कुर्सी के डर से शिवराज सिंह भी नहीं तोड़ सके इछावर जाने का मिथक

प्रदेश की राजनीति में कई तरह के मिथक हैं। इन मिथकों को लेकर चर्चा भी खूब होती है। ऐसा ही एक मिथक जुड़ा है इछावर विधानसभा से। कहा जाता है जो मुख्यमंत्री यहां आया वह अपनी कुर्सी गंवा देता है। यही वजह है कि यहां आने से किसी भी दल का मुख्यमंत्री क्यों न हो जाने से बचता है। माना जाता है कि यहां आने के बाद मुख्यमंत्री

की कुर्सी चली जाती है। बीते सालों का तो यही इतिहास रहा है। हो सकता है कि इस तरह की घटनाएं महज संयोग ही रही हों। यही वजह है कि सूबे के बीते 13 सालों से मुखिया शिवराज सिंह चौहान ने भी इछावर में कदम नही रखा है। हालांकि इस अवधि में पूरे प्रदेश मेें दौरे करते रहे हैं। यह हालात तब है जब इछावर की दूरी भोपाल से मात्र 57 किलोमीटर है। दरअसल इछावर के चारों तरफ बावड़ी और शमशान घाट हैं, जिसके चलते यह किसी भी मुख्यमंत्री की कुर्सी जाने का कारण बन जाती है और यही कारण है कि कोई भी मुख्यमंत्री यहां जनसभाएं व बैठकों में शामिल नहीं होता है। अभी तक का इतिहास को देखें तो जो भी मुख्यमंत्री यहां आया है उसे अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी है।
और दिग्विजय सिंह को गंवानी पड़ी सत्ता
इछावर के मिथक को तोडऩे का प्रयास कई मुख्यमंत्री कर चुके हैं लेकिन जितने भी मुख्यमंत्रियों ने यहां कदम रखा उन सभी को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी। 2003 में तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह इस मिथक को तोडऩे के लिए 15 नवंबर, 2003 को आयोजित सहकारी सम्मेलन में शामिल होने इछावर आए थे। इस दौरान दिग्विजय सिंह ने अपने भाषण में कहा था कि मैं मुख्यमंत्री के रूप में इछावर के इस मिथक को तोडऩे आया हूं और उनकी इस यात्रा के बाद मध्य प्रदेश में हुए चुनावों में कांग्रेस को करारी हार का मुंह देखना पड़ा था।
अर्जुन सिंह की छीन गई थी कुर्सी
इस अंधविश्वास को मानने वाले बताते हैं कि जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह थे। 1985 के दौर में सियासत ऐसी चली कि कांग्रेस पार्टी ने अर्जुन सिंह को मध्य प्रदेश से अलग कर दिया और उन्हें पंजाब का राज्यपाल बना दिया।
अशोकनगर को लेकर भी है अंधविश्वास
मोतीलाल वोरा की चली गई कुर्सी
यह भी माना जाता है कि जब 1988 में कांग्रेस की सरकार थी और मोतीलाल वोरा मुख्यमंत्री थे। एक बार वे तत्कालीन रेल मंत्री माधवराव सिंधिया के साथ रेलवे स्टेशन के फुट ओवर ब्रिज का उद्घाटन करने अशोकनगर स्टेशन आए थे। यह ब्रिज दोनों पर ही भारी पड़ा। थोड़े दिनों बाद ही मोतीलाल वोरा को कुर्सी छोडऩी पड़ गई।
पटवा को भी गवांनी पड़ी कुर्सी
इसके बाद मध्य प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनी और मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा बने। इस मिथक को मानने वाले बताते हैं कि पटवा जैन समाज के पंच कल्याणक महोत्सव में शामिल होने अशोक नगर आए थे। यह वही दौर था जब अयोध्या में विवादित ढांचा ढहाया जा रहा था। चारों तरफ दंगे भडक़ गए और राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। इस दौरान पटवा की भी कुर्सी जाती रही।
इन्ही उदाहरण को देखते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बीते 13 साल में सीहोर जिले के इछावर में कभी कदम नहीं रखा और अब विधानसभा चुनाव भी हैं। क्या वह अपने प्रत्याशी के लिए इछावर में प्रचार कर पाएंगे यह एक बड़ा सवाल लोगों के बीच में बना हुआ है क्योंकि पिछली बार पूर्व राज्यमंत्री करण सिंह वर्मा को कांग्रेस के शैलेंद्र पटेल के सामने हार का सामना करना पड़ा था।