निकाय चुनाव: कांग्रेस को मिला बूस्टर, भाजपा को दिया सबक

भोपाल।मंगल भारत।मनीष द्विवेदी।

नगरीय निकाय चुनाव के पहले चरण की मतगणना में जिन 11 महापौर पदों के चुनाव परिणाम आए हैं, वे कांग्रेस के लिए उत्साहजनक रहे हैं तो भाजपा के लिए निराशाजनक कहे जा सकते हैं। कांगे्रेस न इनमें से तीन महापौर पदों पर जीत दर्ज की है, तो भाजपा को चार सीटों का बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है। यही वजह है की अब कहा जाने लगा है की कांग्रेस को इस जीत से जहां बूस्टर मिल गया है तो भाजपा के लिए सबक देने का काम किया गया है। दरअसल बीते निकाय चुनाव में भाजपा के पास प्रदेश के सभी सोलह नगर निगमों का कब्जा था , जबकि कांग्रेस के पास एक भी नहीं था। यही वजह है की इस बार कांग्रेस को तीन महापौर पदों का फायदा हुआ है तो भाजपा को चार जगह पर नुकसान उठाना पड़ा है।
यही नहीं कांगे्रेस दो पदों पर तो बेहद करीबी मतों से जीतने से रह गई है। उधर आप ने भी एक सीट पर जीत दर्ज कर प्रदेश की राजनीति में जोरदार इंट्री की है। खास बात यह है की यह चुनाव ऐसे समय हुए हैं जब प्रदेश में करीब डेढ़ साल बाद नगरीय निकाय चुनाव होने हैं। इन चुनाव परिणामों का असर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में देखने को मिल सकता है। इसकी वजह है सुप्त अवस्था में चल रही कांग्रेस में अब उत्साह का माहौल बनता दिखने लगा है। दरअसल कांग्रेस ने इस बार रणनीतिक तौर पर मजबूती से चुनाव लड़ा है, जिसका प्रतिफल भी उसे मिला है। यह बात अलग है की अब भी प्रदेश में कांग्रेस का संगठन भाजपा के मुकाबले में बेहद कमजोर है, अगर बचे हुए समय में कांग्रेस संगठन को मजबूत करती है और जनता के बीच तमाम अहम मामलों में सक्रियता दिखाती है तो कोई बड़ी बात नहीं है की एक बार फिर प्रदेश में वह सत्ता में नजर आए। दरअसल कांग्रेस में प्रदेश में अब कमलनाथ व दिग्विजय सिंह को छोड़ दिया जाए तो ऐसा कोई बड़ा नेता न हीं है जिसका प्रभाव पूरे प्रदेश में हो, जिसकी वजह से प्रचार में अकेले कमलनाथ को ही किला लड़ाना पड़ता है, जबकि इसके ठीक उलट भाजपा में कई बड़े व नामचीन चेहरे हैं, जो चुनाव के समय एक साथ अलग- अलग सीटों पर प्रत्याशी के पक्ष में माहौल बनाने का काम करते हैं। इसमें भी कांग्रेस के सामने मुश्किल यह है की अगर वह दिग्विजय सिंह को प्रचार में आगे खड़ा करती है तो पार्टी को फायदा कम और नुकसान अधिक होेता है। इसकी वजह है उनकी हिन्दू विरोधी छवि होना। निकाय चुनाव में तीन भाजपा के गढ़ में महापौर के पद पर जीत मिलने की वजह से अब कांग्रेस कार्यकर्तार्ओ व नेताओं में उत्साह नजर आने वाला है। इसका फायदा भी जरुर कांग्रेस को आने वाले चुनावों में मिलेगा। खासतौर पर कांग्रेस ने ग्वालियर और जबलपुर जैसे भाजपा के गढ़ और संघ के बेहद प्रभावशाली इन शहरों में जीत दर्ज कर पूरे प्रदेश में पार्टी के पक्ष में अच्छा संदेश दिया है। माना जा रहा है की कांग्रेस महापौर पदों पर मिली जीत को पूरे प्रदेश में पर्टी के पक्ष में भुनाने की योजना पर काम कर रही है। उधर, भाजपा को इस बार महापौर पद के चुनाव में बड़ा झटका लगा है। खासतौर पर उसे अपने ही बेहद मजबूत गढ़ माने जाने वालें शहरों में हार का मुंह देखना पड़ा है। इनमें भी संघ के अति प्रभावशाली दोनों महानगर जबलपुर व ग्वालियर तक शामिल हैं। इसमें भी सर्वाधिक खास यह है की यह दोनों महानगर भाजपा के कई