शिक्षा विभाग में भर्राशाही, मनमाने तरीके से पदोन्नति और पदस्थापना

भोपाल/मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। प्रदेश का शिक्षा विभाग


भर्राशाही का अड्डा बन गया है। हालत यह है की विभाग के अफसर न तो मुख्यमंत्री की मंशा व नीति की परवाह करते हैं और न ही नियमों की। इसकी बानगी हाल ही में जारी पदोन्नति प पदस्थापन के आदेश हैं। अफसरों ने चहेते अफसरों को न केवल मनमाने तरीके से पदोन्नत कर दिया ,बल्कि एक दागी और बेहद विवादास्पद अफसर को मलाईदार जगह पर पदस्थ भी कर दिया। यह पदस्थापना तब की गई है जबकि उसके खिलाफ एक जांच रिपोर्ट में आईएएस अधिकारी ने यह तक लिखा है की उप संचालक दीक्षित का अपनी अधिकारिता से परे जाकर समकक्ष अधिकारी के द्वारा निराकृत प्रकरण में लाभान्वित किया जाना दर्शित होता है। उनकी कर्तव्यनिष्ठा पूरी तरह से संदेह के घेरे में है तथा उनके स्तर के अधिकारी के लिए ऐसा आचरण पूरी तरह से अशोभनीय प्रतीत होता है। इसके बाद भी उस उप संचालक को सतना का जिला शिक्षा अधिकारी बना दिया गया है। इसके अलावा उक्त अफसर के खिलाफ एक जांच भी बीते चार साल से लंबित बनी हुई है। बताया जा रहा है कि इस जांच को शासन स्तर पर फाइलों में कैद कर रखा गया है। तत्कालीन संचालक स्कूल शिक्षण गौतम सिंह ने उप संचालक नीरव दीक्षित की विभागीय जांच रिपोर्ट 6 मार्च 2018 को मंत्रालय स्कूल शिक्षा विभाग को दी थी। इसके बाद से ही उक्त जांच रिपोर्ट लंबित पड़ी हुई है। यह जानकारी आरटीआई के तहत लोक शिक्षण संचालनालय द्वारा इसी साल 2 फरवरी 2022 को दी गई थी। यही नहीं बताया गया है की नीरव दीक्षित की अब तक सात वेतनवृद्धियां भी रोकी जा चुकी हैं। नियमानुसार जिस अधिकारी की विभागीय जांच चल रही हो या शस्ति के प्रभाव में हो उसको जिला शिक्षा अधिकारी के पद पर पदस्थ नहीं किया जा सकता। गौरतलब है की इस तरह के मामलों में स्पष्ट निर्देश है की एक वर्ष में विभागीय जांच पूरी हो जाए ऐसा नहीं हुआ तो विभागाध्यक्ष की टिप्पणी अंकित होनी चाहिए तथा उत्तरदायित्व का निर्धारण किया जाना चाहिए।
तीन साल से नहीं मिल रही क्रमोन्नति
स्कूल शिक्षा विभाग में वरिष्ठ अधिकारियों की भर्राशाही के कारण वर्ष 2018 में अध्यापक से शिक्षक संवर्ग में शिक्षकों को तीन साल से क्रमोन्नति नहीं मिल रही है। दरअसल, क्रमोन्नति के कानूनी झंझट से बचने के लिए वरिष्ठों ने कनिष्ठ अधिकारियों को अपने अधिकार सौंप दिए हैं। इस कारण 80 हजार शिक्षकों के लिए मुसीबत खड़ी हो गई है। उल्लेखनीय है कि शिक्षकों को 12, 24 और 30 साल में क्रमोन्नति दी जाती है। वर्ष 2006 में नियुक्त शिक्षक वर्ष 2018 में पहली क्रमोन्नति के लिए पात्र हो चुके हैं।
नियमों को तक पर रखकर की गई पदोन्नति
दरअसल दीक्षित पर आरोप है की उनके द्वारा प्रभारी संयुक्त संचालक लोक शिक्षण रीवा रहते दयाशंकर अवस्थी सहायक ग्रेड-2 को बिना विभागीय पदोन्नति समिति की अनुशंसा के ही कनिष्ठ लेखा परीक्षक और राजेश कुमार सिंह सहायक ग्रेड-2 की बिना डीपीसी की अनुशंसा के गणक के पद पर पदोन्नति दे दी गई थी।