एक-एक शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं कई स्कूल, कैसे हो पढ़ाई

भोपाल/मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। राज्य शिक्षा केंद्र ने शिक्षा

का स्तर सुधारने और जिलों में पढ़ाई का स्तर पता करने के लिए भले ही रैंकिग देने की शुरूआत कर दी है , लेकिन वास्तविकता यह है की बगैर शिक्षकों व सुविधाओं के कैसे जिले बाजी मारे यह बताने को कोई तैयार न ही है। रैकिंग की शुरूआत करते हुए शिक्षा केन्द्र ने एजुकेशन पोर्टल पर दो दिन पहले कक्षा एक से आठवीं तक जिलों के सरकारी स्कूलों की रैंकिंग जारी की है। इसमें भोपाल को 35वीं रैंक दी गई है। दरअसल भोपाल जिले के इस मामले में पिछड़ने की बड़ी वजह है स्कूलों में शिक्षकों की बेहद कमी होना। दरअसल जिले के कई स्कूल ऐसे हैं जिनमें नाम के लिए एक -एक शिक्षक ही पदस्थ है, जो पढ़ाने से लेकर आफिस तक का काम भी करते हैं। राजधानी वाले जिले के यह हाल तब हैं, जबकि यहां पर सरकार से लेकर शासन व प्रशासन का पूरा अमला रहता है। अकेले बैरसिया ब्लाक में ही 10 प्रायमरी स्कूल ऐसे हैं, जिनमें महज एक-एक शिक्षक हैं। बेचारे ऐसे में पढ़ाए या फिर आॅफिस का काम करें। इन हालातों की वजह से सरकार की मंशा पर सवाल खड़े होते हैं।
इस तरह के हैं हालात
प्राथमिक शाला, खाताखेड़ी, बैरसिया में 50 बच्चों के नाम दर्ज हैं। 1 से 5वीं तक के इन बच्चों को पढ़ाने के लिए एक मात्र शिक्षक नारायण सिंह पदस्थ हैं। यहां दो महिला शिक्षक थीं, जो तबादला कराकर भोपाल में पदस्थ हो गईं। नारायण सिंह का कहना है की वे सभी कक्षाओं के बच्चों को एक साथ बैठाकर पढ़ाते हैं। प्रायमरी, मिडिल दोनों का प्रभार होने के कारण ऊपर से आने वाले आदेशों के पालन सहित अन्य सरकारी कामकाज भी उन्हें ही करना पड़ता है। इसी तरह से प्राथमिक शाला, गांगापुरा, बैरसिया में 25 बच्चों के नाम दर्ज हैं। 1 से 5वीं तक के इन बच्चों को पढ़ाने के लिए एक मात्र शिक्षक तूफान सिंह पदस्थ हैं। यहां महिला शिक्षक कमलेश यदुवंशी थीं, जिन्होंने अपनी पदस्थापना इंदौर करा ली है। ऐसे में शिक्षक तूफान सिंह को बीते एक साल से पांचों कक्षाओं को एक साथ लगाना पढ़ता है इसके अलावा उन्हीं को आॅफिस का काम भी करना पड़ता है।
अफसरों की मनमानी की सजा भुगत रहे बच्चे व स्कूल
दरअसल राज्य शिक्षा केन्द्र से लेकर मंत्रालय तक में पदस्थ अफसरों की मनमानी और गंभीर लापरवाही की सजा इन प्रायमरी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों व मौजूदा शिक्षकों को भुगतना पड़ रही है। अफसरों ने चेहेतों शिक्षकों की उनकी मनमर्जी के तहत दूसरी जगह पदस्थापनाएं कर डाली, लेकिन उनकी जगह अन्य शिक्षकों की नियुक्ति ही नहीं की। हद तो यह है की इस मामले में सरकार के नियमों की भी अनदेखी की गई। ऐसे में शिक्षाविदों का कहना है की प्रायमरी, मिडिल स्कूलों में बच्चों की नींव तैयार होती है, इसलिए सरकार को इस पर विशेष ध्यान देना चाहिए। जिन जिलों का परफॉर्मेंस खराब है, वहां के अधिकारियों और शिक्षकों को बदलकर दूसरों को मौका देना बच्चों के हित में होगा।