यौन उत्पीड़न की शिकार एम्स की दलित कर्मचारी भटक रही न्याय के लिए, आरोपी को मिला प्रमोशन

एम्स-झज्जर में कार्यरत हरियाणा की एक दलित फार्मासिस्ट ने अपने वरिष्ठ अधिकारी के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत की थी. जांच समिति ने आरोपी के कृत्यों की पुष्टि की. लेकिन एम्स ने कार्रवाई करने की बजाय उन्हें प्रमोशन दे दिया. स्वास्थ्य मंत्रालय और राष्ट्रीय महिला आयोग एम्स के निदेशक से जवाब मांग रहे हैं, लेकिन देश का प्रमुख चिकित्सा संस्थान एकदम चुप है.

नई दिल्ली: हरियाणा के एक छोटे से गांव में पली-बढ़ी सुमन* एक निम्नवर्गीय लेकिन स्वाभिमानी दलित परिवार से आती हैं. लंबे पारिवारिक और सामाजिक संघर्षों के बाद मई 2021 में सुमन ने एम्स झज्जर के राष्ट्रीय कैंसर संस्थान (एनसीआई) में फार्मासिस्ट की नौकरी शुरू की. लेकिन जिंदगी एक बार फिर स्याह हो गई जब पलवल के एक गांव की निवासी इस स्त्री को कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न और अन्याय का सामना करना पड़ा. उसके बाद शुरू हुआ न्याय के लिए अंतहीन संघर्ष, जो बरसों बाद आज भी जारी है.

द वायर हिंदी की श्रृंखला ‘एम्स के स्याह गलियारे’ की शुरुआती दो रिपोर्ट्स सरकारी धन के नुकसान की पड़ताल करती हैं. यह क़िस्त एम्स की महिला स्टाफ के यौन उत्पीड़न पर केंद्रित है, जिन्होंने लंबी लड़ाई लड़ी, लेकिन उन्हें न्याय मिलना बाकी है.

आंतरिक शिकायत समिति की जांच में आरोपी के कृत्यों की पुष्टि हो चुकी थी. समिति ने माना कि उनका व्यवहार अनैतिक और अनुचित था. जांच में पाया गया कि आरोपी ने शिकायत वापस लेने के लिए पीड़िता को रिश्वत देने की भी कोशिश की थी.

लेकिन आरोपी के खिलाफ़ कोई कार्रवाई तो दूर, पिछले जून उनकी पदोन्नति कर दी गई. हालत यह है कि एम्स ने इस विषय में राष्ट्रीय महिला आयोग और स्वास्थ्य मंत्रालय के पत्रों का जवाब तक नहीं दिया है.
उत्पीड़न और अपमान की गवाही

29 सितंबर, 2021 को राष्ट्रीय कैंसर संस्थान (एनसीआई) एम्स (झज्जर) की दो महिला स्टाफ, सुमन (फार्मासिस्ट) और हिमानी* (डेटा एंट्री ऑपरेटर), ने स्टोर अधिकारी मनोहर आर्य के खिलाफ़ यौन उत्पीड़न से संबंधित दो शिकायतें एनसीआई की असिस्टेंट पब्लिक हेल्थ एडमिनिस्ट्रेटर डॉ. शीतल सिंह को दी. दोनों शिकायतकर्ता एनसीआई के स्टोर सेक्शन में कार्यरत थीं.

30 सितंबर, 2021 को यह शिकायत एम्स दिल्ली के कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न से संबंधित शिकायत समिति (Internal Complaints Committee for Sexual Harassment of Women at Workplace) और एनसीआई-एम्स के मेडिकल सुपरिंटेंडेंट को भेज दी गई.

8 अक्टूबर, 2021 को एम्स-दिल्ली में समिति की बैठक आयोजित की गई, जिसमें शिकायतकर्ताओं और आरोपी को बुलाया गया. यह बैठक प्रोफेसर डॉ. नीना खन्ना की अध्यक्षता में हुई है.
हिमानी और सुमन ने अपने बयान में कहा कि मनोहर आर्य उन्हें अपने कार्यालय अकेले आने के लिए कहते थे. सुमन ने कहा कि जब वह सर्जिकल स्टोर में तैनात थीं, मनोहर ने उन्हें जबरन चूमने और उनकी कमर को छूने की कोशिश की.
मनोहर आर्य ने इन आरोपों को झूठा बताया और कहा कि शिकायतकर्ताओं के आरोप उस समय शुरू हुए जब उन्हें मेडिकल स्टोर में अनियमितताओं के बारे में मालूम हुआ.

