ग्वालियर-चंबल में डॉ. गोविंद तो विंध्य में अजय व गणेश का चला जादू.
भोपाल/मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। मध्य प्रदेश नगरीय निकाय चुनाव के नतीजों से यह तय हो चुका है की सत्तारूढ़ दल बीजेपी हो या फिर कांग्रेस दोनों ही दलों के बड़े-बड़े नेताओं को हार का स्वाद चखना पड़ा। यानि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा, केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया एवं नरेंद्र सिंह तोमर के गढ़ ढह गए, वहीं कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमल नाथ की कर्मस्थली छिंदवाड़ा में महापौर चुनाव कांग्रेस जीत तो गई, लेकिन चौरई नगर पालिका में कांग्रेस का सफाया हो गया। कांग्रेस के दिग्गज नेता सुरेश पचौरी, दिग्विजय सिंह, सज्जन सिंह वर्मा के इलाकों में भी कांग्रेस को पराजय का स्वाद चखना पड़ा है।
ऐसे में प्रदेश के राजनीतिक क्षितिज पर तीन क्षेत्रीय क्षत्रप नेताओं का कद पार्टी के बड़े नेताओं से ऊंचा नजर आया। इनमें नेता कांग्रेस डॉक्टर गोविंद सिंह और अजय सिंह हैं तो भाजपा के गणेश सिंह। तीनों ही नेताओं ने न केवल अपना गढ़ बचाया बल्कि पार्टी की साख को भी बरकरार रखा। किसी जमाने में ग्वालियर-चंबल संभाग की राजनीति में सिंधिया घराने का वर्चस्व रहा है। नगरीय निकाय के चुनाव में नेता प्रतिपक्ष डॉक्टर गोविंद सिंह ने ग्वालियर चंबल संभाग में महल के वर्चस्व को धूल-धूसरित कर दिया। वहीं विंध्य क्षेत्र के बड़े क्षत्रप अजय सिंह ने रीवा के अलावा अन्य निकायों में पार्टी को जीत दिलाकर अपना प्रभाव बता दिया है। उधर, सतना में बीजेपी सांसद गणेश सिंह ने सतना महापौर और परिषद के साथ मैहर नगर पालिका के चुनाव में पार्टी को जीता कर अपनी राजनीतिक लकीर को लंबी खींच दी है। यानि विंध्य क्षेत्र में पिछड़ों के बड़े नेता के रूप में उभर कर सामने आए।
बीजेपी सांसद गणेश सिंह
कांग्रेस ने सतना महापौर पद के लिए क्षेत्रीय विधायक सिद्धार्थ कुशवाहा को चुनावी मैदान में उतारकर बीजेपी के वोट बैंक में सेंध लगाने का भरसक प्रयास किया था, किंतु सांसद गणेश सिंह ने महापौर योगेंद्र ताम्रकार को जिता कर यह संदेश दे दिया है कि वे पिछड़ों के बड़े नेता है और इसीलिए कांग्रेस के विंध्य क्षेत्र के दिग्गज नेता अजय सिंह को लगातार लोकसभा चुनाव में पराजित करते आ रहे हैं। भाजपा सांसद गणेश सिंह ने नगरीय निकाय चुनाव में मैहर नगर पालिका में भी पार्टी को फतह दिलाई। वह भी तब, जब बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी लंबे समय से पार्टी लाइन से अलग हटकर अपनी गतिविधियां मैहर में संचालित कर रहे हैं। नगरीय निकाय के चुनाव में भी भाजपा विधायक त्रिपाठी ने पार्टी के अधिकृत प्रत्याशियों के खिलाफ अपने समर्थकों को मैदान में उतारा था। इसके बाद भी सांसद गणेश सिंह ने मैहर नगरपालिका में पार्टी के अधिकृत प्रत्याशियों को विजय दिलवाई। सतना जिला पंचायत के 26 वार्ड में से 17 बीजेपी समर्थकों को विजय हासिल हुई। इसी प्रकार 8 जनपद में भी बीजेपी को बहुमत मिली है। विंध्य क्षेत्र की व्यवसायिक नगरी सतना और धार्मिक नगरी मैहर में पार्टी का परचम फहरा कर सांसद गणेश सिंह ने या साबित करने में कामयाब हो गए कि विंध्य क्षेत्र में पिछड़े वर्ग के बड़े नेता है।
