मप्र में वक्फ बोर्ड की संपत्ति को लेकर विवाद ही विवाद

सर्वाधिक मामले बड़े शहरों में आ रहे हैं सामने.

भोपाल। मंगल भारत। मप्र में वक्फ बोर्ड की संपत्ति को लेकर विवाद ही विवाद की स्थिति बनी हुई है। एक मामले का विवाद शांत नहीं होता है, तो दूसरा शुुरु हो जाता है। इस तरह की स्थिति खासतौर पर बड़े शहरों में अधिक है। केंद्र सरकार द्वारा लाए जा रहे वक्फ बोर्ड संशोधन पर तात्कालिक तौर पर रोक जरूर लग गई है, लेकिन भविष्य में जब भी इसके लागू होने की स्थिति बनी तो मप्र में विवाद की वजह बन रहे मामले इस संशोधन बिल को मजबूती देने वाले साबित होंगे। दरअसल इस तरह के विवादों से आए दिन वक्फ बोर्ड की किरकिरी होती रहती है। इसकी वजह है बोर्ड के पास मौजूद दस्तावेज और रिकॉर्ड की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान खड़े होना। अगर भोपाल के ऐसे ही विवाद की बात की जाए तो हमीदिया रोड पर मप्र वक्फ बोर्ड द्वारा बनवाए जा रहे एक कमर्शियल कॉम्प्लेक्स को लेकर एसडीएम कोर्ट ने हाल ही में निर्णय दिया है, जिसकी जमीन को सरकारी बताया गया है। इससे पहले इस जमीन का मामला तहसीलदार के न्यायालय में भी जा चुका है। वहां पर भी इस जमीन को सरकारी ही बताया गया था। इतना ही नहीं अब एसडीएम कोर्ट ने अपने फैसले में नगर निगम को इस बनाए जा रहे कॉम्प्लेक्स को गिराने के भी आदेश दिए हैं। इसके साथ ही गिराने पर आने वाले खर्च को बोर्ड से ही वसूल करने के लिए कहा है। गौरतलब है कि करोड़ों रुपये कीमत की बेशकीमती जमीन पर कॉम्प्लेक्स निर्माण का काम तत्कालीन अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री स्व आरिफ अकील के कार्यकाल में शुरू हुआ था। इस दौरान बोर्ड की व्यवस्था प्रशासक पूर्व आईएएस निसार अहमद के हाथ में थी। बताया जाता है कि करीब चार मंजिला इस कॉम्प्लेक्स के निर्माण पर बोर्ड की बड़ी लागत लग चुकी है। इसके बाद मौजूदा बोर्ड अध्यक्ष डॉ. सनव्वर पटेल के कार्यकाल में इन दुकानों की नीलामी ओपन टेंडर प्रक्रिया के साथ की गई थी, जिसमें बड़ी संख्या में लोगों ने अपना पैसा लगा दिया है।
इंदौर में भी बनी विवाद की स्थिति
कोकिलाबेन अस्पताल के सामने निपानिया की खसरा नम्बर 170 की विवादित वक्फ जमीन को लेकर शाह परिवार ने अपने मालिकाना हक की बताई है। इस परिवार का कहना है कि 253 साल पहले यानी 1771 में दिल्ली में जो मुगल हुकुमत काबिज थी, उसके आदेश पर इंदौर रियासत के महाराज होलकर ने इनाम के रूप में 50 बीघा जमीन शाह परिवार को दी थी। निपानिया की उक्त जमीन भी इस 50 बीघा में शामिल बताई जा रही है और 1930 में होलकर रियासत ने फिर से शाह परिवार के पक्ष में सनद बनाकर भी दी थी और सरकारी मिसलबंदी और खसरा खतौनी में शाह परिवार का नाम इंद्राज रहा है। हाजी मोहम्मद हुसैन और शाहिद शाह का कहना है कि निपानिया की इस जमीन को 1968 में वक्फ भूमि के रूप में स्वघोषित कर दिया गया और इस तरह के किसी सर्वे की जानकारी उनको नहीं दी गई। यहां तक कि तत्कालीन शहर काजी याकूब अली ने भी हाईकोर्ट में वाद के चलते शाह परिवार के पक्ष में फारसी सनद के अनुवादक के रूप में कोर्ट को बताया था कि यह जमीन मुगलों ने शाह परिवार को माफी भूमि के रूप में दी थी। इससे संबंधित दस्तावेजों की जानकारी शुक्रवार को शाह परिवार द्वारा पत्रकार वार्ता में भी दी गई। उनका कहना है कि हाईकोर्ट से स्टे ऑर्डर उनके पक्ष में प्राप्त है। बावजूद इसके 2013 में वक्फ बोर्ड ने लाइफ केयर एज्युकेशन सोसायटी को मात्र 25 पैसे स्क्वॉयर फीट में उक्त जमीन लीज पर देकर अवैधानिक अनुबंध भी कर लिया। चूंकि अभी हाईकोर्ट में इस जमीन का प्रकरण लम्बित है।
वक्फ बोर्ड पदाधिकारी कर रहे अवैध सौदे
शाह परिवार ने आरोप लगाया है कि मप्र वक्फ बोर्ड में पदासिन रहने वाले ओहदेदार भूमाफियाओं से मिलीभगत कर लगातार अवैध सौदे करते रहे हैं। यह सिलसिला अब भी जारी है। उन्होंने कहा कि इस मामले को लेकर जिला कमेटी और प्रदेश के ओहदेदारों के खिलाफ उन्होंने शिकायत भी की है।