मप्र के आईएएस अफसरों के नवाचारों की दुनियाभर में चर्चा

मनीष द्विवेदी। मंगल भारत। मप्र आज देश में विकास का

आईना बना हुआ है। यहां की जनता अपनी सरकार की योजनाओं का लाभ प्राप्त कर खुशहाल हो रही है। इसके पीछे आईएएस अफसरों के नवाचार का बड़ा योगदान है। प्रदेश के आईएएस अफसरों ने कई ऐसी योजनाओं को मूर्तरूप दिया है, जो देश ही नहीं विदेशों में भी छायी हुई हैं। प्रदेश के आईएएस अफसरों के नवाचार से आज मप्र का देश-दुनिया में मान बढ़ा है। मप्र के आईएएस अफसरों ने केवल प्रदेश के लिए ही नहीं बल्कि केंद्र सरकार के लिए भी कई ऐसी योजनाएं बनाई हैं जिसे देश-दुनिया में सराहना मिली। इनमें लाड़ली लक्ष्मी योजना का जिक्र खास है। इस योजना को बाद में 15 राज्यों ने अलग-अलग तरह से कॉपी किया और 12 से अधिक पीएचडी इस पर हुईं। आज इसमें 50 लाख बेटियां पंजीकृत हैं। इन्हें समय समय पर पैसा मिलता है, जिससे पढ़ाई चलती रहे। 21 साल की होने पर एक लाख रुपए मिलता है। इस स्कीम ने भाजपा को 2008 में दोबारा सत्ता में ला दिया, साथ ही लिंगानुपात सुधारने में भी अहम भूमिका निभाई। इसी तरह पीएम गतिशक्ति ने परियोजनाओं को नई रफ्तार दी है। लार्निंग और प्रोसेस के लिए शानदार टूल पीएम गतिशक्ति को मुख्य सचिव अनुराग जैन ने आकार दिया था। प्रोजेक्ट लेट होने की बड़ी वजह विभागों में तालमेल की कमी है। सडक़, रेल, मेट्रो, बिजली- हर काम में समन्वय जरूरी है। इसी जरूरत को देखते हुए राष्ट्रीय स्तर पर पीएम गतिशक्ति पोर्टल को प्लानिंग का टूल बनाया गया। केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के दौरान अनुराग जैन ने इसमें अहम योगदान दिया। जीआईएस बेस्ड पोर्टल से विभागों और सरकारों को जरूरी डाटा एक साथ मिलने लगा। इस नवाचार के लिए पीएम एक्सीलेंस अवॉर्ड मिला।
इनके नवाचारों को मिला सम्मान
मप्र के अधिकारियों की जनहितकारी पहलों जनसेवा, नवाचार और दूरदर्शिता से प्रदेश ही नहीं, बल्कि देशभर में राज्य की सकारात्मक पहचान बनी। महिला सशक्तिकरण, स्वच्छता, पर्यावरण संरक्षण, कृषि सुधार और शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में इनके नवाचारों ने स्थायी बदलाव की नींव रखी। इन पहलों को जहां राज्य के भीतर सराहा गया, वहीं देश के अन्य राज्यों ने भी इन्हें अपनाकर अपने यहां लागू किया। इन अधिकारियों को राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया। लोक स्वास्थ्य यांत्रिकीय विभाग में प्रमुख सचिव पी. नरहरि ने 2006 में महिला एवं बाल विकास विभाग में रहते हुए लाड़ली लक्ष्मी योजना की रूपरेखा तैयार की थी। यह योजना आज न केवल मध्यप्रदेश में सफल है, बल्कि महाराष्ट्र, झारखंड और दिल्ली सहित कई राज्यों ने इसे अपनाया है। वर्तमान में उद्यानिकी और खाद्य प्रसंस्करण विभाग में आयुक्त, प्रीति मैथिल को रीवा कलेक्टर रहते लिंगानुपात सुधारने के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। कृषि संचालक के रूप में उन्होंने फसल बीमा योजना में रिमोट सेंसिंग तकनीक लागू की, जो अब राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त कर चुकी है। मिलेट्स को प्रोत्साहित करने के लिए किए गए कार्यों के लिए उन्हें आईसीएमआर द्वारा सम्मानित किया