पलायन, गुटबाजी और वर्चस्व की जंग से कमजोर हुई कांग्रेस

प्रदेश के कई क्षेत्रों में कांग्रेस के पास कद्दावर नेतृत्व ही नहीं.

2018 में जिस दम खम के साथ कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की थी, उससे लगा था कि मप्र में कांग्रेस अब और मजबूत होगी। लेकिन 2023 में हार और उसके बाद पलायन, गुटबाजी और वर्चस्व की जंग से कांग्रेस दिन पर दिन कमजोर होती जा रही है। गौरतलब है कि मप्र की राजनीति में कांग्रेस की पहचान गुटों से है। पांच साल पहले तक कांग्रेस में सिंधिया, कमलनाथ, पचौरी, दिग्विजय, अरुण यादव बड़े गुुटा हुआ करते थे। जिसमें सिंधिया खेमा काफी असरदार था। 2020 में सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद से ग्वालियर-चंबल में कांग्रेस सिमट गई है। जो नेता बचे हैं, वे भी सिंधिया खेमे के संपर्क में है। हालांकि सुरेश पचौरी के भाजपा में शामिल होने का कांग्रेस को खास फर्क नहीं पड़ेगा। क्योंकि पचौरी जनाधार वाले नेता नहीं है, हालांकि उनके समर्थक भोपाल तक सीमित हैं। केंद्र में कांग्रेस की सरकार जाने के बाद से पचौरी की राजनीति सिमट गई है। गत दिनों पचौरी अपने समर्थकों के साथ भाजपा शामिल हुए हैं। उनके समर्थकों में कांग्रेस के वही चेहरे हैं, जिन पर नगरीय निकाय चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद खुलकर भितरघात के आरोप लगे थे। इसके बाद उनके समर्थक कैलाश मिश्रा को जिलाध्यक्ष की जिम्मेदारी से मुक्त किया गया था। अन्य समर्थक भी पचौरी तक ही सीमित थे, लंबे समय से वे प्रदेश कार्यालय भी नहीं गए। कांग्रेस में सुरेश पचौरी बड़ा चेहरा थे। लेकिन वे कभी कोई बड़ा चुनाव नहीं जीते। भोजपुर सीट से दो बार विधायक का चुनाव बड़े अंतर से हारे। मप्र कांग्रेस में उन्हें ब्राह्मण नेता के नाते खासा तवज्जो मिलती रही है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी का दावा है कि पचौरी के जाने से भोपाल में नए लोगों को आगे बढ़ने का मौका मिलेगा। मप्र कांग्रेस में अरुण यादव गुट भी काफी ताकतवर हैं। हालांकि लंबे समय से सत्ता में नहीं होने से यह गुट भी कमजोर होता जा रहा है। साथ ही उनके समर्थक विधायक एवं अन्य नेता भी उन्हें छोडक़र भाजपा में शामिल होते गए। बीच-बीच में अरुण यादव के भी भाजपा में शामिल होने की अटकलें चलती रही हैं। फिलहाल अरुण यादव के भाजपा में आने की संभावना लगभग खत्म है। कांग्रेस में सत्यव्रत्त चतुर्वेदी, अजय सिंह, कांतिलाल भूरिया का भी गुट था। लेकिन इन नेताओं का गुट सीमित हो गया है। कांतिलाल भूरिया की भी अब राजनीति ढलान पर है। उनका बेटा जरुर विधायक बन गया है।
कांग्रेस अपने नेताओं को संभाल नहीं पा रही
मप्र कांग्रेस को संगठित करने के लिए कांग्रेस आलाकमान प्रदेश प्रभारी के तौर पर बड़े नेताओं को मप्र भेजता है, लेकिन वे अपने नेताओं को संभाल नहीं पा रहे हैं। विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी और प्रदेश प्रभारी जितेंद्र सिंह की नई टीम को कमान सौंपी। लेकिन इस दौरान कांग्रेस में सबसे अधिक नेताओं ने पलायन किया है। वहीं पूर्व प्रदेश प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला भी कोई प्रभाव नहीं छोड़ पाए थे। कांग्रेस के विफल होने पर तंज कसते हुए कांग्रेस छोडक़र भाजपा में आए एक नेता का कहना है कि कांग्रेस के प्रदेश और राष्ट्रीय नेतृत्व की समस्या है कि वह अपने योग्य नेताओं, विधायकों को संभाल नहीं पा रही है। इसलिए कांग्रेस में भगदड़ मची है और आगे भी बहुत से विधायक और पदाधिकारी भाजपा में शामिल होने वाले हैं।
दरअसल, कांग्रेस के लगभग सभी प्रदेश प्रभारी कमजोर साबित हो रहे हैं। पार्टी के जब महासचिव मुकुल वासनिक को मध्य प्रदेश का प्रभार सौंपा तो यह उम्मीद और अपेक्षा थी, कि वह राज्य संगठन को मजबूती देंगे। पर मुकुल वासनिक अपने पूर्ववर्ती प्रभारी दीपक बाबरिया की तरह ही कमजोर साबित हुए। वह मप्र कांग्रेस में बिखराव रोकने में कोई करिश्मा नहीं कर सके। वासनिक के आने के बाद भी कांग्रेस के विधायकों के इस्तीफे का सिलसिला रहा। दूसरी तरफ विरासत के जरिये सियासत में चमके नई पीढ़ी के युवराजों की लड़ाई सतह पर आ गई। दीपक बाबरिया जब प्रदेश प्रभारी बने थे तो उनकी पहली जिम्मेदारी थी कि वह सामंजस्य स्थापित करें लेकिन, अनुशासनहीनता, आपसी खींचतान और गुटबाजी ने उन्हें चुप बैठने पर मजबूर कर दिया। कमल नाथ सरकार के पतन के बाद बाबरिया ने खराब स्वास्थ्य का हवाला देकर इस्तीफा दे दिया और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने उसे स्वीकार भी कर लिया। बाबरिया ने मध्य प्रदेश का प्रभार संभालने के बाद बहुत मुश्किलों का सामना किया था। उनके प्रभारी रहते कार्यकर्ताओं की आपसी मारपीट और बदतमीजी सामने आई थी।
कांग्रेस में दिग्विजय का गुट सबसे ताकतवर
मप्र कांग्रेस में फिलहाल सबसे बड़ा एवं ताकतवर गुट दिग्विजय सिंह का ही बचा है। दिग्विजय सिंह के कांग्रेस में सबसे ज्यादा समर्थक हैं। मप्र की राजनीति में वे ठाकुरों के सबसे बड़े नेता भी हैं। भाजपा में भी कोई ठाकुर नेता फिलहाल ताकतवर नहीं है। विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा टिकट दिग्विजय समर्थकों को मिले थे। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का मप्र कांग्रेस में अच्छा खासा वजूद है। भाजपा की तमाम कोशिशों के बाद भी छिंदवाड़ा में सेंध नहीं लग पाई है। विधानसभा चुनाव में दिग्विजय अपने भाई को नहीं जिता पाए, वहीं कमलनाथ छिंदवाड़ा की सभी सीटें जिताकर लाए हैं। पिछले महीने उनके भाजपा में शामिल होने को लेकर चली अफवाहों से कमलनाथ की छवि को जरूर नुकसान पहुंचा है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी का मप्र कांग्रेस में फिलहाल कोई गुट नहीं है। हालांकि वे युवक कांग्रेस के साथ रहे नई पीड़ी के नेताओं को राजनीति में आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। फिलहाल उनकी पूरी राजनीति कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के मान-मनौव्वल तक सिमटती दिख रही है। नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार के साथ उनकी पटरी बैठती नजर आ रही है।