सुप्रीम कोर्ट ने ‘डिजिटल एक्सेस’ को बताया मौलिक अधिकार का हिस्सा

सुप्रीम कोर्ट ने डिजिटल पहुंच को जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार का हिस्सा माना है. कोर्ट ने कहा कि डिजिटल बदलाव समावेशी हो और दृष्टिहीनों सहित वंचित समुदायों के लिए ब्रेल, वॉइस जैसी सुविधाएं हों. सरकार को डिजिटल डिवाइड खत्म करने के लिए वैकल्पिक केवाईसी प्रक्रिया अपनानी होगी.

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (30 अप्रैल) को यह फैसला सुनाया कि डिजिटल एक्सेस का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता के मूल अधिकार का अभिन्न हिस्सा है.

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, कोर्ट ने केंद्र सरकार और उसकी एजेंसियों को निर्देश दिया कि गांवों की आबादी, वरिष्ठ नागरिकों, आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों, भाषाई अल्पसंख्यकों और दिव्यांग लोगों को डिजिटल दुनिया से जोड़ने और डिजिटल डिवाइड को कम करने की दिशा में ठोस कदम उठाएं.

कोर्ट ने खासतौर पर दृष्टिहीन और श्रवण बाधित लोगों (जिनके सुनने की क्षमता प्रभावित होती है) के लिए मौजूदा केवाईसी प्रक्रिया को संशोधित करने और ब्रेल, वॉइस-इनेबल्ड सेवाओं जैसे वैकल्पिक फॉर्मेट विकसित करने के लिए विस्तृत दिशानिर्देश दिए, ताकि सभी के लिए डिजिटल सेवाएं सुलभ बन सकें.

डिजिटल बदलाव समावेशी और समानता-आधारित होना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

कोर्ट ने कहा कि आज के दौर में शासन, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, आर्थिक अवसरों सहित ज़रूरी सेवाओं तक पहुंच मुख्य रूप से डिजिटल प्लेटफॉर्म के जरिये होती है. ऐसे में संविधान के अनुच्छेद 21 में उल्लिखित जीवन के अधिकार की पुनर्व्याख्या ज़रूरी हो गई है ताकि इसमें डिजिटल यथार्थ को शामिल किया जा सके.

डिजिटल असमानता केवल शारीरिक तौर पर अक्षम लोगों को ही नहीं, बल्कि ग्रामीण इलाकों के लोगों, वरिष्ठ नागरिकों, आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों और भाषाई अल्पसंख्यकों को भी सिस्टम से बाहर रखती है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वास्तविक समानता की भावना यही मांग करती है कि डिजिटल बदलाव समावेशी और न्यायसंगत हो.

जस्टिस आर. महादेवन (जिन्होंने यह फैसला लिखा) और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने यह फैसला दो तेजाब हमले की शिकार महिलाओं की याचिका पर सुनाया, जो चेहरे की विकृति और 100% दृष्टिहीनता का सामना कर रही हैं.

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि उन्हें डिजिटल केवाईसी/ ई-केवाईसी की प्रक्रिया में कठिनाई हो रही है क्योंकि वे ‘लाइव फोटो’ क्लिक करने के लिए अपनी आंख नहीं झपका सकतीं, जिसकी वजह से वे न बैंक खाता खोल पा रही हैं, न सिम कार्ड खरीद पा रही हैं.

कोर्ट ने उनकी याचिका स्वीकार करते हुए, सरकारी एजेंसियों और रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) को निर्देश दिया कि वे ‘लाइवनेस’ या ‘लाइव फोटो’ लेने के लिए वैकल्पिक और समावेशी तरीकों को अपनाने के लिए गाइडलाइन जारी करें. कोर्ट ने यह भी कहा कि पेपर-बेस्ड केवाईसी प्रक्रिया को भी चालू रखा जाए.

अंत में सुप्रीम कोर्ट ने कहा,
‘डिजिटल खाई को पाटना अब केवल नीति का मामला नहीं रह गया है, यह एक संवैधानिक ज़रूरत बन गया है, जिससे नागरिकों को गरिमा, स्वायत्तता और सार्वजनिक जीवन में समान भागीदारी मिल सके. इसलिए डिजिटल पहुंच का अधिकार, जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार का जरूरी हिस्सा बन जाता है. इसका मतलब है कि सरकार को ऐसे समावेशी डिजिटल सिस्टम लागू करने होंगे, जो केवल विशेषाधिकार प्राप्त लोगों के लिए नहीं, बल्कि हाशिए पर रहे वंचित समुदायों के लिए भी हों.’