सावन मास वैसे तो भगवान भोलेनाथ की भक्ति और आराधना
के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन इसके साथ ही यह मास अपने आप में कई और अनुपमताएं भी लिए हुए है। समय-समय पर बरसते मेघ मानो संगीत की कोई तान छेड़ते हैं तो सौंधी-सौंधी मिट्टी की खूशबू अंर्तमन को महका देती है, प्रकृति में बिछी हरियाली की चादर हर दृश्य को अनुपम बना देती है। हर तरफ हरियाली देखकर ऐसा लगता है मानों प्रकृति ने श्रृंगार किया हो। जिस तरह सावन का दूसरा नाम प्रसन्न करना होता है, वैसे ही मन भी सावन में प्रफुल्लित महसूस करता है। व्रत, उपासना और बारिश के बीच प्रकृति से संवाद का मास ही सावन है।
सावन का माह मन में भक्ति का संचार कर देता है। इस दौरान भक्ति के रंग के साथ प्रकृति का अनुपम रूप भी नजर आता है। यह माह प्रकृति को निकटता से समझने का अवसर भी देता है। रिमझिम बारिश और प्राकृतिक सौंदर्य बरबस ही मन में उल्लास भर देती है। शायद इसी लिए हमारी संस्कृति में सावन के झूलों का भी उल्लेख मिलता है, जिसमें उत्साह और उमंग के साथ हम प्रकृति से जुड़ते हैं। इसी दौरान खेतों में बोए बीजों में अंकुरण होने लगता है जो किसानों के मन को आशाओं से भर देता है। सावन का एक अर्थ प्रसन्न करना भी होता है। सावन एक प्रकार का गीत भी होता है तथा पहाड़ों में पाए जाने वाले एक पेड़ को भी सावन कहते हैं। ऐसे में सावन का माह अपने आप में विशेष है। ऐसी मान्यता है कि प्रबोधनी एकादशी (सावन के प्रारंभ) से सृष्टि के पालन कर्ता भगवान विष्णु सारी जिम्मेदारियों से मुक्त होकर अपने दिव्य भवन वैकुंठलोक में विश्राम करने के लिए चले जाते हैं और अपना सारा कार्यभार महादेव को सौंप देते है। भगवान शिव पार्वती के साथ पृथ्वी लोक पर विराजमान रहकर पृथ्वी वासियों के दु:ख-दर्द को समझते हैं एवं उनकी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं, इसलिए सावन का महीना खास होता है। यह मास भोलेनाथ को ही समर्पित है। इसलिए इसे शिवमास भी कहा जाता है। शिव पुराण के अनुसार शिव स्वयं ही जल भी हैं। सावन मास के सोमवार को शिव का जलाभिषेक करना अत्यंत पुण्यदायी माना गया है। इस दिन भगवान शिव का पूजन करने पर मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
सावन मास में शिव भक्ति का पुराणों में भी उल्लेख मिलता है। पौराणिक कथाओं में वर्णन आता है कि इसी मास में समुद्र मंथन किया गया था। समुद्र मथने के बाद जो विष निकला उसे भगवान शंकर ने कंठ में समाहित कर सृष्टि की रक्षा की लेकिन विषपान से महादेव का कंठ नीलवर्ण हो गया। इसी से उनका नाम नीलकंठ महादेव पड़ा। विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया। इसलिए शिवलिंग पर जल चढ़ाने का खास महत्व है। यही वजह है कि सावन मास में भोले को जल चढ़ाने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। शिवपुराण में उल्लेख है कि भगवान शिव स्वयं ही जल हैं। इसलिए जल से उनकी अभिषेक के रुप में अराधना का उत्तमोत्तम फल है जिसमें कोई संशय नहीं है।
कोई सावन के सोमवार में भगवान शिव का पूजन-अर्चन करता है तो कोई कावड़ यात्रा निकालता है। सावन सोमवार के साथ ही हरियाली अमावस, हरियाली तीज, नागपंचमी जैसे त्यौहारों से होते हुए स्नेह के पर्व रक्षाबंधन पर सावन का समापन होता है। मेरा सुझाव है कि भक्ति और उत्सवों के साथ आप भी इस माह में प्रकृति से संवाद का प्रयास करें, उसकी हरियाली में मन की उमंगों को ढूंढें और हरियाली, झरनों व बारिश के सौंदर्य को निहारें।