न्यायालय ने किया स्पष्ट, नहीं है प्रदेश में पदान्नति पर रोक

राजनैतिक नफा नुकसान पड़ रहा कर्मचारियों पर भारी

भोपाल/मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। प्रदेश में पदोन्नति पर रोक का बहाना बनाकर राज्य सरकार सूबे के करीब चार लाख कर्मचारियों को दिया जाने वाला पदोन्नति का हक मार रही है। दरअसल इसकी वजह है इस मामले में होने वाला राजनैतिक नफा नुकसान। यही वजह है कि हर साल प्रदेश में हजारों कर्मचारी बगैर पदोन्नत हुए ही सेवानिवृत्त होने पर मजबूर बने हुए हैं। हाल ही में ग्वालियर हाईकोर्ट की बैंच ने फिर से एक इसी तरह के मामले की सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया है कि प्रदेश में पदोन्नति पर कोई रोक नही है। इसके बाद से ही सरकार की मंशा पर फिर से सवाल खड़े होने लगे हैं। खास बात यह है कि ऐसे ही मामले में पड़ौसी राज्य उप्र में सात साल पहले निर्णय लिया जा चुका है, लेकिन प्रदेश सरकार इस मामले को लगातार टालने के लिए हाईकोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट में मामले को अटकाए हुए है। दरअसल इस मामले में अखिल भारतीय सेवा के अफसरों पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा है, जिसकी वजह से वे इस मामले में कोई कदम उठाने में रुचि न हीं ले रहे हैं। यही वजह है कि प्रदेश में बीते छह साल से प्रमोशन अटके हुए हैं। इसी तरह के 11 वेटनरी डॉक्टरों के मामले में सरकार ग्वालियर हाईकोर्ट में सिंगल और डबल बेंच में पराजित हो चुकी है। इस मामले में सरकार के रिव्यू पिटीशन को भी खारिज कर कोर्ट ने इन चिकित्सकों को प्रमोशन देने के आदेश दिए गए हैं। अब शासन इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले जाने की तैयारी कर रहा है। दरअसल 2002 के पदोन्नति नियमों में से आरक्षण का प्रावधान खत्म किया जा चुका है। हाईकोर्ट ने 30 अप्रैल 2016 को अपने फैसले में 2002 के पदोन्नति नियमों में से आरक्षण के प्रावधान को खत्म कर दिया था और पदोन्नति नियम यथावत रखे थे। साथ ही 2002 के नियमों में आरक्षण के प्रावधान के अनुसार जो भी पदोन्नति हुई हैं, उन्हें रिवर्ट करने को कहा था। सरकार ने इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी हुई है, जिस पर अंतिम फैसला आने तक यथास्थिति बनाए रखने को कहा गया है। यानी जो पदोन्नतियां हो गई हैं उन्हें पदावनत न किया जाए। कोर्ट की ओर से पदोन्नति के मामले में रोक नहीं है। गौरतलब है कि इस मामले को लेकर पशुपालन विभाग के 11 डॉक्टर ग्वालियर हाईकोर्ट में गए थे, जिस पर सुनवाई करते हुए जस्टिस रोहित आर्य और जस्टिस मिलिंद रमेश फड़के की डबल बैंच ने सरकार को डाक्टरों को प्रमोशन दिए जाने के आदेश दिए। इसके खिलाफ सरकार ने रिव्यू याचिका लगाई थी, जिसे खारिज कर दिया गया है।
यह है विवाद
संविधान के अनुच्छेद 309 में राज्य सरकारों को कर्मचारियों की पदोन्नति से संबंधी नियम बनाने के अधिकार दिए गए हैं। इसी के तहत, 2002 के भर्ती नियमों में आरक्षण रोस्टर लागू था, लेकिन 30 अप्रैल 2016 को हाईकोर्ट ने आरक्षण रोस्टर को रद्द कर दिया था। तब से प्रमोशन में आरक्षण और प्रमोशन पर रोक लगी है। सरकार ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, जिस पर अभी सुनवाई चल रही है । वहीं, 2016 से अब तक 70 हजार सरकारी कर्मचारी बिना प्रमोशन के रिटायर हो चुके हैं।
इसलिए निरस्त हुए प्रमोशन नियम
प्रमोशन नियम निरस्त करने का प्रमुख कारण यह रहा क्योंकि सरकार नियुक्ति के समय आरक्षण देती है, प्रमोशन में भी आरक्षण का प्रावधान कर दिया था। इससे आरक्षित वर्ग के अधिकारी-कर्मचारियों को तो सीधे तौर पर लाभ था, लेकिन सामान्य वर्ग के कर्मचारियों को नुकसान। जबकि शासकीय सेवा में आरक्षण का लाभ एक बार ही दिया जा सकता है, इसी आधार पर हाईकोर्ट ने प्रमोशन नियम ही निरस्त कर दिए।