गरीब कैदियों की होगी रिहाई, सरकार भरेगी जुर्माना

भोपाल/मंगल भारत। उन कैदियों के लिए अच्छी खबर है,
जो सजा तो पूरी कर चुके हैं, लेकिन जुर्माना न भर पाने की वजह से अब भी जेल के सींखचों के पीछे बने रहने के लिए मजबूर बने हुए हैं। इस तरह के कैदियों की संख्या प्रदेश में दर्जनों में नहीं बल्कि सैकड़ों में बताई जाती है। इन पर जेल प्रशासन को हर महिने लाखों रुपए खर्च करने होते हैं। यही वजह है कि अब सरकार ने ऐसे कैदियों का जुर्माना अपने पास से भरने की तैयारी शुरु कर दी है। इसके लिए प्रदेश में नई योजना तैयार की जा रही है। इस योजना को जले प्रशासन तैयार कर रहा है। जल्द ही इस प्रस्ताव को कैबिनेट की बैठक में पेश किया जाएगा। दरअसल, सूत्रों की माने तो प्रदेश सरकार ने कुछ समय पहले ही 11 गरीब कैदियों की रिहाई के लिए 1.05 लाख रुपए अर्थदंड जमा कराया था। इसके बाद उनकी रिहाई हो गई। इस तरह का कदम उठाने वाला मप्र देश का पहला राज्य है। दरअसल, केंद्र सरकार की निर्धन कैदियों की जेल से रिहाई की योजना के अनुपालन में मप्र सरकार नई योजना बना रही है। इस योजना का उद्देश्य जेलों से भीड़ कम करना है। जेल विभाग के अधिकारियों का कहना है कि मप्र की जेलों में कई ऐसे विचाराधीन और दोष सिद्ध कैदी हैं, जो क्रमश: जमानत और जुर्माना राशि जमा नहीं कर पाने के कारण जेल से रिहा नहीं हो पा रहे हैं। केंद्र सरकार की योजना में निर्धन विचाराधीन कैदियों की रिहाई के लिए अधिकतम जमानत राशि 40 हजार रुपए और निर्धन सजायाफ्ता कैदियों की अधिकतम जुर्माना राशि 25 हजार रुपए जमा करने का प्रावधान है। मप्र में भी जमानत व जुर्माना राशि को केंद्र के बराबर रखने या कम-ज्यादा करने पर विचार-विमर्श किया जा रहा है। नई योजना के लिए अलग से बजट का प्रावधान किया जाएगा।
दो स्तर पर होगी समितियों का गठन
मप्र सरकार ने निर्धन कैदियों का चयन कर अर्थदंड भरे जाने के लिए प्रमुख सचिव जेल की अध्यक्षता में चार सदस्यीय राज्य स्तरीय निगरानी समिति गठित की है। यह समिति गरीब विचाराधीन कैदियों की जमानत राशि और दोष सिद्ध कैदियों की जुर्माना राशि के संबंध में निर्णय लेती है। ऐसे ही जिला स्तर पर कलेक्टर की अध्यक्षता में जिला स्तरीय समिति बनाई गई है।
अभी ली जाती है एनजीओ व निजी संस्थाओं की मदद
अधिकारियों का कहना है कि प्रदेश की जेलों में निर्धनता के कारण अर्थदंड न भरने वाले कैदियों की संख्या बदलती रहती है। वर्तमान में जब कभी ऐसी स्थिति आती है, तो जेल मुख्यालय एनजीओ आदि निजी संस्थाओं एवं व्यक्तियों के माध्यम से राशि लेकर इन निर्धन कैदियों को रिहा कराता है। सबसे अधिक आवश्यकता एनडीपीएस एक्ट यानी मादक पदार्थ रखने या सेवन करने के आरोप में पकड़े गए कैदियों को होती है, क्योंकि इसमें अर्थदंड लाखों में होता है। इसको भरने में कैदियों के परिजन सक्षम नहीं होते हैं।