अजय सिंह
बीते विधानसभा चुनाव में भले ही पूर्व नेता प्रतिपक्ष चुनाव हार गए हों, लेकिन उसके बाद जिस तरह से वे सक्रिय बने रहे और कार्यकर्ताओं के संवाद व संपर्क बनाए रहे उसका ही परिणाम है की रीवा जिले में वे कांगे्रंस को निकाय चुनव में बढ़त दिलाने में सफल रहे हैं। रीवा नगर नगिम में कांग्रेस के महापौर प्रत्याशी अजय मिश्रा को वे जिताने में सफल रहे। मिश्रा ने बीजेपी के प्रबोध व्यास को 10, 278 वोटों से हराया। खास बात यह है की रीवा में मेयर के पर 24 सालों से बीजेपी का कब्जा था। यह जीत इसलिए भी मायने रखती है क्योंकि ,मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से लेकर हर छोटे-बड़े नेता ने रीवा में काफी मशक्कत की। मुख्यमंत्री तो चार दिन में दो बार रीवा पहुंचे और भाजपा प्रत्याशी के लिए वोट मांगे थे। यही नहीं हनुमना में भी वे पार्टी की परिषद बनवाने में सफल रहे हैं।
डॉ गोविन्द सिंह
नगरीय निकाय चुनाव के परिणाम आने के बाद विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष डॉक्टर गोविंद सिंह का कद कांग्रेस के बड़े क्षत्रपों के मुकाबले बड़ा है। उनके कुशल नेतृत्व का परिणाम रहा कि न केवल भिंड में बीजेपी का सफाया हो गया, बल्कि ग्वालियर चंबल संभाग में कांग्रेस को महापौर चुनाव में पहली बार कामयाबी हासिल हुई। इस कामयाबी से न केवल महल का तिलस्म टूटा, बल्कि मुरैना में भी केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के वोट बैंक में सेंध लगा दी। डॉक्टर गोविंद सिंह ने ग्वालियर महापौर चुनाव में कांग्रेस को कामयाबी दिला कर यह संदेश दे दिया है कि सिंधिया के कांग्रेस में रहने की वजह से अपना जनाधार भिंड तक ही सीमित रखा था। कांग्रेस महल मुक्त हो गई ह। यही वजह रही कि 57 साल बाद कांग्रेस ने ग्वालियर के इतिहास को पलट दिया। पूरे चुनावी परिदृश्य पर नजर डालें तो इस चुनाव में ग्वालियर-चम्बल में नेता प्रतिपक्ष डॉक्टर गोविंद सिंह की बदौलत ही सियासी हालात यह बन गए कि सत्ताधारी दल के सहकारिता मंत्री डाक्टर अरविन्द सिंह भदौरिया अपने साले को भिण्ड नगर पालिका के वार्ड से पार्षद नहीं बनवा सके। कमोवेश भाजपा की यही स्थिति नगरीय प्रशासन राज्यमंत्री ओपीएस भदौरिया, पूर्व मंत्री लालसिंह आर्य,निगम अध्यक्ष रणवीर जाटव, बसपा छोड़ भाजपा में शामिल हुए विधायक संजीव सिंह कुशवाह के इलाकों में हुई।
पिटे हुए मोहरों पर किया था भरोसा?
दरअसल कमलनाथ उस वक्त सज्जन सिंह वर्मा, एनपी प्रजापति जैसे नेताओं घिरे हुए थे, जिनका ना तो जनाधार है और ना ही धरातल पर कोई वजूद। कमलनाथ को अब इन नेताओं से पूछना चाहिए कि उनके क्षेत्र में नगरीय निकाय चुनाव में कांग्रेस की क्या स्थिति रही। यही नहीं मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के मुखिया कमलनाथ को नेता प्रतिपक्ष डॉक्टर गोविन्द सिंह के साथ ही सज्जन सिंह वर्मा और एनपी प्रजापति के क्षेत्रों के नगरीय निकाय चुनाव नतीजों की समीक्षा करना चाहिए और यह भी जानकारी लेना चाहिए कि सज्जन सिंह वर्मा और एनपी प्रजापति जैसे शो पीस साल 2023 के सत्ता के फाइनल में अपने-अपने विधानसभा क्षेत्र में जीत भी पाएंगे या नहीं?