मिशन 2023: कांग्रेस का… मंथन अगले हफ्ते

हारने वाली सीटों पर जीत के लिए बनेगी रणनीति, क्षत्रपों के जिम्मे होंगे इलाके.

भोपाल/मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। प्रदेश में पंचायत व नगरीय निकाय चुनावों के बाद अब सभी राजनैतिक दलों ने सवा साल बाद होने वाले विधानसभा के आम चुनावों पर पूरा फोकस करना शुरू कर दिया है। भाजपा में बीते एक हफ्ते पहले ही काम शुरू कर चुकी है तो अब कांग्रेस भी अगले हफ्ते चुनावी तैयारियों को गति देने के लिए मंथन करने जा रही है। इसके लिए प्रदेश संगठन द्वारा 25 अगस्त को बड़ी बैठक बुलाई गई है। इसमें पार्टी के विधायकों के अलावा जिलाध्यक्ष, जिला प्रभारी सहित अन्य नेताओं को बुलाया गया है। उधर, पार्टी द्वारा अभी से अगले विधानसभा चुनाव के लिए चेहरों की भी तलाश शुरू कर दी गई है। इसके लिए पार्टी द्वारा सर्वे का काम भी कराया जा रहा है। दरअसल कमलनाथ चाहते हैं कि चुनाव घोषित होने से पहले पार्टी की पूरी तैयारी हो जाए, जिससे की समय रहते न केवल प्रत्याशी घोषित किए जा सकें, बल्कि जिन्हें प्रत्याशी बनाया जाए वे अपने इलाके में मतदाताओं के बीच भी गहरी पैठ रखते हों। यही नहीं कमलनाथ इस बीच संगठन को भी मजबूत करना चाहते हैं, जिससे की चुनाव के समय संगठन पूरी तरह से मोर्चा सम्हाल सके। इसके अलावा पार्टी की उन सीटों पर भी लगातार नजर बनी हुई है, जिन पर अभी कांग्रेस के विधायक हैं।
इन सीटों पर भी समय-समय पर सर्वे कराकर कमलनाथ स्वयं अपने विधायकों को उनकी वास्तविक स्थिति बताते रहते हैं। दरअसल इस बार कमलनाथ कोई भी कमी नहीं रखना चाहते हैं। निकाय चुनावा ें में जहां पर कांग्रेस का प्रर्दशन अच्छा रहा है वहां भी ध्यान दिया जा रहा है, लेकिन हारने वाले इलाकों पर विशेष फोकस किया जा रहा है। हारने वाले इलाकों के कामकाज और कमजोर कड़ियों की तलाश कर उन्हें मजबूत करने पर पूरा जोर लगाया जा रहा है। इसके अलावा पार्टी द्वारा विधानसभा चुनाव में शासन व प्रशासन के दबाव और प्रभाव की काट की भी खोज की जा रही है, जिससे की सत्तारुढ़ दल को फायदा नहीं मिल सके। दरअसल पार्टी के नेता मान रहे हैं कि नगरीय निकाय व पंचायत चुनाव में उसे इस सकंट का भी बड़ा सामना करना पड़ा है। यही नहीं पार्टी ने अभी से ग्वालियर- चंबल क्षेत्र पर अधिक फोकस करना शुरू कर दिया है। इसकी वजह है इस अंचल में पार्टी को अच्छी खासी बढ़त मिली थी। पार्टी इस अंचल में अपना पुराना प्रर्दशन दोहराना चाहती है। निकाय चुनाव में भी इसी अंचल के दो नगर निगमों में कांग्रेस अपने महापौर बनवाने में सफल रही है। इसके अलावा पार्टी विंध्य क्षेत्र पर भी फोकस कर रही है। यह वो अंचल है जहां पर बीते विधानसभा चुनाव में पार्टी को सर्वाधिक नुकसान हुआ था। इस बार भी कमलनाथ द्वारा समन्वय के साथ काम करने की रणनीति पर अमल किया जा रहा है। इसके लिए क्षेत्रीय क्षत्रपों को उनके क्षेत्रों की जिम्मेदारी देकर उनसे हर सीट से फीडबैक भी लेने की तैयारी की जा रही है।
होगी दो दर्जन जिलाध्यक्षों की विदाई
मैदानी संगठन को मजबूत करने के लिए प्रदेश कांग्रेस जल्द ही अपने दो दर्जन से अधिक जिलाध्यक्षों को उनके पदों से विदाई कर सकती है। यह अधिकांश वे जिलाध्यक्ष हैं, जो लंबे समय से जिलों में पार्टी की कमान सम्हाल रहे हैं। इसके बाद भी वे संगठन को मजबूत करने में असफल रहे हैं, जिसकी वजह से उनके जिलों में संगठनात्मक गतिविधियां बंद पड़ी हुई हैं। राजनीति के जानकारों की माने तो प्रदेश संगठन के पास ऐसे कई जिलाध्यक्षों की शिकायतें हैं, जिन्होंने निकाय और पंचायत चुनावों के दौरान पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी के लिए पूरी ताकत के साथ काम नहीं किया है, तो कई जिलाध्यक्षों पर उनकी निष्क्रियता के चलते निकायों में पार्टी के पार्षदों का बहुमत होने के बाद भी अध्यक्ष नहीं बन पाने के आरोप हैं। बताया जा रहा है की कमलनाथ द्वारा ऐसे नेताओं की सूची तैयार करा ली गई है। इस सूची को तैयार करने के पहले जिला संगठनों और अपने स्वयं की