पौने पांच लाख कर्मचारियों को पदोन्नति प्रस्ताव का इंतजार.
प्रदेश सरकार ने मप्र के करीब पौने पांच लाख अधिकारी-कर्मचारियों कि पदोन्नति में बनी बाधा को हटाने का रास्ता निकाल लिया है। करीब एक माह पहले मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव इस संबंध में घोषणा कर चुके हैं। तब से जब भी मंगलवार को कैबिनेट की बैठक होती है कर्मचारियों का ध्यान इस पर रहता है कि प्रस्ताव कब आएगा। लेकिन अभी तक कई कैबिनेट बैठक हो चुकी हैं और कर्मचारियों को इंतजार है कि वह मंगलकारी मंगलवार कब आएगा? गौरतलब है कि अधिकारी-कर्मचारी लंबे अरसे से प्रमोशन से वंचित रहे हैं। हजारों अधिकारी कर्मचारी प्रमोशन के बिना रिटायर भी हो गए हैं। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा है कि आठ साल से अधिक समय से कर्मचारियों, अधिकारियों की पदोन्नति का मसला उलझा हुआ है। अब सरकार ने उनके प्रमोशन करने का फैसला लिया है। सीएम ने कहा कि अब सरकार ने अलग-अलग स्तर पर चर्चा के बाद समस्या का समाधान निकाला है। उन्होंने कहा कि मंत्रियों, डिप्टी सीएम और सभी वर्गों के साथ मिलकर प्रमोशन का रास्ता तलाशा है। धीरे-धीरे प्रमोशन के नजदीक आ गए हैं। जल्दी ही प्रमोशन के लिए कैबिनेट से मंजूरी देकर प्रमोशन करने का काम करेंगे।
नौ साल में कब, क्या हुआ
हाईकोर्ट जबलपुर ने अप्रैल, 2016 में पदोन्नति में आरक्षण के 2002 के नियम समाप्त करने का आदेश दिया। तत्कालीन शिवराज सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ मई, 2016 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। तत्कालीन कमलनाथ सरकार ने कर्मचारियों के लिए टाइम बाउंड प्रमोशन का फार्मूला तैयार किया था, लेकिन इस पर अमल से पूर्व सरकार गिर गई। कर्मचारियों को उच्च पद का प्रभार देकर पदनाम देने को लेकर 9 दिसंबर, 2020 को उच्च स्तरीय समिति गठित की गई। पदोन्नति का फार्मूला तय करने के लिए 13 सितंबर, 2021 को मंत्री समूह गठित किया गया। मंत्री समूह की सिफारिशें लागू नहीं की गई। सीएम डॉ. मोहन यादव ने 8 अप्रैल, 2025 को कर्मचारियों को जल्द पदोन्नति देने की घोषणा की।
सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का डर
मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद पदोन्नति में हो रही देरी से कर्मचारी निराश होने के साथ ही आशंकित भी हैं। आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि सरकार ने कर्मचारियों की पदोन्नति को लेकर वर्टिकल रिजर्वेशन पर आधारित फार्मूला तैयार किया है। कानूनी पेंचीदगी और कर्मचारी संगठनों की मंशा को देखते हुए विधि विशेषज्ञों के सुझाव पर इसमें संशोधन किया जा रहा है। अब यह मामला मुख्य सचिव अनुराग जैन के पास पहुंच गया है। सामान्य प्रशासन विभाग के अधिकारियों का कहना है, चूंकि पदोन्नति का मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है, इसलिए सरकार इस पर अंतिम निर्णय लेने से पहले एक-एक बिंदु पर बारीकी से मंथन कर रही है। हालांकि अधिकारी मई में कर्मचारियों को पदोन्नति दिए जाने की बात कह रहे हैं। अधिकारियों ने स्पष्ट किया है कि सभी प्रमोशन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अधीन होंगे। पदोन्नति के फार्मूला में संशोधन की खबरों के बीच कर्मचारी संगठन भी सक्रिय हो गए हैं। मंत्रालय सेवा अधिकारी कर्मचारी संघ के अध्यक्ष सुधीर नायक के नेतत्व में कर्मचारियों ने पदोन्नति नीति का ड्राफ्ट बनाने हेतु गठित कोर कमेटी के सदस्यों को ज्ञापन सौंपा है। इसमें कहा गया है कि पदोन्नति में यदि वर्ष 2016 से 2024 की डीपीसी पृथक-पृथक भूतलक्षी प्रभाव से नहीं की गई और प्रत्येक संवर्ग में वर्टिकल आरक्षण नहीं रखा गया, तो कर्मचारियों के साथ न्याय नहीं हो पाएगा। यदि इन 2 बिंदुओं की