच्छी पकड़ है। गोविंद सिंह भी अपने जिले भिंड के अलावा ग्वालियर और मुरैना में भी खासा प्रभाव रखते हैंं, क्योंकि यहां पर सबसे अधिक क्षत्रिय वोट बैंक है। अबकी बार 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ग्वालियर चंबल अंचल में कमजोर नहीं होना चाहती है इसलिए अबकी बार कांग्रेस का टारगेट सिर्फ श्रीमंत हैं।
कांग्रेस को सता रही आरक्षित वर्ग के छिटकने की चिंता
भले ही कांग्रेस अभी से पूरी तरह से चुनावी मोड में आती दिख रही है, लेकिन उसे सबसे बड़ी चिंता आरक्षित वर्ग के मतदाताओं को पार्टी से जोड़े रखने की सता रही है। दरअसल बीते चुनाव में कांग्रेस को अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति वर्ग का बड़ा समर्थन मिला था, जिसकी वजह से ही कांग्रेस डेढ़ दशक बाद सत्ता में वापसी करने में सफल हुई थी। इसी वजह से ही कमलनाथ कैबिनेट में इन दोनों ही वर्गों के करीब एक दर्जन चेहरों को जगह दी गई थी, लेकिन इसके बाद भी उनमें से ऐसा कोई चेहरा नहीं बन सका जो इस वर्ग पर पूरी तरह से प्रभाव रख सके। इसी वजह से कांग्रेस की चिंता बढ़ी हुई है। दरअसल बीते चुनाव से सबक लेते हुए भाजपा ने इन वर्गों को साथ पाने के लिए एक साथ तमाम प्रयास शुरू कर रखे हैं। ऐसे में कांग्रेस को ऐसे चेहरों की तलाश है जो इन दोनों वर्ग पर अपनी पकड़ रखता हो। यह बात अलग है कि कांग्रेस के पास कांतिलाल भूरिया उमंग सिंघार और बाला बच्चन जैसे कुछ आदिवासी चेहरे जरुर हैं, लेकिन वे अपने-अपने इलाकों तक ही सीमित हैं। माना जा रहा है कि चुनाव के मद्देनजर संगठन में बदलाव के बीच कुछ नए चेहरों को मौका दिया जा सकता है। दरअसल, कांग्रेस ने 2018 के विस चुनाव में अनुसूचित जाति (अजा) और अनुसूचित जनजाति (अजजा) की सर्वाधिक सीटों पर जीत हासिल की थी। इसी वजह से कमल नाथ ने इन वर्गों द्वारा दिए गए समर्थन को देखते हुए अपनी कैबिनेट में अनुसूचित जनजाति वर्ग से बाला बच्चन, उमंग सिंघार, सुरेंद्र सिंह बघेल, ओमकार सिंह मरकाम को तो अनुसूचित जाति वर्ग से नर्मदा प्रसाद प्रजापति को विधानसभा अध्यक्ष, डॉ. विजयलक्ष्मी साधौ, सज्जन सिंह वर्मा, लखन घनघोरिया सहित कई विधायकों को मंत्री बनाया था। मंत्री बनने के बाद भी यह नेता अपने-अपने वर्ग में मजबूत पकड़ बनाने में सफल नहीं रहे हैं। यही वजह है कि पार्टी को पूर्व विधायक फूल सिंह बरैया को कांग्रेस में लाना पड़ा और उन्हें आगे लाने का प्रयास भी किया गया, लेकिन उनके द्वारा दिए जाने वाले बयान ही पार्टी के लिए मुसीबत बनने लगे हैं। इसकी वजह से कमलनाथ के सामने अजा और अजजा वर्ग में नेतृत्व का संकट बना हुआ है।
सरकार बनाने में रहती है महत्वपूर्ण भूमिका
मध्यप्रदेश में सत्ता के लिहाज से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रहती है। यह बात बीते दो दशक के चुनाव परिणामों में सामने आ चुकी है। सूबे में 2003 से 2018 तक के चुनावी आंकड़ो से पता चलता है कि जिस दल को भी इन दोनों वर्ग का साथ मिलता है उस दल की प्रदेश में सरकार बन जाती है। बीते विस चुनाव 2018 में कांग्रेस को साथ मिला तो उसकी सरकार बन गई थी। 2018 के विस चुनाव में कांग्रेस को अनुसूचित जाति की आरक्षित सीटों में से 17 और अनुसूचित जनजाति वर्ग से 30 सीटों पर विजय मिली थी। वर्ष 2003 में प्रदेश की विस में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 34 सीटों में से कांग्रेस को महज 3 सीटें मिली थीं , वहीं अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 41 सीटों में से दो सीटें ही मिल सकी थीं, जिसके चलते उसे सरकार से बाहर होना पड़ा था। इसके बाद 2008 के चुनाव में कांग्रेस को अनुसूचित जाति की आरक्षित 35 सीटों में से 9 पर तो वहीं अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 47 में से 17 पर जीत मिली थी।
संभागीय बैठकों की शुरूआत ग्वालियर-चंबल से : चुनावी तैयारियों के लिए प्रदेश कांग्रेस अब संभागवार बैठकें करने जा रही हैं। इसकी शुरुआत सात मई को ग्वालियर- चंबल संभाग से की जा रही है। इसमें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ सहित सभी वरिष्ठ नेता, विधायक और पदाधिकारी मौजूद रहेंगे। बैठक में चुनाव की तैयारियों को अंतिम रूप देने के साथ स्थानीय नेताओं को जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। पार्टी ने तय किया है कि अब भोपाल के साथ-साथ संभाग और जिला स्तर पर बैठकें की जाएंगी। पहले चरण में संभाग स्तरीय बैठकें होंगी। इसमें पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ क्षेत्र के सभी विधायक, पार्टी पदाधिकारी, पूर्व विधायक और सांसदों को बुलाया जाएगा। इनसे चुनाव की तैयारियों को लेकर जानकारी लेने के साथ मतदान केंद्र स्तर पर संगठन को मजबूत करने की कार्ययोजना पर चर्चा की जाएगी। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने यह भी तय किया है कि वे बूथ, मंडलम और सेक्टर के पदाधिकारियों के साथ जिलेवार बैठकें करेंगे। पार्टी के महामंत्री मीडिया केके मिश्रा ने बताया कि संगठन को विस्तार देने कार्यक्रम बनाए जा रहे हैं। जन आक्रोश रैलियां भी होंगी। इसकी शुरुआत 12 मई को भोपाल से होगी।