राशन वितरण में गंभीर अनियमितताओं की संभावना.
भोपाल/मंगल भारत। मप्र में राशन कार्ड धारकों की ई-केवाईसी की प्रक्रिया ठहर सी गई है। जानकारी के अनुसार राशन दुकानों की ई-केवईसी अभियान की राह में पोर्टेबिलिटी और गड़बडिय़ां बड़ी बाधा बनकर सामने आ रही है। इस कार्य में पोर्टेबिलिटी सुविधा, ओटीपी आधारित वितरण, और दुकानदारों की मिलीभगत से होने वाली अनियमितताएं इस अभियान के सामने गंभीर चुनौती बन रही हैं। टारगेट पूरा करने के लिए अधिकारियों को भी खासी मशक्कत करनी पड़ रही है।
गौरतलब है कि राशन वितरण प्रणाली में पारदर्शिता लाने और फर्जी या डुप्लीकेट राशन कार्ड को रद्द करने के उद्देश्य से भारत सरकार ने राशन कार्ड धारकों के लिए ई-केवाईसी को अनिवार्य किया है। 31 मार्च तक सभी राशन कार्ड धारकों को ई-केवाईसी की प्रक्रिया पूरी करनी थी, लेकिन अभी भी यह प्रक्रिया अधूरी है। जिसके कारण सरकार ने डेडलाइन को अब 30 अप्रैल तक बढ़ा दिया है। दरअसल, सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि राशन कार्ड का लाभ केवल पात्र व्यक्तियों को ही मिले। इसलिए राशन कार्ड को आधार कार्ड से जोडक़र बायोमेट्रिक सत्यापन करके लाभार्थियों की पहचान की जा रही है। ऐसा करने से फर्जी लाभार्थियों की पहचान होगी और सरकारी संसाधनों का सही लोग इस्तेमाल कर पाएंगे।
75 लाख लोगों ने अन्य दुकान से लिया राशन
जानकारी के अनुसार, मार्च में लगभग 7 लाख परिवारों के करीब 35 लाख सदस्यों को ओटीपी से राशन मिला है, जबकि 15 लाख 86 हजार 336 परिवार यानी लगभग 75 लाख लोगों ने अपनी मूल उचित मूल्य दुकान की बजाय पोर्टेबिलिटी के माध्यम से किसी अन्य दुकान से राशन लिया। इतनी बड़ी संख्या में ओटीपी एवं पोटेबिलिटी से राशन वितरण में गंभीर अनियमितताओं की संभावना का अंदेशा बन रहा है। उपभोक्ताओं द्वारा ओटीपी और पोर्टेबिलिटी वाला तरीका अपनाए जाने से सबसे ज्यादा चुनौती ई-केवाईसी लक्ष्य पूरा होने की खड़ी हो रही है। सरकार ने उपभोक्ताओं को पोटेबिलिटी की सुविधा इसलिए दी थी ताकि कोई भी हितग्राही कहीं से भी राशन प्राप्त कर सके। सूत्र बताते हैं कि उचित मूल्य की दुकानों के संचालक गरीब उपभोक्ताओं को बगैर ई-केवाईसी कराए सिर्फ ओटीपी के जरिए राशन लेने के लिए बरगला रहे हैं। इसके अलावा बायोमेट्रिक खराब होने का बहाना करके दूसरी दुकान पर भेज रहे हैं। इससे राशन वितरण के डेटा में भी गड़बड़ हो रही है। विभाग के पास इस तरह की शिकायतें भी पहुंची हैं कि कुछ दुकानदार उपभोक्ताओं से साथ मिलीभगत करके पोर्टेबिलिटी का दुरुपयोग कर रहे हैं।
सत्यापन के लिए चलाया जा रहा अभियान
ई-केवाईसी के लिए खाद्य विभाग ने 9 से 30 अप्रैल तक अभियान चलाया जा रहा है। खाद्य विभाग के अधिकारी अगर ईकेवायसी के साथ-साथ पोर्टेबिलिटी के आंकड़ों का विश्लेषण, दुकानदारों के रिकॉर्ड की जांच और बॉयोमेट्रिक सत्यापन किया जाए तो ओटीपी और पोर्टेबिलिटी के आंकड़ों की वास्तविकता सामने आ सकती है। आयुक्त खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति कर्मवीर शर्मा का कहना है कि तीन दिन पूर्व सभी जिलाधीशों को प्रशिक्षण दिया गया था, निर्देश दिए गए है। गांव स्तर पर सूची उपलब्ध करा दी है ताकि गांव में ही वास्तविक हितग्राही को चिन्हित किया जा सके। बीते माह प्रदेश में जो अनाज का वितरण हुआ है उसके अनुसार इंदौर (105.61 प्रतिशत), जबलपुर (103.29 प्रतिशत), उज्जैन (102.45 प्रतिशत), भोपाल (101.86 प्रतिशत) जैसे जिलों में कुल कार्डधारकों से अधिक वितरण दर्ज हुआ है। वितरण से यह संदेह पैदा हो रहा कि या तो बड़ी संख्या में लोग पोर्टेबिलिटी का लाभ ले रहे हैं, या फिर कहीं न कहीं डेटा में हेरफेर हो रहा है। जरूरतमंद उपभोक्ताओं की संख्या वाले श्योपुर (86.26 प्रतिशत), अलीराजपुर (88.57 प्रतिशत), झाबुआ (89.09 प्रतिशत), सिंगरौली (89.98 प्रतिशत) जैसे जिलों में ई-केवायसी का लक्ष्य अभी तक पूरा नहीं हुआ है।
टारगेट पूरा करने आ रहा पसीना
दरअसल, मप्र के सभी जिलों में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के अंतर्गत ई-केवाईसी अभियान जारी है। अभियान के अंतर्गत सभी उपभोक्ताओं के आईडी को लिंक किया जा रहा है। इस कार्य में पोर्टेबिलिटी सुविधा, ओटीपी आधारित वितरण, और दुकानदारों की मिलीभगत से होने वाली अनियमितताएं इस अभियान के सामने गंभीर चुनौती बन रही हैं। टारगेट पूरा करने के लिए अधिकारियों को भी खासी मशक्कत करनी पड़ रही है। दरअसल, राशन कार्ड ई-केवाईसी की डेडलाइन बढ़ाने के साथ ही सरकार के द्वारा यह भी कहा गया है कि यदि तय समय तक लाभार्थी राशन कार्ड ई-केवाईसी नहीं करवाते हैं, तो उन्हें मिलने वाले लाभों को समाप्त कर दिया जाएगा। जैसे मुफ्त राशन की सुविधा। इसके अलावा उनका राशन कार्ड भी रद्द किया जा सकता है।