टीम की रिपोर्ट को आधार बनाया गया है। इस संबंध में नाथ की प्रदेश प्रभारी मुकुल वासनिक से भी बात हो चुकी है। यह बात अलग है कि कार्यकर्ताओं और जिलाध्यक्षों की नाराजगी रोकने के लिए उन्हें लंबे कार्यकाल का हवाला देते हुए बदले जाने की रणनीति बनाई गई है। जिन जिलाध्यक्षों को बदला जाना है, वहां नए और जनाधार वाले कार्यकर्ता को संगठन की कमान दी जाएगी। इसी तरह से विस चुनाव में सिर्फ उन जिलाध्यक्षों को ही टिकट देने का भी निर्णय लिया गया है जो सर्वे में मजबूत प्रत्याशी साबित हो सकते हैं। हालांकि पहले प्रदेश संगठन ने तय किया था कि जिलाध्यक्षों को विस का टिकट नहीं दिया जाएगा। पार्टी जल्द ही अपने प्रदेश प्रतिनिधियों की सूची जारी कर सकती है।
कमजोर सीटों पर राहुल की पदयात्रा की तैयारी
निकाय चुनावों के परिणामों से उत्साहित कांग्रेस अब हर हाल में अपने पंपरागत वोट बैंक को हासिल करने और कमजोर सीटों पर पार्टी की पकड़ मजबूत करने के लिए राहुल गांधी की पद यात्रा की मदद लेने की तैयारी कर रही है। उनकी पद यात्रा सात सितंबर से शुरू हो रही है। कांग्रेस का प्रदेश संगठन राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को प्रदेश के ऐसे इलाकों से निकालने की योजना बना रही है , जहां पर पार्टी कमजोर है। प्रदेश कांग्रेस द्वारा इस यात्रा को आदिवासी इलाकों से निकलवाने की तैयारी है। इसमें खासतौर से मालवा और निमाड़ का इलाका शामिल है। उनकी इस यात्रा के जरिए खासतौर पर कांग्रेस अपने साथ आदिवासी वोट बैंक को साधना चाहती है। दरअसल इस अंचल में भाजपा की अच्छी पकड़ है। गौरतलब है की प्रदेश के 20 जिलों में कुल 89 विकासखंड आदिवासी क्षेत्रों में आते हैं। प्रदेश की लगभग 100 सीटों पर आदिवासी वोटर निर्णायक भूमिका में होते हैं। यही वजह है कि आदिवासियों को साधने की कोशिश में सियासी दल लगे हुए हैं। कांग्रेस राहुल गांधी के चेहरे और उनकी यात्रा के सहारे आदिवासियों को रिझाने की कोशिश में है, तो भाजपा पेसा एक्ट लागू कर आदिवासियों को खुश करने का प्लान बना रही है। प्रदेश के आदिवासी बहुल इलाके में 84 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 84 में से 34 सीटों पर जीत हासिल की थी। वहीं, 2013 में इस इलाके में 59 सीटों पर भाजपा को जीत मिली थी। 2018 में पार्टी को 25 सीटों पर नुकसान हुआ है। वहीं, जिन सीटों पर आदिवासी उम्मीदवार जीत और हार तय करते हैं, वहां भाजपा को सिर्फ 16 सीटों पर ही जीत मिली थी, जो 2013 की तुलना में 18 सीटें कम है।
अहम सूत्रधार
प्रदेश कांग्रेस में सूत्र कमलनाथ के हाथ रहना है। वे खुद ही चुनाव की अगुवाई करेंगे। पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह दूसरे नंबर पर पर्दे के पीछे समन्वय और असंतोष थामने का काम करेंगे। ग्वालियर-चंबल में पैठ बढ़ाने के लिए नेता प्रतिपक्ष डॉ.गोविंद सिंह तो विंध्य अंचल में अजय सिंह के हाथों में कमान रहने वाली है। विध्यं में भी इस बार रीवा नगर निगम में कांग्रेस का महापौर बना है। इसी तरह से उपचुनाव में भी कांग्रेस ने इस अंचल की एक सीट पर जीत दर्ज की थी।
सरकारी अमले की 213 शिकायतें
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के पास अब तक पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव में गड़बड़ी करने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों की 213 शिकायतें पहुंची हैं। ये शिकायतें ई-मेल और व्हाट्सएप के जरिए भेजी गई हैं। रीवा और इंदौर संभाग से सबसे ज्यादा शिकायतें आई हैं। अधिकतर शिकायतों में कहा गया है कि अधिकारियों ने मतदान से लेकर चुनाव परिणामों की घोषणा तक भाजपा के पक्ष में काम किया। जिला पंचायत व जनपद पंचायत अध्यक्ष व उपाध्यक्ष और नगर पालिका व नगर परिषद अध्यक्ष व उपाध्यक्ष के चुनाव में अधिकारियों ने खुलकर भाजपा को चुनाव जिताने के लिए काम किया। प्रशासन की ओर से चुनाव परिणाम आने के बाद से ही पार्षदों और जनपद व जिला पंचायत सदस्यों पर भाजपा के पक्ष में मतदान के लिए दबाव बनाया जाने लगा था।