उपेक्षा करते हुए पदोन्नति नीति बनाई जाती है, नई नीति को चुनौती देने वाली सैकड़ों याचिकाएं हाईकोर्ट में दायर होने की स्थिति निर्मित होगी। प्रदेश व्यापी बड़ा कर्मचारी आंदोलन होने के भी आसार हैं। कर्मचारियों की पदोन्नति के लिए वर्टिकल रिजर्वेशन पर आधारित फार्मूला के अनुसार कर्मचारी जिस श्रेणी (एससी, एसटी, सामान्य) में एक बार नियुक्त हुआ है, वह प्रमोशन में भी उसी श्रेणी में आगे बढ़ेगा। जितने पद रिक्त होंगे, उतने पद पदोन्नति के लिए उसी वर्ग में बांटे जाएंगे। अन्य वर्ग के कर्मचारी उन पदों पर दावा नहीं कर सकेंगे, भले ही पद खाली रह जाएं।
हर महीने 3000 कर्मचारी होते हैं रिटायर
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 30 अप्रैल 2016 को मप्र लोक सेवा (पदोन्नति) नियम 2002 की पदोन्नति में आरक्षण का प्रावधान खत्म कर दिया था। शिवराज सरकार ने 12 मई 2016 को हाईकोर्ट के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया, तभी से मध्य प्रदेश में पदोन्नति पर रोक लगी है। पदोन्नति पर रोक लगे करीब 9 साल 9 हो गए हैं। इस अवधि में 1 लाख 50 हजार से अधिक कर्मचारी रिटायर हुए हैं, इनमें से करीब 1 लाख कर्मचारियों को इन्हीं 8 साल 11 माह में पदोन्नति मिलनी थी। बता दें कि हर माह प्रदेश में लगभग 3000 कर्मचारी रिटायर होते हैं। 2018 का चुनाव हारने के बाद 2020 में फिर से सत्ता में आई शिवराज सरकार ने पदोन्नति का हल निकालने की रणनीति बनाई थी। इसके लिए उप मंत्री परिषद समिति बनाई गई थी। जिसने सुप्रीम कोर्ट में सरकार की ओर से केस लड़ रहे अधिवक्ताओं के परामर्श से पदोन्नति के नए नियम बनाए थे, जो अनारक्षित वर्ग के कर्मचारियों ने नहीं माने। उनका कहना था कि कमेटी ने पुराने नियमों को नए कलेवर में परोस दिया। प्रदेश में पदोन्नति पर रोक के बावजूद विभिन्न विभागों के 500 से अधिक कर्मचारियों को प्रमोशन मिला है। दरअसल, इस रोक के खिलाफ सबसे पहले स्कूल शिक्षा विभाग के अधिकारी धीरेंद्र चतुर्वेदी हाईकोर्ट गए थे। कोर्ट ने प्रकरण सुनने के बाद पदोन्नति के आदेश सरकार को दिए थे और चतुर्वेदी को पदोन्नति दी गई। इसके बाद अलग-अलग विभागों के कर्मचारी कोर्ट जाते रहे और कोर्ट के आदेश पर पदोन्नति दी जाती रही हैं। सामान्य, पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी कर्मचारी संस्था (सपाक्स) के अध्यक्ष डॉ. केएस तोमर का कहना है कि यदि सरकार पदोन्नति का फार्मूला तैयार करते समय सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन नहीं करती है, तो यह कोर्ट की अवमानना होगी। सरकार को पदोन्नति का फार्मूला तैयार करते समय ध्यान रखे कि सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न आदेशों के अनुसार अब रोस्टर प्रणाली खत्म होगी और पदोन्नति में रिजर्वेशन डायनामिक होगा अर्थात हर बार यह आंकलन करना होगा कि प्रतिनिधित्व के लिए कितने पद निर्धारित किए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार प्रतिनिधित्व जनसंख्या शत-प्रतिशत के मान से निर्धारित नहीं किया जा सकता। क्रीमी लेयर को पृथक किए बिना पदोन्नति में आरक्षण का प्रावधान किया जाएगा, तो यह सुप्रीम कोर्ट की अवमानना होगी। बैकलॉग की सीमा निश्चित करना होगी। पूर्व के नियमों से जिनकी पदोन्नति हो चुकी है और जो दो-दो, तीन-तीन पदोन्नति पा चुके हैं, वर्तमान में उन्हें पदोन्नत नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि यदि सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को दरकिनार कर पदोन्नति करती है, तो सपाक्स कोर्ट जाएगा। बता दें कि मप्र में अधिकारी, कर्मचारियों की पदोन्नति पर पिछले नौ साल से रोक लगी है। पदोन्नति के इंतजार में नौ साल में करीब एक लाख अधिकारी-कर्मचारी सेवानिवृत्त हो चुके है.