गया। केंद्रीय मंत्री के निज सचिव प्रवीण अढायच को दीनदयाल उपाध्याय पंचायत सशक्तिकरण के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। जल जीवन मिशन के तहत बुरहानपुर को हर घर नल सुविधा वाला पहला जिला बनाने पर उन्हें राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों से सम्मान मिला। वर्तमान में मसूरी स्थित लाल बहादुर शास्त्री प्रशासन अकादमी में कार्यरत प्रियंका दास ने भोपाल में नगर निगम आयुक्त रहते हुए भानपुर खंती को वैज्ञानिक ढंग से बंद करवाया और पुनर्विकास कराया। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान में उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ। वर्तमान में खाद्य और नागरिक आपूर्ति विभाग में आयुक्त कर्मवीर शर्मा को डिंडोरी और रीवा में बेहतर प्रशासनिक काम के लिए कई राष्ट्रीय पुरस्कार मिले। बड़वानी कलेक्टर रहते हुए राहुल हरिदास फटिंग ने समग्र विकास के काम किए। दुर्गम स्थानों तक केंद्र की स्कीमें पहुंचाई। वारलू कमांडो, मिशन नीव जैसे नवाचार किए। अभी हाउसिंग बोर्ड कमिश्नर हैं। ‘पीएम उत्कृष्टता पुरस्कार-2024’ से सम्मानित होंगे।
‘मोटी आई’ मॉडल की गूंज दिल्ली तक
आदिवासी जिले झाबुआ में कुपोषण से निपटने के लिए कलेक्टर नेहा मीणा द्वारा किए गए प्रयासों को काफी सराहा जा रहा है। इस काम के लिए उन्हें आज नई दिल्ली में पीएम एक्सीलेंस अवॉर्ड मिलेगा। नेहा ने इस अभियान के जरिए बच्चों को कुपोषण से बचाया। वैक्सीनेशन, गर्भवतियों की जांचें, लड़कियों की शिक्षा और कुपोषण हटाने के प्रयासों के अलावा उनका मोटी आई मॉडल सरकार को भी पसंद आया है और उसे अब दूसरे जिलों में भी अपनाया जाएगा। मोटी आई का मतलब होता है, बड़ी मां। आदिवासी परिवार अपने रीति-रिवाजों, गांव के बड़े बुजुर्गों का बड़ा सम्मान करते हैं, इसलिए नेहा ने इस अभियान को देसी अंदाज में ढाला। भीली बोली में लोक गीत बनवाए, गांवों-फलियों तक अभियान की खूबियां बताईं और पोषण आहार को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने गांव में अनुभवी महिलाओं की मदद ली। उन्हें प्रशिक्षित किया। हर गांव में तैयार हुई मोटी आई बच्चों को कुपोषण से दूर रखने में पूरी मदद करती है और मोटी आई कुपोषित बच्चों की मॉलिश भी करती है। झाबुआ जिले में तैयार हुई 1325 मोटी आई ने एक हजार से ज्यादा बच्चों को कुपोषण से बाहर निकाला। कुपोषण से निकल कर बच्चे सामान्य श्रेणी में आ चुके हैं। दरअसल जिले में कई परिवार यह समझ ही नहीं पाते थे कि उनका बच्चा कुपोषित हो चुका है। कुपोषित बच्चों का डेटा भी कलेक्टर नेहा मीणा ने एकत्र किया और यह पाया कि रोजगार की तलाश में जो परिवार बाहर जाते हैं, उनके बच्चे ज्यादा कुपोषित हैं। वे अपने बच्चे को दादा-दादियों के पास छोडक़र जाते हैं। वे उनका ठीक से ध्यान नहीं रख पाते हैं, इस कारण बच्चे कुपोषित हो जाते हैं। सबसे पहले पलायन करने वाले परिवारों को जिले में चिन्हित किया गया और उनके बच्चों की देखभाल का जिम्मा मोटी आई को दिया गया और बच्चों का कुपोषण दूर कर उन्हें सामान्य श्रेणी में लाया गया। कलेक्टर नेहा मीणा कहती है कि बच्चों को स्वस्थ देखकर सुकून मिलता है। अब गांव में इसे लेकर जागृति आ चुकी है।