सुप्रीम कोर्ट ने एक ज़मानत याचिका पर सुनवाई करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार को कथित बलात्कार के एक मामले में धर्मांतरण-रोधी क़ानून, 2021 के तहत अपराध लागू करने के लिए फटकार लगाते हुए कहा कि राज्य इसमें निष्पक्ष नहीं है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (20 मार्च) को उत्तर प्रदेश सरकार को कथित बलात्कार के एक मामले में उत्तर प्रदेश गैरकानूनी धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 के तहत अपराध लागू करने के लिए फटकार लगाई.
गुरुवार को एक जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने राज्य सरकार को ‘बिना किसी कारण के’ धर्मांतरण अधिनियम लागू करने के लिए फटकार लगाई.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, पीठ 5 सितंबर, 2024 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें एक हिंदू महिला, जिसकी पहले से ही एक बेटी है, को जबरन इस्लाम में धर्मांतरित करने और उसके साथ ‘निकाह’ करने के आरोपी व्यक्ति को जमानत देने से इनकार कर दिया गया था.
उन्हें जमानत देने से इनकार करते हुए हाईकोर्ट ने कहा था कि ‘संविधान प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म को मानने, उसका पालन करने और उसका प्रचार करने का मौलिक अधिकार प्रदान करता है. हालांकि, अंतरात्मा और धर्म की स्वतंत्रता के व्यक्तिगत अधिकार को धर्मांतरण के सामूहिक अधिकार के रूप में नहीं समझा जा सकता, धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार धर्मांतरण करने वाले व्यक्ति और धर्मांतरित होने वाले व्यक्ति दोनों का समान रूप से है.’
14 फरवरी, 2025 को जब कोर्ट ने अपील पर नोटिस जारी किया, तो याचिकाकर्ता के वकील ने पीठ से कहा था कि ‘यह सहमति से बने रिश्ते का मामला है, जहां दोनों पक्ष लंबे समय से एक-दूसरे को जानते थे और शिकायतकर्ता/पीड़ित का पहले के रिश्ते/विवाह से एक बच्चा भी है, लेकिन याचिकाकर्ता को सलाखों के पीछे डालने के लिए गलत आरोप लगाए जा रहे हैं.’
गुरुवार को वकील ने पीठ से कहा कि वह पिछले आठ महीनों से जेल में है…‘सिर्फ एक महिला की मदद करने के लिए.’
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, सीजेआई खन्ना ने कहा, ‘छोड़िए, वास्तव में मैं भी हैरान हूं, मैं इस शब्द का उपयोग नहीं करना चाहता, राज्य पुलिस भी पक्षपाती है… ऐसा कैसे हो सकता है? तथ्य खुद बोलते हैं, और आप बिना किसी कारण के धर्मांतरण अधिनियम लागू कर रहे हैं.’
मामले में याचिकाकर्ता, जो कथित बलात्कार और गैरकानूनी धर्मांतरण का आरोपी है और वर्तमान में जेल में बंद है, ने पहले अदालत में कहा था कि मामला सहमति से संबंध का था और उसके खिलाफ गलत आरोप लगाए गए हैं.
याचिकाकर्ता की ज़मानत याचिका पर सुनवाई करते हुए सीजेआई खन्ना ने कहा, ‘इसमें कुछ भी नहीं है… आप इसमें निष्पक्ष नहीं हैं, राज्य इसमें निष्पक्ष नहीं है… तथ्य खुद बोलते हैं. और धर्मांतरण अधिनियम लागू करना? अनुचित! बिल्कुल सही नहीं है.’
ख़बरों के अनुसार, उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा कि इसमें सामूहिक बलात्कार के आरोप भी शामिल हैं और जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए समय मांगा.
अदालत ने राज्य को दो सप्ताह के भीतर जवाब या प्रत्युत्तर (यदि कोई हो) दाखिल करने की स्वतंत्रता प्रदान की.
उल्लेखनीय है कि हाल के वर्षों में ऐसे कई मामले सामने आए हैं जिनमें हाशिए पर पड़े समुदायों के लोगों पर धर्मांतरण के झूठे आरोप लगाए गए और बाद में अदालतों ने उन्हें बरी कर दिया.