जिला पंचायत अध्यक्ष के 22 पद होंगे अब आरक्षित

परिसीमन की वजह से अटक सकता है मामला

भोपाल ।मंगल भारत ।मनीष द्विवेदी। सुप्रीम कोर्ट द्वारा बीते रोज आए फैसले के बाद से ही मप्र राज्य निर्वाचन आयोग में हलचल बेहद तेज है। अब चुनाव कार्यक्रम तय करने के लिए आयोग की फुलबैंच की बैठक आज हो रही है। माना जा रहा है की इसमें चुनाव कार्यक्रम का पूरा खाका खींच लिया जाएगा। उधर इस फैसले के बाद माना जा रहा है की जिला पंचायत के 52 पदों में से 22 पद आरक्षित किए जाएंगे, जिसमें 14 जिला अध्यक्ष के पद अजा और आठ अजजा के लिए आरक्षित होंगे। माना जा रहा है की आयोग सबसे पहले पंचायतों के चुनाव अगले माह करा सकता है। इसके बाद ही नगरीय निकाय चुनाव करा सकता है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आते ही आयोग ने पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग से परिसीमन की सूची मांग ली है। यह बात अलग है की पंचायतों के परिसीमन का प्रकाशन अभी तक किया ही नहीं गया है, जिसकी वजह से आयोग के काम में देरी हो सकती है। हालांकि कोर्ट के फैसले की वजह से अब सरकार को पंचायतों का परिसीमन एक हफ्ते में करना ही होगा। उधर, आयोग द्वारा बुलाई गई फुल बेंच की बैठक में चुनावी अधिसूचना पर भी मंथन किया जाएगा। अनुमान लगाया जा रहा है कि आयोग अगले हफ्ते तक चुनावी अधिसूचना जारी कर सकता है। इसकी वजह है सुप्रीम कोर्ट द्वारा चुनावी तारीखों का ऐलान करने के लिए आयोग को 14 दिन का समय दिया जाना। उधर, नगरीय निकायों में वार्ड परिसीमन का काम पूरा हो चुका है। प्रदेश के 418 निकायों में 7506 वार्ड हैं। वहीं प्रदेश में 22985 पंचायतें हैं। गौरतलब है की नगरीय निकायों के निर्वाचन प्रतिनिधियों का कार्यकाल नवंबर, 2019 में समाप्त हुआ था। वहीं, पंचायतों के प्रतिनिधियों का कार्यकाल मार्च, 2020 में पूरा हो गया था। कुछ समय तो सरकार ने प्रशासकों से निकायों का संचालन कराया फिर पंचायतों में प्रधान की व्यवस्था लागू कर दी। पूर्व पंचायतों के सरपंचों को ही प्रधान बनाकर वित्तीय अधिकार देकर काम चलाया जा रहा है।
अफसरशाही की लापरवाही पड़ी भारी
ओबीसी आरक्षण के मामले में आया फैसला सरकार की मंशा के अनुकूल नहीं रहा है। इसकी वजह है प्रदेश की अफसरशाही। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने कहा है की राज्य सरकार ने आधी अधूरी रिपोर्ट पेश की। यह टिप्पणी सीधे अफसरों की लापरवाही बताती है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ओबीसी को आरक्षण देने के लिए पूरी ईमानदारी से प्रयास कर रहे थे , लेकिन अफसरों ने इस मामले को गंभीरता से ही नहीं लिया , जिसकी वजह से सरकार की बुरी तरह से भद पिट गई। इस फैसले से कांग्रेस को सरकार पर हमला करने का बड़ा मौका मिल गया है। शिवराज सिंह शुरू से ही ओबीसी आरक्षण के पक्ष में रहे हैं। उन्होंने बड़ा निर्णय लेते हुए तीन परीक्षाओं के अतिरिक्त राज्य की सभी भर्तियों तथा परीक्षाओं में ओबीसी वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण दे दिया था, पर पंचायत चुनाव मामले में कोर्ट के फैसले से साफ है कि महीनों की कवायद के बाद भी आला अफसर वह मुकम्मल रिपोर्ट कोर्ट के सामने पेश नहीं कर सके जो कोर्ट को इस बात के लिए आश्वस्त करती कि राज्य में पंचायत चुनावों में ओबीसी वर्ग को आरक्षण दिया जाना चाहिए। मध्यप्रदेश पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग ने जो रिपोर्ट तैयार की थी उसे भी सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल टेस्ट के अनुरूप नहीं माना है। मतलब साफ है सुप्रीम कोर्ट द्वारा ट्रिपल टेस्ट के लिए निर्धारित मापदंडों को या तो राज्य सरकार के अफसरों ने सही तरीके से समझा नहीं या जल्दबाजी में पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग से एक रिपोर्ट तैयार करवा कर राजनीतिक स्कोर बढ़ाने का प्रयास किया है। इस मामले में अफसरों की लापरवाही के कारण सरकार की सर्वोच्च न्यायालय में जो किरकिरी हुई उसके जिम्मेदार अफसरों पर क्या सरकार की गाज गिरेगी अब यह सवाल खड़ा होने लगा है।
ओबीसी वाली सीटें होंगी अनारक्षित
ओबीसी आरक्षण के बिना ही स्थानीय निकाय चुनाव करवाने के आदेश के बाद अब अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए पंचायतों-नगरीय निकायों में आरक्षित सीटें अनारक्षित में परिवर्तित हो जाएंगी। सिर्फ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आबादी के हिसाब से सीटें आरक्षित होंगी। 52 जिला पंचायतों में 14 जिला अध्यक्ष के पद अजा और आठ अजजा के लिए आरक्षित होंगे। पंच, सरपंच और वार्ड निर्वाचन क्षेत्र भी जनसंख्या के अनुसार आरक्षित किए जाएंगे। इसके लिए शासन को पत्र लिखकर आरक्षण की प्रक्रिया करने के लिए कहा जाएगा। इसके लिए पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग द्वारा आरक्षण का कार्यक्रम घोषित किया जाएगा।
बीच में कर दी थी चुनावी प्रक्रिया रद्द
त्रिस्तरीय पंचायत के पहले चरण का चुनाव छह जनवरी, 2022 को होना था। राज्य निर्वाचन आयोग ने मतदान होने के दस दिन पहले 28 दिसंबर, 2021 को चुनाव निरस्त कर दिए थे। इस बीच चुनावी कार्यक्रम के तहत पहले और दूसरे चरण के लिए नाम वापसी के बाद सवा दो लाख से ज्यादा अभ्यर्थी प्रचार में लगे हुए थे। यह कदम आयोग को मप्र पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज संशोधन अध्यादेश वापस होने की वजह से उठाना पड़ा था।
सियासी फायदे के लिए खेला गया कार्ड
प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस में ओबीसी का सबसे बड़ा समर्थक दिखाने की होड़ मची हुई है। ओबीसी आरक्षण बढ़ाने के लिए कांग्रेस की नाथ सरकार ने बड़ा सियासी दांव चलते हुए सरकारी नौकरियों में ओबीसी आरक्षण 14 की जगह 27 प्रतिशत कर दिया थ , लेकिन मामला हाईकोर्ट पहुंच जाने की वजह से वे इसे लागू नही कर सके। सत्ता बदली तो शिवराज सरकार ने कांग्रेस से इस मुद्दे को छीनने के लिए पूरी ताकत लगा दी, जिसकी वजह से सुप्रीम कोर्ट तक जाना पड़ा।