नई समिति का गठन

एम्स-दिल्ली ने महसूस किया कि चूंकि एनसीआई (झज्जर) दिल्ली से थोड़ा दूर है, जांच के लिए बार-बार दिल्ली आना कठिन है. 4 जनवरी, 2022 को एनसीआई (झज्जर) में ही प्रोफेसर ऋतु गुप्ता की अध्यक्षता में आंतरिक शिकायत समिति का गठन किया गया. 17 फरवरी को पांच गवाह समिति के समक्ष प्रस्तुत हुए- निहाल (फार्मासिस्ट), नवीन राठी (एमटीएस), दीपिका* (डेटा एंट्री ऑपरेटर), धरम सिंह मीणा (स्टोरकीपर) और दीपा* (डेटा एंट्री ऑपरेटर).

निहाल ने कहा कि एक बार उन्होंने सुमन को रोते हुए देखा. जब उन्होंने कारण पूछा तो पता चला कि मनोहर आर्य ने उनका हाथ पकड़ लिया था. निहाल और धरम मीणा ने कहा कि मेडिकल स्टोर में कोई गड़बड़ी नहीं पाई गई, जैसा कि मनोहर आर्य ने दावा किया था.

दीपिका ने कहा कि मनोहर महिला कर्मचारियों को अपने कार्यालय में अकेले आने के लिए कहते थे. उन्होंने यह भी बताया कि उन्होंने मनोहर को स्पष्ट कह दिया था कि वह उनके कार्यालय अकेले नहीं आएंगी, बल्कि अपने अन्य सहयोगियों के साथ आएंगी.

दीपा ने समिति को बताया कि मनोहर आर्य उन्हें अकेले अपने कार्यालय बुलाते थे और चाय ऑफर करते थे. एक बार उन्हें रेस्तरां ले जाने की भी पेशकश की थी.

11 मई 2022 की बैठक में समिति ने हिमानी, दीपा और दीपिका को फिर से बुलाया. इस बार हिमानी ने बताया कि उन्होंने अपना मामला वापस ले लिया है. चूंकि मनोहर आर्य को दिल्ली के एम्स में स्थानांतरित कर दिया गया है और उन्होंने कई बार उनसे माफी मांगी है, इसलिए वह अब इस मामले को आगे नहीं बढ़ाना चाहतीं. उन्होंने कहा कि उनके और मनोहर आर्य के बीच की गलतफहमी बातचीत से सुलझ गई है.

यही नहीं, हिमानी के पिता ने झज्झर पुलिस से की गई शिकायत भी वापस ले ली.

पीड़िता के माता-पिता ने क्या कहा?

इस बीच सुमन अपनी लड़ाई लड़ती रहीं. समिति की 22 जुलाई, 2022 की बैठक में उनके माता-पिता ने बयान दिया कि मनोहर आर्य ने उनके परिवार को रिश्वत देने की कोशिश की थी और गांव के कुछ लोगों के माध्यम से संपर्क किया.

गांव के दो निवासियों, बाबूलाल और बंटी, ने सुमन की मां से कहा था कि वे मनोहर आर्य से पैसा लेकर केस वापस ले लें. एक स्थानीय पुलिसकर्मी भजनलाल ने भी पीड़िता के घर जाकर कहा था कि मनोहर से पैसा लेकर मामला वापस ले लें.

अंततः 17 सितंबर, 2022 को एनसीआई-एम्स की समिति ने अपने निष्कर्ष में सुमन की ‘शिकायत को गंभीर प्रकृति का पाया.’

समिति ने लिखा: ‘मनोहर आर्य अक्सर महिला कर्मचारियों को अकेले अपने कार्यालय में बुलाते थे. मनोहर आर्य, महिला कर्मचारियों के व्यक्तिगत जीवन में अनावश्यक रूप से दखल देते थे, जो कि उनकी पेशेवर भूमिका से परे था. मनोहर आर्य ने आरोप लगाया था कि सुमन द्वारा की गई शिकायत दवाओं के स्टॉक में गड़बड़ी से प्रेरित थी, लेकिन इसके लिए उन्होंने कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया.’
समिति के सभी सदस्यों ने सर्वसम्मति से यह निष्कर्ष निकाला कि मनोहर आर्य का व्यवहार पूरी तरह से ‘गैर-पेशेवर’ था और ‘एक अधिकारी के रूप में उनके आचरण के अनुरूप नहीं था’.

समिति ने अपनी रिपोर्ट आवश्यक कार्रवाई के लिए सक्षम प्राधिकारी को भेज दी.
कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 की धारा 13(4) के अनुसार नियोक्ता को शिकायत समिति की सिफारिशों पर 60 दिनों के भीतर कार्रवाई करनी होती है. लेकिन अभी तक मनोहर आर्य पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है.

दर-दर भटक रहा पीड़ित परिवार

समिति की रिपोर्ट आने के बाद से पीड़िता के पिता प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति समेत एम्स निदेशक, स्वास्थ्य मंत्रालय, राष्ट्रीय महिला आयोग और कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय को पत्र लिखकर न्याय की मांग कर चुके हैं.

