सामान्य, पिछड़ा और अल्पसंख्यक अधिकारी-कर्मचारी संघ इससे सहमत नहीं.
मप्र सरकार ने राज्य के करीब चार लाख शासकीय अफसरों और कर्मचारियों की 9 वर्षों से अटकी पदोन्नति की मांग को लेकर बड़ी घोषणा की है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की अध्यक्षता में हुई उच्चस्तरीय बैठक में एक फार्मूले को अंतिम रूप दे दिया गया है, जो जल्द ही कैबिनेट की मंजूरी के बाद लागू होगा। लेकिन नई पदोन्नति नीति की मंजूरी से पहले ही विवादों से घिरी है, खासकर मप्र में जहां पिछले 9 वर्षों से पदोन्नति पर रोक लगी हुई थी। सामान्य, पिछड़ा और अल्पसंख्यक अधिकारी-कर्मचारी संघ (सपाक्स) इससे सहमत नहीं है। ऐसे में 9 वर्षों से अटकी पदोन्नति की नई नीति विवादों में घिर गई है। दरअसल, कुछ कर्मचारी और संगठन पदोन्नति में आरक्षण के प्रावधान के खिलाफ हैं, क्योंकि उनका मानना है कि इससे सामान्य और अन्य पिछड़ा वर्ग के कर्मचारियों के साथ अन्याय होता है। नई नीति में पदोन्नति में वर्टिकल रिजर्वेशन को आधार बनाने की बात कही जा रही है, जिसका मतलब है कि कर्मचारी जिस वर्ग में नियुक्त हुए हैं, उन्हें उसी वर्ग के पदों पर पदोन्नति दी जाएगी। इससे कुछ कर्मचारी और संगठन विरोध कर रहे हैं, क्योंकि वे मानते हैं कि यह व्यवस्था योग्यता के आधार पर पदोन्नति को प्रभावित कर सकती है। पदोन्नति नियम बनाने में विभिन्न न्यायालयों द्वारा समय-समय पर दिए गए निर्देशों का ध्यान रखा जा रहा है, लेकिन अभी भी कुछ चीजें तय नहीं हुई हैं, जिससे कर्मचारियों में असंतोष है। इसमें कर्मचारियों को पदोन्नति की तारीख से एरियर मिलने का भरोसा नहीं है, जो उनकी चिंता का एक और कारण है। नई नीति के ड्राफ्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया है, जिससे कर्मचारियों को इस बारे में चिंता है कि उनके हितों की रक्षा कैसे की जाएगी। इन सभी कारकों के कारण, पदोन्नति नीति को लेकर विवाद और असंतोष बना हुआ है, और कर्मचारियों को उम्मीद है कि नीति अंतिम रूप से तैयार होने से पहले इन मुद्दों को ध्यान में रखा जाएगा।
सामान्य वर्ग के कर्मचारी नाराज
दरअसल, प्रदेश में पदोन्नति की प्रक्रिया आरंभ होने से पहले ही विवादों से घरती जा रही है। हाई कोर्ट ने वर्ष 2016 में जिस लोकसेवा पदोन्नति नियम-2002 को निरस्त किया था, लगभग नई नीति उसी को ध्यान में रखकर बनाई जा रही है। हाई कोर्ट ने वर्ष 2002 से 2016 के बीच पदोन्नत होने वाले अनुसूचित जाति-जनजाति के कर्मचारियों को पदावनत करने के निर्देश दिए थे, लेकिन राज्य सरकार नई नीति में सामान्य वर्ग के साथ अनुसूचित जाति-जनजाति वर्ग के कर्मचारियों को पुन: एक और पदोन्नति देने की तैयारी कर रही है। सामान्य वर्ग के कर्मचारी इससे नाराज हैं। इसकी वजह यह है कि अजा अजजा वर्ग के कनिष्ठ कर्मचारी पहले से ही सामान्य वर्ग के वरिष्ठ कर्मचारियों से ऊपर पहुंच गए हैं, नई नीति से यह अंतर और बढ़ जाएगा। सामान्य, पिछड़ा और अल्पसंख्यक अधिकारी-कर्मचारी संघ (सपाक्स) इससे सहमत नहीं है। मंत्रालय सेवा अधिकारी कर्मचारी संघ के अध्यक्ष इंजीनियर सुधीर नायक ने कहा कि भेदभावपूर्ण पदोन्नति नीति लाई गई तो कर्मचारी इसके विरोध में आंदोलन करेंगे। नायक ने कहा कि अभी राजपत्रित अधिकारी संघ के प्रांतीय सम्मेलन में पांच प्रतिशत डीए बढ़ाने की घोषणा करने के बाद मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव ने एक बार पुन: पदोन्नतियां शुरू करने की घोषणा दोहरायी। परंतु लाख टके का सवाल यह है कि पदोन्नतियां होंगी तो किस तरह से होंगी। यदि 2016 से 2024 की डीपीसी पृथक-पृथक प्रभाव से नहीं की गई और प्रत्येक संवर्ग में वर्टिकल आरक्षण नहीं रखा गया तो फिर प्रत्येक वर्ग के साथ न्याय नहीं हो पाएगा और सारी कवायद ढाक के तीन पात होकर रह जाएगी। यदि इन दो बिंदुओं की उपेक्षा करते हुए कोई पदोन्नति नीति बनाई जाती है तो मुख्यमंत्री की सभी वर्गों को न्याय देने की मंशा पूरी नहीं हो पाएगी और नई नीति को चुनौती देने वाली सैकड़ों याचिकाएं उच्च न्यायालय में दायर होने की स्थिति निर्मित होंगी। प्रदेश व्यापी बड़ा कर्मचारी आंदोलन खड़ा होने के भी आसार हैं। इन्हीं आशंकाओं के बीच मंगलवार को मंत्रालय सेवा अधिकारी कर्मचारी संघ के एक प्रतिनिधि मंडल ने अध्यक्ष इंजी. सुधीर नायक एवं सलाहकार आशीष सोनी के नेतृत्व में पदोन्नति नीति का ड्राफ्ट बनाने हेतु गठित कोर कमेटी के सदस्यों मनीष रस्तोगी प्रमुख सचिव, वित्त और पी, नरहरि, प्रमुख सचिव लोक स्वास्थ्य यांत्रिकों को ज्ञापन सौंपा और कर्मचारियों की आम जन भावनाओं से अवगत कराया।
गोरकेला ड्राफ्ट क्यों दरकिनार
सरकार के अनुसार पदोन्नति का नया फार्मूला सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अधीन होगा, और उसके अनुसार अंतिम रूप से अमल में लाया जाएगा। लेकिन इस पूरी प्रक्रिया के बीच एक अहम सवाल उठ खड़ा हुआ हैकि सरकार ने आखिर उस गोरकेला ड्राफ्ट को अमल में क्यों नहीं लाया, जिसे वर्ष 2017 में सरकार द्वारा विशेष रूप से पदोन्नति में आरक्षण को लेकर तैयार किया गया था? यह ड्राफ्ट तब की सरकार द्वारा गठित एक समिति की सिफारिशों पर आधारित था और इसे सुप्रीम कोर्ट के नागरज बनाम भारत सरकार फैसले को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया था। गोरकेला समिति ने पदोन्नति में आरक्षण को संविधान सम्मत और न्यायिक दृष्टि से टिकाऊ बनाने की दिशा में एक ठोस प्रारूप तैयार किया था, जिसमें तीन शर्तों- प्रतिनिधित्व, प्रशासनिक दक्षता (मेरिट), और सामाजिक पिछड़ापन (बैकवर्डनेस)को समाहित किया गया था और इसमें सभी वर्ग के अधिकारी कर्मचारियों के अधिकारों का विधि सम्मत ख्याल रखा गया था। इस ड्राफ्ट का उद्देश्य यह था कि सरकार के किसी भी प्रमोशन निर्णय को कोर्ट में चुनौती न दी जा सके और उसे न्यायिक रूप से टिकाऊ बनाया जा सके। लेकिन दुर्भाग्यवश, यह ड्राफ्ट कभी भी कैबिनेट से पारित नहीं हुआ और न ही इसे आधिकारिक रूप से लागू किया गया। यह केवल कागजों और फाइलों में सिमट कर रह गया।जिसका सेवारत समाज में अच्छा संदेश नहीं गया वरन सरकार की कथनी और करनी में अंतर भी दिखाई दिया। गौर करने वाली बात यह है कि अब जिस फार्मूले को सरकार ने अपनाया है, उसमें गोरकेला ड्राफ्ट की जटिलताओं से बचते हुए एक सरल और व्यावहारिक रास्ता चुना गया है। यह फार्मूला मुख्य रूप से पदों के वर्गानुसार वितरण पर केंद्रित है, जिसमें आंकड़ों की जटिल गणना या विस्तृत सामाजिक अध्ययन की आवश्यकता नहीं पड़ती। ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार ने कानूनी दांवपेंच से बचते हुए एक सीधा समाधान खोजा है, जिससे लंबे समय से चल रहे प्रमोशन विवाद को टाला जा सके।