मध्यप्रदेश के पूर्व माननीय चाहते हैं दोगुनी मिले पेंशन

भोपाल/मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। मध्यप्रदेश के सरकारी


कर्मचारियों को कई दशकों की नौकरी के बाद भले ही पेंशन न मिले लेकिन पूर्व माननीयों को एक दिन की विधायकी में भी पेंशन पाने का हक होता है। यही नहीं इन पूर्व माननीयों को इसके अलावा इलाज से लेकर यात्रा तक की सुविधाएं मिलती हैं, लेकिन वे इससे खुश नही हैं, जिसकी वजह से वे चाहते हैं कि उनकी पेंशन दोगुनी कर दी जाए। यह वे पूर्व माननीय हैं जो अपने कार्यकालों में राजनीति को सेवा का माध्यम बताने से कभी पीछे नहीं रहते थे। खास बात यह है कि इनमें कई पूर्व माननीय तो ऐसे हैं, जिनकी सम्पत्ति की कल्पना तो आम आदमी तक नहीं कर सकता है। इसके बाद भी वे चाहते हैं कि उन्हें बतौर पेंशन सरकार द्वारा 40 हजार रुपए का भुगतान किया जाए।
वर्तमान में प्रदेश में पूर्व माननीयों की संख्या 1100 से ज्यादा है। अब इन पूर्व माननीयों द्वारा अपनी पेंशन दोगुनी करने की मांग उठाई जा रही है। उनका कहना है कि मौजूदा महंगाई के दौर में 20 हजार रुपए में गुजारा नहीं होता है। उनका तर्क है कि जिस तरह से हरियाणा और तमिलनाडु जैसे राज्यों ने पूर्व विधायकों की पेंशन बढ़ाकर 35 हजार रुपए की है उसी तरह से मप्र में भी पूर्व विधायकों की पेंशन में वृद्धि की जानी चाहिए। इसी तर्ज पर प्रदेश के विधायकों की पेंशन बढ़ाए जाने की मांग को लेकर हाल ही में पूर्व विधायकों का एक प्रतिनिधि मंडल विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम से मिल चुका है। इस मामले में पूर्व विधायक मंडल मप्र का कहना है कि अधिकांश पूर्व विधायक वृद्ध हो चुके हैं और बीमार रहते हैं। उनकी आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं है। पूर्व विधायकों को वर्तमान में 20 हजार रुपए प्रतिमाह पेंशन मिलती है और चिकित्सा भत्ता 15 हजार रुपए देय है। पेंशन दोगुनी करने के साथ ही उनका चिकित्सा भत्ता भी दोगुना किया जाना चाहिए।
देश में केवल माननीयों को मिलती है एक साथ वेतन, पेंशन
देश में चपरासी से लेकर सुप्रीम कोर्ट के जज तक को केवल एक पेंशन मिलती है, लेकिन सांसद, विधायक और मंत्रियों पर यह नियम लागू नहीं है। यानी, विधायक से यदि कोई सांसद बन जाए तो उसे विधायक की पेंशन के साथ ही लोकसभा सांसद का वेतन और भत्ता भी मिलता है। इसी तरह राज्यसभा सांसद चुने जाने और केंद्रीय मंत्री बन जाने पर मंत्री का वेतन-भत्ता और विधायक-सांसद की पेंशन भी मिलती है, जबकि सरकारी अधिकारी और कर्मचारियों को एक ही पेंशन मिलती है। वह भी 33 साल की नौकरी पूरी करने के बाद। वहीं, नेताओं को एक दिन का विधायक या सांसद बनने पर भी पेंशन की पात्रता होती है। कर्मचारी संगठनों का कहना है कि संविधान के मुताबिक समानता के अधिकार के कानून का पालन हो। जनप्रतिनिधियों की पेंशन के लिए भी शासकीय सेवकों की तरह गाइडलाइन बनाई जाए। कम से कम पांच साल का कार्यकाल अनिवार्य किया जाए। साथ ही वे अंत में जिस पद पर रहे, उसी की पेंशन उन्हें मिले। मंत्री या निगम-मंडल में अन्य सरकारी पदों पर रहते हुए वेतन के साथ पुराने पदों की पेंशन नहीं दी जाए, क्योंकि सरकार ने जहां एक तरफ मार्च 2005 के बाद नियुक्त होने वाले सरकारी कर्मचारियों की पेंशन ही बंद कर दी है।
इस तरह की चाहते हैं सुविधाएं
पूर्व विधायकों को प्रोटोकॉल की सुविधा और हवाई यात्रा सुविधा दी जाए। दिल्ली स्थित मप्र भवन में पूर्व विधायकों को साल में 13 दिन रुकने की सुविधा है, जिसे 30 दिन किया जाए। मप्र में 2016 से विधायकों की किसी भी प्रकार की पेंशन व भत्तों में वृद्धि नहीं की गई है। जबकि अन्य पेंशनर्स (केंद्र व राज्य के शासकीय सेवकों) की महंगाई राहत प्रतिवर्ष बढ़ाई जाती है।