22 सितंबर, 2023 को राष्ट्रीय महिला आयोग ने एम्स निदेशक को लिखा कि इस मामले की जांच कर कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 के नियमों के अनुसार उचित कार्रवाई करें और इस मामले में की गई कार्रवाई की जानकारी 15 दिनों के भीतर आयोग को दें. अब तक एम्स ने जवाब नहीं भेजा है.

पीड़िता के पिता एम्स निदेशक को भी तीन पत्र लिख चुके हैं. 22 जनवरी, 2024 को भेजे अपने आखिरी पत्र में वह लिखते हैं, ‘मैं आपको अत्यंत गंभीर चिंता के साथ यह पत्र लिख रहा हूं, जो मेरी बेटी की सुरक्षा से संबंधित है. मेरी बेटी एम्स झज्जर में एक संविदा कर्मचारी है. मेरी पहले की चिट्ठियों (दिनांक 22 जुलाई, 2023 और 14 सितंबर, 2023) के बावजूद, अब तक दोषी अधिकारी मनोहर आर्य के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है. यह बेहद निराशाजनक है.’

पीड़िता के पिता 14 सितंबर, 2023 को स्वास्थ्य मंत्रालय को लिखा था, ‘जानकर बहुत दुख होता है कि मनोहर आर्य प्रशासन से अनुचित लाभ प्राप्त करने में कामयाब रहे हैं…हमारी जानकारी में आया है कि मनोहर आर्य एक आदतन अपराधी हैं, जिन्होंने पहले भी कार्यस्थल पर अन्य लड़कियों को परेशान किया है…मनोहर आर्य ने मेरी बेटी पर दबाव डाला है और उसे मामला वापस न लेने पर गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी है.’

मंत्रालय ने 6 अक्टूबर, 2023 को एम्स निदेशक को पत्र लिख मामले की जांच करने और रिपोर्ट भेजने को कहा था. लेकिन निदेशक मौन रहे. मंत्रालय ने दूसरा पत्र 18 जनवरी, 2024 को भेजा, लेकिन निदेशक ने इसका भी जवाब नहीं दिया. तीसरा और आखिरी पत्र मंत्रालय ने 19 फरवरी, 2024 को भेजा था, जिसमें पिछले पत्रों की याद दिलाते हुए कहा गया था कि ‘कृपया इस मामले को प्राथमिकता दी जाए.
एक साल बीत जाने के बाद भी एम्स निदेशक चुप हैं.

हालांकि, मंत्रालय के आखिरी पत्र के कुछ महीनों बाद एम्स ने मनोहर आर्य की पदोन्नति कर दी. इसके लिए 22 जून, 2024 को पदोन्नति समिति की बैठक में हुई थी, जिसमें आर्य को एम्स हॉस्पिटल में वरिष्ठ भंडार अधिकारी (सीनियर स्टोर ऑफ़िसर) के रूप में पदोन्नत करने का फैसला लिया गया. इस फैसले का ऑफिस ऑर्डर अगस्त 2024 में जारी किया गया था लेकिन वरिष्ठता पदोन्नति समिति की बैठक के समय से प्रभावी था.

द वायर हिंदी ने इस रिपोर्ट से जुड़े सभी पक्षों से संपर्क किया. पीड़िता से संपर्क करने पर उन्होंने कहा, ‘मेरी सभी बातें पहले से आंतरिक शिकायत समिति की रिपोर्ट में है, मैं अलग से क्या कहूंगी?’

मनोहर आर्य ने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया.

डॉ. शीतल सिंह, जिनके पास पीड़िता सबसे पहले अपनी शिकायत लेकर पहुंची थीं, ने भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.

हमने एम्स की मीडिया सेल इंचार्ज रीमा दादा से पूछा कि आंतरिक शिकायत समिति की रिपोर्ट पर अब तक कार्रवाई क्यों नहीं हुई है, यौन उत्पीड़न के आरोपों की पुष्टि के बाद भी मनोहर आर्य को प्रमोशन कैसे मिल गया, एम्स राष्ट्रीय महिला आयोग और स्वास्थ्य मंत्रालय के पत्रों का जवाब क्यों नहीं दे रहा है?

लेकिन एम्स का कोई जवाब नहीं आया है.

जब मंत्रालय से पूछा गया कि एम्स आखिर आधिकारिक पत्रों की अनदेखी कैसे कर सकता है, उन्होंने भी जवाब नहीं दिया.

इस तरह यह दलित परिवार न्याय का इंतजार कर रहा है. पिता कभी दलितों के मुद्दे पर एक स्थानीय अखबार निकालते थे, अब वे सामाजिक कार्यकर्ता और आरटीआई एक्टिविस्ट हैं. सुमन की मां छोटी सी दुकान चलाती हैं.
(*महिलाओं की पहचान गोपनीय रखने के लिए नाम बदले गए हैं.)

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