दिग्गज नेताओं के गृह जिले वाले शहर भी हैं। अगर ग्वालियर की बात की जाए तो इस शहर से ही केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर और श्रीमंत जैसे कद्दावर नेता आते हैं। इसके अलावा प्रदेश सरकार में भी शहर से मंत्री हैं। इसके बाद भी भाजपा के प्रत्याशी को यहां पर हार का सामना करना पड़ा है। इसी तरह से जबलपुर पार्टी के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष राकेश सिंह का गृह नगर है तो वहीं मौजूदा प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा की पूर्व में कर्म भूमि भी रह चुकी है।
अभी बाकी है पिक्चर
नगरीय निकाय चुनावों को 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले लिटमस टेस्ट माना जा रहा है। हालांकि, अभी पिक्चर बाकी है, क्योंकि दूसरे चरण में 20 जुलाई को 5 नगर निगमों के मतगणना परिणाम आने हैं। इस चुनाव रिजल्ट को सियासी तौर पर देखें, तो बीजेपी को नुकसान और कांग्रेस को फायदा हुआ है, लेकिन भोपाल-इंदौर जैसे गढ़ को बचाने में बीजेपी सफल रही है। उज्जैन और बुरहानपुर में बीजेपी ठीक किनारे आकर जीती है। वोट बैंक के लिहाज से देखें तो ये रिजल्ट बीजेपी के लिए चेतावनी के रुप में देखे जा रहे हैं। यानी की 11 में से 6 निगमों में ही अध्यक्ष बीजेपी का बनेगा। यानी यहां जीतने वाले पार्षदों की संख्या बहुमत से कम है। खास बात तो यह है की जबलपुर में बीजेपी के डॉ. जितेंद्र जामदार एक मात्र ऐसे महापौर उम्मीदवार हैं, जो गृह वार्ड से भी हार गए। उनकी उम्मीदवारी को लेकर पार्टी में स्थानीय स्तर पर नाराजगी थी, लेकिन संघ के करीबी होने के कारण खुलकर कोई उनका खुलकर विरोध नहीें कर रहा था। इस विरोध की वजह से ही जबलपुर में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तीन रोड शो किए। राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने बूथ कार्यकर्ताओं की बैठक के अलावा युवा सम्मेलन भी किया था। बावजूद इसके बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ गया।
ग्वालियर में पांच तो जबलपुर में डेढ़ दशक बाद जीती कांग्रेस
ग्वालियर में कांग्रेस 57 साल बाद जीती। यहां से कांग्रेस की शोभा सिकरवार ने बीजेपी की सुमन शर्मा को हराया है। सुमन को केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का समर्थक माना जाता है। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया चाहते थे कि पूर्व मंत्री माया सिंह को मैदान में उतारा जाए। यही वजह है कि कोर ग्रुप की 4 बैठकों के बाद अंतिम फैसले से पहले स्थानीय नेताओं को संतुष्ट करने का मौका दिया गया। बावजूद इसके स्थानीय नेता ब्राहम्ण उम्मीदवार के पक्ष में अड़े रहे। इससे साफ है कि सिंधिया की प्रेशर पॉलिटिक्स पर ग्वालियर का संगठन हावी रहा। सुमन को संगठन की पसंद बताकर उम्मीदवार बना दिया था। इसकी परिणति हार के रुप में सामने आयी है। इसी तरह से जबलपुर में कांग्रेस के जगत बहादुर सिंह अन्नू ने बीजेपी के डॉ. जितेंद्र जामदार को 44 हजार से अधिक वोटों से हराया है। 18 साल बाद कांग्रेस ने यहां पर महापौर पद पर जीत दर्ज की है। यहां पर परिषद अध्यक्ष भी कांग्रेस का बनना तय माना जा रहा है। अगर पीछे मुड़कर देखते हैं तो यही स्थिति वर्ष 2000 में बनी थी, जब कांग्रेस के विश्वनाथ दुबे महापौर बने थे, लेकिन परिषद में बहुमत बीजेपी का ही था। इस बार कांग्रेस ने बीजेपी को पछाड़ दिया है।